बाढ़ से बेहाल पटना में नीतीश सरकार ने झुग्गियों पर चलवा दिया बुलडोज़र, सैकड़ों झुग्गीवासी बेघर
बिहार की राजधानी पटना प्रशासनिक नाकामी के सबसे बुरे दौर में हैं। ऐसे में शहर के झुग्गीवासियों पर मुसीबत सरकारी कहर बनकर टूटी है। नीतीश सरकार ने इन लोगों को राहत देने के बजाए उनकी झोपड़ियों पर बुलडोज़र चलवा दिया, जिसके चलते सैकड़ों लोग बेघरबार हो गए हैं।
देश जब महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाने की तैयारियों में जुटा था, तभी पहली अक्टूबर को बिना किसी पूर्व सूचना के सरकार ने शहर के हज भवन के नजदीक बनी झुग्गियों पर बुलडोज़र चलवा दिया। गनीमत यह रही कि पटना की बाढ़ के चलते ये लोग सुरक्षित जगहों पर चले गए थे, लेकिन फिर भी इस कार्यवाही में अपने ढाई माह के बच्चे के साथ एक महिला अपनी झुग्गी में ही फंस गई। किसी तरह उसे बचाया जा सका। सरकार की असंवेदनशीलता की हद है कि इन लोगों को किसी किस्म की राहत देने के बजाए उनके आशियाने उजाड़ दिए गए।
जिस वक्त इन झुग्गियों पर बुलडोज़र चल रहा था, उसी समय 27 साल की खुश्बू अपने ढाई महीने के बच्चे के साथ घर में फंस गई थी। झुग्गियों में रहने वाले राजेश बताते हैं कि उनकी हालत देखने-सुनने वाला कोई नहीं है। उन्होंने बताया, “झुग्गियां उजाड़ने के लिए उन्हें किसी किस्म का कोई नोटिस नहीं मिला। पहले हम वहां रहते थे जहां आज इको पार्क है, लेकिन सरकार ने हमारे घर वहां भी उजाड़ दिए थे। इसके बाद हम यहां आकर बसे थे, लेकिन अब इन्हें भी उजाड़ दिया गया है। ऐसे में हम कहां जाएं?”
इन्हीं झुग्गियों में रहने वाली एक बुजुर्ग महिला बताती है कि, “हमारे पास कोई घर नहीं है, हम बेघर लोग हैं। अगर सरकार हमें रहने का ठिकाना मुहैया कराए तभी हम कहीं जा सकते हैं।” फिलहाल इन लोगों ने हज भवन के नजदीक फुटपाथ पर अपने टैंट आदि लगा लिए हैं।”
इसी तरह पटना की बुद्ध कॉलोनी में कार्यवाही की गई। 30 सितंबर को बिना किसी पूर्व सूचना के यहां तोड़फोड़ शुरु करा दी गई। पहले ही पानी में डूबे घरों में फंसे लोगों का कहना है कि आखिर इस मुसीबत की घड़ी में ही सरकार को ये सब करने की जरूरत क्यों पड़ी। उनका कहना है कि, “जब हम पानी में फंसे थे तो तब सरकार कहां थी।” इनकी मांग है कि तोड़फोड़ पर तुरंत रोक लगे।
अधिकारी भी इनकी बात से सहमत दिखे, और तोड़फोड़ न करने का आश्वासन दिया। लेकिन उसी दिन अचानक रात में बुलडोज़ आ गए और करीब 100 झुग्गियों को तहस-नहस कर दिया गया।
इस बारे में नेशनल हेरल्ड ने पटना के जिलाधिकारी से बात करने की कोशिश की, लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं मिला। इस बारे में एक ईमेल भी भेजा गया ताकि इस कार्यवाही पर सरकारी जवाब मिल सके।
आमतौर पर सरकार जब गरीबों के घर तोड़ती है तो उन्हें वैकल्पिक व्यवस्था के तहत रहने की जगह दी जाती है। लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ।
बिहार के कांग्रेस विधायक शकील अहमद खान कहते हैं कि, “यह लोग भी इस देश के नागरिक हैं, वे अब कहां जाएंगे। अगर सरकार कोई वैकल्पिक व्यवस्था के बिना उनके आशियाने उजाड़ रही है, तो यह अपराध है।” वे बताते हैं कि, “इस बारे में न तो सरकारी स्तर पर और न ही सिविल सोसायटी की तरफ से कोई चर्चा हुई कि इन गरीबों का क्या होगा।” शकील अहमद ने बताया कि वे इस मामले को विधानसभा में उठाएंगे।
उन्होंने बताया कि इस बारे में उन्होंने शहरी विकास मंत्री से संपर्क कर हालात से अवगत कराने की कोशिश की, लेकिन न तो मंत्री ने बात की और न ही जिलाधिकारी ने इस बारे में कोई जवाब दियाय़
इलाके में रहने वाले रूपेश का कहना है कि सरकार का यह कदम बिल्कुल गैरकानूनी है, और ऐसी कार्यवाहियों में हमेशा गरीबों को ही भुगतना पड़ता है। उन्होंने बताया कि, “नियमत: सरकार को कानूनी प्रक्रिया के तहत पहले नोटिस देना चाहिए था, इसके बाद ही कोई कार्यवाही की जाती।” उन्होंने आरोप लगाया कि मीडिया भी इस मुद्दे को नहीं उठा रहा क्योंकि मीडिया और सरकार की सांठगांठ है।
सामाजिक कार्यकर्ता सौरभ ने बताया कि, “एक तरफ लोगों के पास खाने को कुछ नहीं है, और दूसरी तरफ सरकार उनके घर उजाड़ रही है। सरकार को पहले उनके पुनर्वास की व्यवस्था करनी चाहिए थी, इसके बाद कोई कार्यवाही होती। मैंने सरकार से अनुरोध किया है कि कम से कम इस संकट की स्थिति में तो इनके घरों को छोड़ दिया जाए।”
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Published: 03 Oct 2019, 11:18 AM