साथ रहकर नीतीश ने फिर दिया बीजेपी को बड़ा झटका, NRC-NPR के बाद जातीय जनगणना का प्रस्ताव सदन से पास
बिहार विधानसभा के बजट सत्र के चौथे दिन आज जाति आधारित जनगणना कराने के पक्ष में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर दिया गया। सीएम नीतीश कुमार ने प्रस्ताव रखा, जिसे आरजेडी समेत सभी विपक्षी दलों ने अपना समर्थन दिया। खास बात ये कि बीजेपी ने भी इसका समर्थन किया।
बिहार विधानसभा में 27 फरवरी को जातीय जनगणना का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हो गया। इससे पहले मंगलवार को बजट सत्र के दूसरे दिन सीएम नीतीश कुमार ने जाति आधारित जनगणना का प्रस्ताव पेश किया था, जिसे आज सभी दलों के समर्थन से पास कर दिया गया। इसकी घोषणा विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी ने सदन की बैठक में की। प्रस्ताव में मांग की गई है कि 2021 में जनगणना जाति आधारित हो।
लेकिन इसमें सबसे खास बात ये है कि जाति आधारित जनगणना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पिछले तीन दिन में दूसरा मास्टरस्ट्रोक है, जिसमें उन्होंने साथ रहते हुए बीजेपी के खिलाफ ये लगातार दूसरा गोल किया है। दरअसल दो दिन पहले मंगलवार को उन्होंने बिहार विधानसभा में एनआरसी नहीं लागू करने और एनपीआर 2010 के प्रारूप के अनुसार करने का प्रस्ताव पारित कर बीजेपी को पहला झटका दिया था। इतना ही नहीं यह प्रस्ताव भी सदन से सर्वसम्मति से पास हुआ था।
लेकिन इस प्रस्ताव के साथ ही बिहार पहला एनडीए शासित राज्य बन गया, जहां एनआरसी के खिलाफ प्रस्वात पारित हुआ, वह भी बीजेपी के सरकार में रहते। हालांकि यह प्रस्ताव सदन से सर्वसम्मित से पास हुआ, लेकिन सदन में यह प्रस्ताव आते ही कई बीजेपी नेता भौंचक्के रह गए। कई नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार ने उन्हें बिना जानकारी दिए सदन में प्रस्ताव पेश कर दिया। इसके बाद नीतीश कुमार के भविष्य के कदमों को लेकर अटकले शुरू हो गईं।
दरअसल एनआरसी और एनपीआर पर प्रस्ताव से पहले बिहार की राजनीति में एक बड़ी घटना हुई, जिसने बीजेपी समेत पत्रकारोंं को भी चौंका दिया। हुआ यूं कि सदन में प्रस्ताव पेश किए जाने से पहले बिहार के सीएम नीतीश कुमार और विपक्षी दल आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव के बीच सदन में ही एक अहम बैठक हुई, जिसमें क्या बातें हुईं, किसी को पता नहीं चला। विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष में करीब आधे घंटे चली इस बैठक के बाद नीतीश कुमार का रुख पलटा हुआ दिखाई देने लगा और सदन में एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ प्रस्ताव आ गया।
इसके ठीक एक दिन बाद यानी बुधवार को भी विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता विपक्ष तेजस्वी यादव के बीच सदन मे ही फिर एक अहम बैठक हुई, जिसने राजनीतिक गलियारों में चर्चा के साथ ही बीजेपी के भी माथे पर बल ला दिया। और अब उसके दूसरे दिन विधानसभा से जातीय जनगणना का प्रस्ताव आ गया और पारित हो गया।
दरअसल बिहार में राजनीतिक पार्टियां लंबे समय से जातीय जनगणना की मांग करती रही हैं और यह राजनीति का एक अस्त्र बना हुआ था। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और विपक्षी आरजेडी हमेशा से जातीय जनगणना की मांग करती रही हैं। खुद लालू यादव जातीय जनगणना को लेकर कई बार सवाल उठा चुके हैं। लेकिन जेडीयू की सहयोगी बीजेपी हमेशा से सैद्धांतिक रूप से जातीय जनगणना का विरोध करती रही है।
हालांकि, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि एनआरसी का विरोध और जातीय जनगणना के सहारे नीतीश कुमार, संशोधित नागरिकता कानून को लेकर खुद पर हो रहे हमलों का मुकाबला करने के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं। एनआरसी के विरोध के सहारे जहां वे अल्पसंख्यक वोटरों को साधने की जुगत भिड़ा रहे हैं, वहीं अब जातीय जनगणना के सहारे पिछड़े, अतिपिछड़े, दलितों और महादलितों को साधने का दांव खेल रहे हैं। जानकारों का कहना है कि इस साल राज्य में होने वाले चुनाव में इन फैसलों का असर देखने को मिलेगा।
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