जेएनयू पर बयान देते वक्त ‘पार्टी की बाध्यता’ के चलते ‘न्याय का पक्ष’ भूल गईं निर्मला सीतारमण

यह सही है कि जेएनयू छात्र संघ में बार-बार की हार ने एबीवीपी और उसकी समर्थक पार्टी बीजेपी को उतावला कर दिया है। लेकिन क्या सिर्फ एक विश्वविद्यालय के छात्र संघ में हुई हार से देश की रक्षा मंत्री का विचलित होना न्यायसंगत है?

फोटो: सोशल मीडिया 
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रोहित प्रकाश

जेएनयू की पूर्व छात्र और देश की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण का गैर-जिम्मेदाराना बयान उन पर भारी पड़ता नजर आ रहा है। न सिर्फ अपने विश्वविद्यालय, बल्कि वहां पढ़ने वाले 8 हजार छात्रों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाते वक्त उन्होंने यह नहीं सोचा कि वे एक जिम्मेदार पद पर हैं, कोई छुटभैया नेता नहीं।

दिल्ली के इंडियन वीमेन्स प्रेस कार्प में एक संवाद कार्यक्रम के दौरान जेएनयू में हो रही गतिविधि को लेकर पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, “(जेएनयू में) ऐसी ताकतें हैं जो भारत के खिलाफ जंग छेड़ रही हैं और छात्र संघ के चुने हुए प्रतिनिधियों के साथ भी वे नजर आते हैं। यह बात मुझे असहज करती है।” कोई उनसे पलट कर पूछ सकता है कि अगर ऐसा है तो देश की सुरक्षा और गुप्तचर एजेंसियां क्या कर रही हैं?

रक्षा मंत्री के इस बयान की निंदा जरूरी थी और वह हुई। जेएनयू छात्र संघ के नवनिर्वाचित अध्यक्ष एन साईं बालाजी ने कहा, “सरकार चाहती है कि देश राष्ट्रवादी बनाम राष्ट्रविरोधी की बहस में उलझा रहे। वे राफेल सौदे, बेरोजगारी जैसे असली मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहते हैं।”

बालाजी ने आगे कहा, “सरकार द्वारा वित्तपोषित शिक्षा को खत्म करने के लिए वे ऐसी बातें करते हैं। वे शिक्षा को कॉरपोरेट जगत के हवाले कर दें और लोग राष्ट्रवाद की बहस में उलझे रहें।”

हालांकि, रक्षा मंत्री की खीज को समझा जा सकता है। पिछले दिनों उनकी पार्टी बीजेपी द्वारा समर्थित छात्र संगठन एबीवीपी का जेएनयू छात्र संघ चुनावों में बहुत बुरा प्रदर्शन रहा। जेएनयू की छात्र बिरादरी ने एबीवीपी की राजनीति को नकारते हुए वाम छात्र संगठनों की एकता में भरोसा जताया।

निर्मला सीतारमण के आधारहीन आरोप का जवाब देते हुए जेएनयू छात्र संघ की पूर्व उपाध्यक्ष शहला राशिद ने अपने एक ट्वीट में लिखा, “रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण बिल्कुल सही हैं। जेएनयू में राष्ट्रविरोधी तत्व हैं जो देश को तोड़ना चाहते हैं। वे देश और जनता के खिलाफ जंग छेड़ रहे हैं। वे धार्मिक आधार पर लोगों में विभाजन पैदा कर रहे हैं और लोकतांत्रिक संस्थानों को खत्म कर रहे हैं। वह एबीवीपी की जेएनयू शाखा है।”

जो लोग राष्ट्र की व्याख्या को समझते हैं वो इस ट्वीट में छिपे तंज की सच्चाई को भी समझेंगे। राष्ट्र सिर्फ भौगोलिक सीमाओं की रक्षा से ही मजबूत नहीं होता, बल्कि उस भौगोलिक सीमा के भीतर की राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधि से भी उसे मजबूती मिलती है।

यह सही है कि जेएनयू छात्र संघ में बार-बार की हार ने एबीवीपी और उसकी समर्थक पार्टी बीजेपी को उतावला कर दिया है। जेएनयू छात्र संघ चुनावों की प्रक्रिया में एबीवीपी द्वारा की गई हिंसा उसी उतावलेपन का नतीजा थी। लेकिन क्या सिर्फ एक विश्वविद्यालय के छात्र संघ में हुई हार से देश की रक्षा मंत्री का विचलित होना न्यायसंगत है? देश की रक्षा मंत्री द्वारा ऐसा बयान दिया जाना उनके पद की गरिमा के भी खिलाफ है और उन्हें शोभा भी नहीं देता।

निर्मला सीतारमण को इस बात की याद दिलाना यहां काफी प्रासंगिक होगा कि जब वे जेएनयू में थीं तो आजाद ख्याल रखने वाले समूह का हिस्सा थीं। उस समूह को ‘फ्री थिंकर्स’ कहा जाता था। वे पार्टी की बाध्यता से बाहर जाकर न्यायपूर्ण विचारों के पक्ष में खड़े होने का दावा करते थे। पिछले कई सालों से वे बीजेपी की और 2014 से मोदी सरकार के मंत्रीपरिषद की सदस्य हैं। संभव है कि पार्टी की बाध्यता उन्हें ऐसा बयान देने के लिए विवश करती हो, लेकिन न्याय का पक्ष उन्हें रोक भी तो सकता है! जेएनयू के अनुभवों की यह बात शायद उन्हें याद हो।

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Published: 19 Sep 2018, 2:22 PM