‘नमामि गंगे’: उत्तराखंड में जनता के हजारों करोड़ रुपये ठिकाने लगाने का सबसे बड़ा उदाहरण

हरिद्वार और ऋषिकेश में निकलने वाले सीवरेज और ड्रैनेज जल की कुल मात्रा की सही जानकारी किसी सरकारी विभाग को नहीं है, लेकिन गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के नाम पर दोनों शहरों में 2000 करोड़ रुपये से अधिक की योजना बना दी गई। इससे साफ पता चलता है कि सरकार की वास्तविक प्राथमिकता क्या है।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

केंद्र सरकार की नमामि गंगे परियोजना उत्तराखंड में जनता के खून-पसीने की गाढ़ी कमाई से वसूले गए टैक्स के हजारों करोड़ों को ठिकाने लगाने का सबसे बड़ा उदाहरण बनती जा रही है। हरिद्वार और ऋषिकेश में उत्सर्जित होने वाले सीवरेज-ड्रैनेज जल की कुल मात्रा की सही जानकारी किसी भी सरकारी विभाग को नहीं है, लेकिन गंगा को प्रदूषणमुक्त करने के नाम पर इन दोनों शहरों में 2000 करोड़ रुपये से अधिक की योजना बना दी गई।

इतना ही नहीं, इनमें से एक हजार करोड़ से अधिक की योजना पर काम भी शुरू कर दिया गया है। कमोबेश यही हाल देश के बाकी शहरों में गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के नाम पर चल रही योजनाओं का भी है।

हरिद्वार में इसका खुलासा आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी से हुआ है। हैरानी इस बात की है कि जिम्मेदार विभागों को अब तक नहीं पता है कि गंगा में कुल सीवरेज की कितनी गंदगी सीधी गिर रही है। सब कुछ अनुमान पर आधारित है।

हरिद्वार की बात करें तो वर्तमान में यहां सीवरेज व्यवस्था और उत्सर्जित सीवरेज और ड्रैनेज जल के ट्रीटमेंट के लिए अलग-अलग मदों में तकरीबन एक हजार करोड़ से अधिक की योजना पर काम चल रहा है। लेकिन इसके लिए जिम्मेदार विभाग 'निर्माण और अनुरक्षण इकाई गंगा पेयजल निगम' को यह नहीं पता कि हरिद्वार शहर में कितना सीवरेज और ड्रैनेज जल उत्सर्जित होता है, कितना सीवरेज-ड्रैनेज पंपिंग स्टेशनों से होकर एसटीपी तक पहुंचता है और कितना बिना शोधन गंगा में गिरता है।

आरटीआई में दिए जवाब में विभाग ने जानकारी दी है कि हरिद्वार में इस समय तीन एसटीपी- 27 एमएलडी और 18 एमएलडी जगजीतपुर और 18 एमएलडी सराय कार्यरत हैं, जिनकी कुल क्षमता 63 एमएलडी है और इनसे इतना ही सीवरेज जल शोधित किया जा रहा है। शोधित होने वाले जल की मात्रा को छोड़कर शहरी क्षेत्र में निकलने वाले सीवरेज जल की मात्रा के आकलन की कोई ठोस व्यवस्था है ही नहीं।

विभाग का कहना है कि चूंकि फ्लो मीटर अधिष्ठापित नहीं हैं, इसलिए नहीं पता है कि रोजाना के स्तर पर सीवरेज-ड्रैनेज जल का कुल कितनी मात्रा में उत्सर्जन होता है और बिना शोधन कुल कितना सीवरेज और ड्रैनेज सीधे गंगा में बहाया जा रहा है। इसलिए वह इसके बारे में पुख्ता जानकारी देने में असमर्थ हैं।

ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि जब जिम्मेदारों को ही यह नहीं पता कि हरिद्वार में रोजाना कितना सीवरेज और ड्रैनेज उत्सर्जित हो रहा है और कितना सीधे गंगा में गिर रहा है तो फिर गंगा को सीवरेज-ड्रैनेज जल के प्रदूषण से मुक्त करने को करोड़ों की योजना का खाका कैसे और किस आधार पर तैयार किया।

विभाग करीब 580 करोड़ की लागत से हरिद्वार में गंगा को प्रदूषण मुक्त करने को जगजीतपुर और सराय में 68 और 14 एमएलडी क्षमता वाली दो एसटीपी का निर्माण करा रहा है। साथ में 26 पंपिंग स्टेशनों के उच्चीकरण, तकनीकी क्षमता का विकास और सीवरेज विहीन इलाकों में सीवर लाइन डालने की विभिन्न योजनाओं में 300 करोड़ के करीब खर्च कर रहा है। इसी तरह ऋषिकेश में भी 800 करोड़ से अधिक की विभिन्न योजनाओं पर काम चल रहा है। इसके अलावा इतने की अन्य योजनाएं प्रस्तावित हैं। इतने गंभीर मसले पर अनुमान आधारित आकलनों से काम चलाना बताता है कि सरकार की वास्तविक प्राथमिकता क्या है।

स्वामी सानंद ने खोल दी थी सरकार की पोल

वरिष्ठ पर्यावरणविद प्रो. जीडी अग्रवाल उर्फ ब्रह्मलीन संत स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद भी सरकार के प्रयासों में कमी देखते थे। वह मानते थे कि गंगा सफाई के नाम पर हजारों करोड़ों की बर्बादी की गई। लेकिन योजनाओं की हकीकत को सामने लाने की हिम्मत विभाग नहीं जुटा पा रहा है। इसी हकीकत को राष्ट्र, समाज और दुनिया के गंगा भक्तों के सामने लाने के लिए स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद गंगा रक्षा को समर्पित मातृ-सदन में 112 दिनों तक अन्न-जल त्याग कर अनशन (तपस्या) पर रहे, लेकिन न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार ने उनकी कोई सुध ली। उलटे, पूरी दुनिया में वरिष्ठ पर्यावरणविद् के तौर पर ख्याति प्राप्त स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद को उनकी जान बचाने के नाम पर भेड़-बकरी की तरह जबरन उठाकर ऋषिकेश एम्स में भर्ती करा दिया।

वहां वरिष्ठ चिकित्सकों के इलाज ने उनकी जीवन रक्षा की बजाए उनकी जीवन लीला ही समाप्त कर दी। मातृ-सदन ने इसे केंद्र और राज्य सरकार के इशारे पर सुनियोजित साजिश के तहत हत्या करार दिया है। स्वामी सानंद का साफ कहना था कि गंगा को साफ करने के लिए हजारों करोड़ की योजना की कोई आवश्यकता नहीं है। इसके लिए सिर्फ गंगा में उसका पानी भर छोड़ देना ही काफी है। उन्होंने अपने तर्क को आंकड़ों के माध्यम से तमाम सरकारी मंचों, सरकारी अधिकारियों और सक्षम मंत्रालय के सामने कई बार प्रमाणित भी किया था।

सरकार को इस कारण भी स्वामी सानंद खटकते थे कि वह न केवल केंद्र सरकार द्वारा गंगा को साफ करने की योजना को खारिज करते थे बल्कि इसे जनता के गाढ़े पसीने की कमाई की बर्बादी बताते थे। यही वजह है कि सरकार ने ना सिर्फ उनकी उपेक्षा की बल्कि उनकी जीवन रक्षा के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया, क्योंकि वह उसकी 25 हजार करोड़ की महत्वाकांक्षी योजना को एक झटके में ही अकारण बता रहे थे।

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