राहुल के ‘मास्टर स्ट्रोक’ से मध्य प्रदेश में बिगड़ी बीजेपी की फील्डिंग
राहुल के कर्जमाफी के ऐलान या क्रिकेट की भाषा में कहें तो मास्टर स्ट्रोक से बीजेपी की लाइन लेंथ पूरी तरह गड़बड़ा गई है। बीजेपी पर राहुल का वार और बड़ी-बड़ी बाधाओं को लांघकर बड़ी संख्या में पहुंचे किसानों के जमावड़े ने सत्ताधारी दल के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी कर दी हैं।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार की पहचान या यूं कहें कि 'किसान हितैषी सरकार' के तौर पर प्रचार कुछ ज्यादा ही हुआ है, मगर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदसौर की श्रद्धांजलि सभा में किसानों के कर्ज माफ करने का भरोसा दिलाकर ऐसा मास्टर स्ट्रोक मारा है कि बीजेपी की लगभग डेढ़ दशक पुरानी फील्डिंग ही बिखरने लगी है।
मंदसौर गोलीकांड की पहली बरसी पर कांग्रेस की ओर से आयोजित श्रद्धांजलि सभा में पहुंचे राहुल गांधी ने प्रदेश की शिवराज सरकार को किसान, गरीब, मजदूर और युवा विरोधी करार दिया। साथ ही सत्ता में आने के 10 दिन के भीतर किसानों का कर्ज माफ करने का ऐलान किया।
राहुल के कर्जमाफी के ऐलान या क्रिकेट की भाषा में कहें तो मास्टर स्ट्रोक से बीजेपी की लाइन लेंथ पूरी तरह गड़बड़ा गई है। राहुल का एक तरफबीजेपी की सबसे बड़ी 'किसान हितैषी' होने की ताकत पर वार और दूसरी ओर बड़ी-बड़ी बाधाओं को लांघकर बड़ी संख्या में पहुंचे किसानों के जमावड़े ने सत्ताधारी दल के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी कर दी हैं।
राहुल की सभा के बाद बीजेपी में अचानक सक्रियता बढ़ गई है। पार्टी की चुनाव प्रबंधन समिति के प्रमुख नरेंद्र सिंह तोमर ने कार्यकर्ताओं से कहा कि वे लोगों के बीच जाएं और उनकी समस्याओं को जानकर समाधान के प्रयास करें। साथ ही यह जानें कि आमजन की बेहतरी के लिए और क्या किया जा सकता है। वहीं पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह ने राहुल गांधी के किसानों के कर्ज माफ करने वाले बयान पर तंज कसा और किसानों के कर्ज के बोझ को ही झुठला दिया।
उन्होंने कहा, "यहां किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज पर कर्ज मिलता है और 10 प्रतिशत बतौर अनुदान दिया जाता है। ऐसे में किसान कर्ज के बोझ तले कैसे दबेगा? राज्य में बीजेपी की सरकार बनने के बाद किसानों की स्थिति सुधरी है, सिंचाई सुविधा में बढ़ोतरी हुई है। यही कारण है कि पांच बार कृषि कर्मण पुरस्कार मिला है।"
मुख्यमंत्री शिवराज ने तो कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने के लिए यहां तक कह दिया कि उनकी सरकार ने ऐसे काम किए हैं, जिनके उदाहरण दुनिया में कहीं नहीं मिलते। उन्होंने कहा, "संघर्ष का शंख बज चुका है, हमें लड़ना है और जीतना है। लड़ाई के लिए जो हथियार चाहिए, वह सरकार की उपलब्धियों के रूप में हमारे हाथ में है। सरकार ने मुख्यमंत्री जनकल्याण योजना सहित किसान, युवा और महिलाओं के हित में ऐसे-ऐसे काम किए हैं जिनके दूसरे उदाहरण दुनिया में कहीं नहीं मिलते।"
राहुल की सभा के बाद 'डैमेज कंट्रोल' के लिए बीजेपी नेताओं के बयानों तक ही बात नहीं ठहरी है। पार्टी ने मीडिया में अपनी बात पूरी ताकत से उठाने के लिए पूर्व पत्रकार और सांसद प्रभात झा के हाथ में कमान सौंपी है। उन्हें प्रवक्ताओं, पैनलिस्टों के बीच समन्वय बनाने के लिए पार्टी के समग्र मीडिया का प्रभारी बनाया गया है।
वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस की प्रचार समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी सरकार को 'किसान विरोधी' बताते हुए कहते हैं, "इस सरकार के राज में किसानों का नहीं, दलालों और बिचौलियों का फायदा हुआ है। यह किसान को लूटने वाली सरकार है।"
वरिष्ठ पत्रकार भारत शर्मा का कहना है, "राज्य में बीजेपी के खिलाफ तीन स्तर की एंटी इंकम्बेंसी है। पहला, स्थानीय स्तर के नेताओं की राज्य सरकार और केंद्र सरकार से नाराजगी है। दूसरा, गोलीकांड के बाद से किसानों में बेहद नाराजगी है। तीसरा, उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा उपचुनाव में पार्टी की हार ने बीजेपी को सचेत किया है। वहां जातिवाद, संप्रदायवाद का जहर घोलने के बाद भी पार्टी जीत नहीं पाई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके बैबिनेट के धुआंधार प्रचार, मतदान से ठीक एक दिन पहले कैराना के पास बागपत में प्रधानमंत्री का रोड शो और मेरठ में उनकी रैली भी बीजेपी को जिता नहीं पाई। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा है। इसी बीच यहां राहुल ने सत्ता में आने पर कर्जमाफी की घोषणा कर दी, जिससे बीजेपी सकते में आ गई है।"
राहुल की मंदसौर सभा और उसमें किसानों की कर्जमाफी के वादे के बाद बीजेपी को किसानों को खुश करने की चुनौती है, मगर सूझ नहीं रहा कि क्या किया जाए। लिहाजा, बीजेपी बड़े बदलाव के साथ ज्यादा आक्रामक होने की नीति बनाने में जुट गई है।
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