सौ से अधिक लेखकों ने 'जेसीबी साहित्य पुरस्कार' को 'पाखंड' बताया, खुला पत्र लिखकर की निंदा
लेखक और पत्रकार जिया उस सलाम ने कहा कि जेसीबी, मोदी के भारत में अल्पसंख्यकों और हाशिए पर पड़े समूहों के प्रति राज्य प्रायोजित घृणा और धमकी का प्रतीक बन गया है। यह साहित्य पुरस्कार के जरिए वैधता हासिल करने की कोशिश कर रहा है। इसकी निंदा होनी चाहिए।
देशभर के सौ से अधिक लेखकों, अनुवादकों और प्रकाशकों ने एक खुला पत्र लिखकर 'जेसीबी साहित्य पुरस्कार' को कंपनी का पाखंड करार देते हुए इसकी आलोचना की है। लेखकों का कहना है कि इस पुरस्कार को वित्तपोषित करने वाली ब्रिटेन की बुलडोजर निर्माता कंपनी ने भारत और फलस्तीन में लोगों के 'घरों के भयावह विनाश में प्रमुख भूमिका निभाई' है।
लेखकों ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार ने विभिन्न भारतीय राज्यों में मुसलमानों के घरों, दुकानों और उपासना स्थलों को ध्वस्त करने के लिए 'व्यवस्थित अभियान' में लगातार जेसीबी बुलडोजर का इस्तेमाल किया है और इस परियोजना को 'बुलडोजर न्याय' भी नाम दिया गया है, जोकि बेहद परेशान करने वाला है।
यह पत्र 23 नवंबर को 'जेसीबी साहित्य पुरस्कार' के विजेता की घोषणा से दो दिन पहले गुरुवार को जारी किया गया है। प्रसिद्ध कवि एवं आलोचक के. सच्चिदानंदन, कवि एवं प्रकाशक असद जैदी, कवयित्री जेसिंता करकेट्टा, कवि एवं उपन्यासकार मीना कंडासामी और कवि एवं कार्यकर्ता सिंथिया स्टीफन समेत कई लोकप्रिय लेखकों ने इस खुले पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।
लेखकों ने कहा कि जेसीबी (इंडिया) ब्रिटिश निर्माण उपकरण निर्माता जेसी बैमफोर्ड एक्सकेवेटर्स लिमिटेड (जेसीबी) की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है, जो ब्रिटिश कंजर्वेटिव पार्टी के सबसे प्रभावशाली दाताओं में से एक रही है। लेखकों ने इस खुले पत्र में कहा, ‘‘इस संदर्भ में भारत में अति-दक्षिणपंथी हिंदू वर्चस्ववादी परियोजनाओं में जेसीबी उपकरणों का इस्तेमाल कोई आश्चर्य की बात नहीं है।’’
जेसीबी बुलडोजर का इस्तेमाल इजरायल के कब्जे वाले फलस्तीनी क्षेत्र में मकानों को ध्वस्त करने और बस्तियों के विस्तार के लिए भी किया जाता है। ऐसा जेसीबी के एजेंट और इजरायली रक्षा मंत्रालय के बीच हुए अनुबंध के कारण है। लेखकों का आरोप है कि जेसीबी ने ‘हाशिये पर पड़े लेखकों के लिए’ एक साहित्य पुरस्कार की स्थापना की है, जबकि साथ ही वह ‘दंड के रूप में इतने सारे लोगों के जीवन और आजीविका को नष्ट करने में भागीदार बना हुआ है।’
लेखकों ने कहा, ‘‘लेखक के तौर पर हम साहित्यिक समुदाय के समर्थन के ऐसे कपटपूर्ण दावों को बर्दाश्त नहीं करेंगे। यह पुरस्कार जेसीबी के हाथों पर लगे खून को नहीं धो सकता। भारत के उभरते लेखक इससे बेहतर पुरस्कार के हकदार हैं।’’ फलस्तीन और पश्चिम एशिया के कई लेखक, जिनमें फलस्तीनी उपन्यासकार इसाबेला हम्माद और कवि रफीफ जियादा, मिस्र के उपन्यासकार अहदाफ सौइफ, इराकी कवि एवं उपन्यासकार सिनान एंटून और फलस्तीनी साहित्य महोत्सव के निदेशक उमर रॉबर्ट हैमिल्टन भी हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल हैं।
आयरिश उपन्यासकार और पटकथा लेखक रोनन बेनेट, उपन्यासकार एंड्रयू ओ'हेगन और उपन्यासकार एवं पटकथा लेखक निकेश शुक्ला भी हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल हैं। पत्र में कहा गया है, ‘‘यह कितनी विडंबना है कि भारत में जेसीबी शब्द उस मशीन के रूप में अधिक लोकप्रिय है जिसने भारत के कुछ राज्यों में आम नागरिकों के सैकड़ों हजारों घरों को ध्वस्त करने में मदद की है। इसे भारतीय साहित्य के लिए एक बहुत ही 'प्रतिष्ठित' साहित्यिक पुरस्कार के साथ जोड़कर देखना अवास्तविक है।’’
कवि सिंथिया स्टीफन ने कहा, ‘‘भारी भू-संचालन उपकरण चाकू की तरह होते हैं। इसका उपयोग मानव के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण में किया जा सकता है, लेकिन हाल के वर्षों में इसका उपयोग गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों के जीवन को नष्ट करने के लिए अधिक किया गया है। हम कंपनी और पुरस्कार देने वालों की ओर से इस तरह के पाखंड की निंदा करते हैं।’’
लेखक और पत्रकार जिया उस सलाम ने कहा, ‘‘ जेसीबी, मोदी (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी) के भारत में अल्पसंख्यकों और हाशिए पर पड़े समूहों के प्रति राज्य प्रायोजित घृणा और धमकी का प्रतीक बन गया है। यह साहित्य पुरस्कार के जरिए वैधता हासिल करने की कोशिश कर रहा है। इसका स्वतंत्र अभिव्यक्ति, विविधता और बहुलवाद को बढ़ावा देने से कोई लेना-देना नहीं है। लेखकों के रूप में यह महत्वपूर्ण है कि हम मानवाधिकारों के इस घोर उल्लंघन के खिलाफ आवाज उठाएं।’’
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