साल 2018 के साथ ही मोदी के करिश्मे का भी हो चुका है अवसान, इस साल तो देश मांगेगा हिसाब

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव में कड़ी चुनौतियों का सामान करना पड़ेगा। हाल के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को सत्ता गंवानी पड़ी। वहीं आर्थिक मोर्चे पर भी सरकार के सामने गंभीर चुनौतियां हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

पिछले साल यानी 2017 के अंत तक बीजेपी के सामने विपक्ष की कोई खास बिसात नजर नहीं आ रही थी, इसकी मिसाल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिला अजेय बहुमत कहा जा सकता है। नोटबंदी और जम्मू-कश्मीर स्थित नियंत्रण रेखा के पार आतंकवादी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक का उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने फायदा उठाया। इन दोनों घटनाओं के बाद जिन राज्यों के चुनावों में बीजेपी बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर नहीं आई, वहां भी सत्ता हथियाने में सफल रही।

लेकिन अपने ही गृह राज्य गुजरात में नरेंद्र मोदी अपनी पार्टी बीजेपी का किला बमुश्किल बचा पाए। कांग्रेस से उन्हें कड़ी चुनौती मिली और पार्टी 100 सीट भी हासिल नहीं कर पाई। यह चुनाव कांग्रेस में वापस नई जान आने का संकेत था।

उत्तर प्रदेश में बीजेपी के गढ़ रहे गोरखपुर के साथ-साथ फुलपुर में हुए लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की संयुक्त ताकत से शिकस्त मिलने से बीजेपी को गंभीर झटका लगा। इस उपचुनाव में उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा सीट पर भी राष्ट्रीय लोकदल के हाथों बीजेपी को हार मिली। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में हुए संसदीय-उपचुनाव में भी कांग्रेस ने बीजेपी को शिकस्त दी।

कांग्रेस को अब बीजेपी की चाल समझने में देर नहीं लगी और कर्नाटक में सत्ता में काबिज रहने के लिए मुख्यमंत्री का पद जनता दल सेक्यूलर को दे दिया। इसी साल वहां हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के बाद भी सत्ता कब्जाने से वंचित रही है।

हाल ही में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने हिंदी भाषी राज्य मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी को शिकस्त देकर सत्ता पर कब्जा जमाया। इससे विपक्षी दलों का मनोबल ऊंचा हुआ है। लिहाजा, अगले लोकसभा चुनाव में हालिया विधानसभा चुनावों के नतीजों का असर देखने को मिल सकता है।

पूरे साल में 13 सीटों पर हुए लोकसभा उपचुनावों में बीजेपी को सात सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है। वहीं, 2014 के बाद बीजेपी को नौ संसदीय सीटें गंवानी पड़ी हैं। बीजेपी सिर्फ महाराष्ट्र के पालघर और कर्नाटक के शिमोगा सीट पर ही जीत हासिल कर पाई है।

पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 282 सीटों पर जीत दर्ज की थी, मगर इस समय बीजेपी के पास 268 सीटें ही रह गई हैं। विधानसभा चुनावों और लोकसभा उपचुनावों के परिणाम इस बात के संकेत हैं कि 2014 की मोदी लहर शिथिल पड़ती जा रही है, इसलिए भगवा दल के लिए आगे का सफर आसान नहीं हो सकता है।

उधर, उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा जैसी बड़ी पार्टियां बीजेपी विरोधी दलों का गठबंधन बनाने पर विचार कर रही हैं, जबकि बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की अगुवाई में विपक्षी ताकतें एकजुट हो रही हैं। इन दोनों प्रदेशों से लोकसभा के कुल 543 सदस्यों में से 120 सदस्य चुनकर आते हैं। 545-सदस्यीय लोकसभा में दो सदस्य मनोनीत किए जाते हैं।

बीजेपी की अगुवाई में केंद्र सरकार अपनी मुद्रा, उज्‍जवला और सौभाग्य जैसी योजनाओं और जनधन बैंक खाते खुलवाने के अलावा, सर्जिकल स्ट्राइक, वन रैंक वन पेंशन और नोटबंदी व जीएसटी जैसे फैसलों को बीते साढ़ चार साल की उपलब्धियों के तौर पर गिना रही है। हालांकि सत्ताधारी पार्टी की सफलता की राह में आगामी लोकसभा चुनाव में किसानों के मसले, नोटबंदी और जीएसटी के प्रभाव और एनपीए संकट रोड़ा अटकाने वाले मुद्दे बन सकते हैं।

इसके अलावा आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मोदी के अच्छे दिन के वादे को लेकर पूछे जाने वाले सवालों का भी जवाब देना पड़ेगा। मोदी ने पिछले आम चुनाव के दौरान हर साल एक करोड़ नौकरियां देने और विदेशों से काला धन लाकर हर आदमी के बैंक खाते में 15 लाख रुपये जमा करवाने का वादा किया था।

इस प्रकार, बेरोजगारी से लेकर काला धन और किसानों की दुरवस्था के मुद्दे अगले आम चुनाव में छाए रह सकते हैं। उधर, विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के मसले को लेकर सरकार पर दबाव है। दोनों संगठन सरकार से कानून या अध्यादेश लाकर राम मंदिर निर्माण की मांग करते रहे हैं।

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