कोरोना की अफरातफरी में जमाखोरों के आगे बेबस मोदी सरकार, अहम बैठक से बीजेपी शासित राज्यों ने ही काटी कन्नी

कोरोना से पैदा हुए हालात को लेकर दावा किया जा रहा है कि पीएम मोदी खुद हालात पर नजर बनाए हुए हैं, लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जिस टास्कफोर्स की प्रभारी बनाई गई हैं, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक उसके सदस्यों के नामों को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका था।

फोटोः सोशल मीडिया
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उमाकांत लखेड़ा

कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ने के कारण देशव्यापी अफरातफरी का माहौल है, जिसकी वजह से आवाजाही पर पाबदिंयों की आड़ में बाजारों और मंडियों में आवश्यक वस्तुओं और खाने-पीने की चीजों की जमाखोरी रोकने के लिए मोदी सरकार ने लंबे इंतजार के बाद भी कोई कड़े कदम नहीं उठाए हैं। हैरत यह है कि शुक्रवार को केंद्र सरकार की ओर से राज्यों में आम लोगों के काम आने वाली जरूरी चीजों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए हुई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से मात्र 12 राज्यों ने ही शिरकत की। केवल जम्मू-कश्मीर और दमन यानी मात्र दो केंद्र शासित प्रदेशों ने ही इस कसरत में शिरकत की।

सबसे रोचक बात तो यह है कि बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, असम और कर्नाटक जैसे अहम राज्यों ने इस टेलीकॉन्फ्रेंसिंग में भागीदारी करना तक जरूरी नहीं समझा। जिन राज्यों ने इस कसरत में दिलचस्पी दिखाई, उनमें आंध्र प्रदेश, बिहार, गोवा, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तराखंड और केरल भी शामिल थे। बैठक में कई प्रदेश ऐसे थे जिन्होंने शुक्रवार की टेलिकॉन्फ्रेंसिंग में कहा कि उनके प्रदेशों में बाहर से ट्रक और ट्रेनों के जरिए माल की आवाजाही में बाधाएं खड़ी होने से उनके यहां हाहाकार मच सकता है। केरल ने खास तौर पर इस बाबत केंद्र सरकार का ध्यान खींचा है।

मोदी सरकार भले ही दावा कर रही है कि जरूरी वस्तुओं की सप्लाई जारी है लेकिन कई राज्यों से मिल रही प्रतिकूल खबरों ने पीएमओ की चिंताओं को बढ़ा दिया है। सूत्रों ने माना है कि बड़ी तादाद में साबुन, मास्क, सैनेटाइजर, टॉयलेट क्लीनर जैसी वस्तुओं की किल्लत हो गई। देशभर से शिकायते हैं कि इनके दोगुने-तीगुने दाम वसूले जा रहे हैं। भले दावा किया जा रहा है कि पीएम मोदी खुद हालात पर नजर बनाए हुए हैं, लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जिस टास्कफोर्स की प्रभारी बनाई गई हैं, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक उसके सदस्यों के नामों को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका था।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में आपदा प्रबंधन मामलों के सलाहकार प्रोफेसर विनोद कुमार शर्मा कहते हैं कि लोगों को इस बात के लिए जागरूक किया जाना जरूरी है कि वे अपने घरों में जमाखोरी न करें। उनका मानना है कि राज्य सरकारों को अनावश्यक जमाखोरी करने वालों पर रोक के अलावा यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि बाजार में दूध, फल-सब्जियों और राशन-पानी की आपूर्ति निरंतर जारी रहे। बकौल उनके सरकार को इस आपदा से निपटने के लिए व्यापक जनभागीदारी और जनसहयोग पर जोर देना होगा।


प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में देशवासियों से यह अपील भी की थी कि लोग घबराहट में अपने घरों में खाने-पीने की चीजों की जमाखोरी न करें। प्रधानमंत्री के इस आग्रह का लोगों पर कोई असर नहीं हुआ। देश के कई प्रदेशों से जो खबरें मिल रही हैं, उसका जमीन पर उल्टा असर हो रहा है। सरकार के एक अधिकारी ने स्वीकार किया कि देश के कई प्रदेशों और शहरों से जमाखोरी होने की चिंताजनक सूचनाएं मिल रही हैं।

आगामी 22 मार्च को जनता कर्फ्यू से पहले सभी मॉल, ज्यादातर बाजार, दूकानें और व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद रखने के निर्देशों के बाद आम लोगों में जरूरी सामान की चिंता बढ़ गई है। बाजार बंदी के दौरान राशन पानी की किल्लत न हो, यह सुनिश्चित करने की चिंता केंद्र और राज्य सरकारों के एजेंडे पर गंभीर प्राथमिकताओं में अब तक नहीं दिखी है।

देश में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के बारे में केंद सरकार कितनी गंभीर है, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जमाखोरी का सामना करने के लिए राज्यों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में मात्र 12 राज्य ही शामिल हुए। इतनी कम तादाद में राज्य सरकारों की शिरकत के बारे में पूछे जाने पर एक अधिकारी ने माना कि चूंकि स्वयं खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री ने यह काम खुद करने के बजाय मंत्रालय के सचिव को सौंप दिया था, ऐसी सूरत में राज्यों ने इस वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।

केंद्रीय खाद्य एवं आपूर्ति सचिव पवन अग्रवाल द्वारा दिल्ली में अपने कार्यालय से की गई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग मेंकेंद्र शासित प्रदेष दमन और जम्मू कश्मीर के अलावा 10 राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, गोवा, हरियाणा, केरल, महाराष्ट्र,पंजाब और उत्तराखंड शामिल थे। मंत्रालय के सचिव ने यह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पीएम मोदी के 19 मार्च की शाम को राष्ट्र के नाम संबोधन के अगले दिन की थी।


इस बात पर आश्चर्य है कि देश में लोगों की दैनिक जरूरत की वस्तुओं की निर्बाध उपलब्धता सुनिश्चित करने का काम मुख्यमंत्री स्तर से होना चाहिए था। इस कदम का निचले स्तर पर खाद्य आपूर्ति निर्बाध बनाए रखने के लिए नियुक्त मशीनरी पर दबाव पड़ता। हालांकि मंत्रालय के अधिकारियों का बचाव में कहना है कि यह बैठक चूंकि अधिकारियों के स्तर पर ही नीयत की गई थी, इसलिए राज्य के अधिकारी स्तर के अधिकारियों से ही सचिव की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में मौजूद रहने की अपेक्षा की गई थी।

वहीं विशेषज्ञों की मांग है कि प्रधानमंत्री देश के सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दें कि वे इस नाजुक मौके पर लाभ उठाने वाले जमाखोरों और मुनाफाखोरों पर कड़ी नजर रखें। जमाखोरी को नाकाम बनाने का एक अहम विकल्प यह भी है कि एक परिवार के लिए सप्ताह तक के राशन के कम से कम 5-7 किलोग्राम के छोटे पैकेट्स बनाकर तैयार कराए जाएं। कोई परिवार या बीमार बुजुर्ग नागरिक अगर जिलाधिकारी की हेल्पलाईन पर फोन कर परिवार के भूखे होने की जानकारी दे तो ऐसे बुजुर्गों, बीमार, बेबस और असहाय लोगों के घरों पर फौरी राहत राशन के पैकेट पहुंचाने की व्यवस्था हो।

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