फिर झलका मोदी सरकार का एससी-एसटी प्रेम, सुप्रीम कोर्ट में कहा, प्रमोशन में आरक्षण पर हो पुनर्विचार 

सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन में एससी-एसटी वर्ग को आरक्षण देने के मामले पर सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखते हुए केंद्र सरकार ने कहा कि एससी-एसटी तबका 1000 साल से भी ज्यादा लंबे समय से प्रताड़ना झेलता आ रहा है और आज भी यह प्रताड़ना जारी है।

फोटो: सोशल मीडिया 
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नवजीवन डेस्क

सरकारी नौकरी में प्रमोशन में एससी-एसटी वर्ग को आरक्षण के मामले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष चल रही सुनवाई में केद्र सरकार ने प्रमोशन में आरक्षण देने को लेकर सकारात्मकता दिखाई है। केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि प्रमोशन में आरक्षण देना सही है या गलत इसपर वह टिप्पणी नहीं करना चाहते, लेकिन यह तबका 1000 से अधिक सालों से प्रताड़ना झेल रहा है। और आज भी इस तबके को प्रताड़ना झेलना पड़ रहा है। अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि 2006 के फैसले पर पुनर्विचार की तत्काल जरूरत है।

इससे पहले मामले की सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश आरएफ नरीमन, न्यायाधीश कुरियन जोसेफ, न्यायाधीश संजय किशन कौल और इंदू मल्होत्रा की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा कि एससी-एसटी आरक्षण के विषय पर 12 साल पुराने फैसले की समीक्षा की क्या जरूरत आ गई है? इस पर सरकार की ओर से जवाब देते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि 12 साल पुराने 2006 के एम नागराज मामले में दिया गया फैसला एससी-एसटी के प्रमोशन में बाधा पहुंचा रहा है। इसलिए नागराज मामले में संविधान पीठ के दिए फैसले की समीक्षा की आवश्यकता आ पड़ी है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2006 के नागराज मामले के फैसले के मुताबिक एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण सरकार तभी दे सकती है, जब आंकड़ों के आधार पर ये तय हो कि उनका प्रतिनिधित्व कम है और वे प्रशासन की मजबूती के लिए जरूरी है। इस पर सरकार की ओर से अटॉनी जनरल ने कहा कि हम ये कैसे तय करेंगे कि उनका प्रतिनिधित्व कम है? क्या ये हर पद के आधार पर होगा या फिर पूरे विभाग के हिसाब से? या पूरे विभाग को मानक माना जाएगा?

अटॉनी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि प्रमोशन में आरक्षण देना सही है या गलत इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता, लेकिन यह तबका 1000 से अधिक सालों से झेल रहा है। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि एससी-एसटी तबके को आज भी प्रताड़ना झेलना पड़ रहा है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि 2006 के फैसले पर पुनर्विचार की तत्काल आवश्यकता है।

केंद्र सरकार ने कहा कि साल में होने वाले प्रमोशन में एससी-एसटी कर्मचारियों के लिए 22.5 फीसदी आरक्षण मिलनी चाहिए। ऐसा करने से ही उनके प्रतिनिधित्व की कमी की भरपाई हो सकती है। केंद्र सरकार ने कहा कि प्रमोशन देने के समय एससी-एसटी वर्ग के पिछड़ेपन का टेस्ट नहीं होना चाहिए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इंद्रा साहनी के फैसले में कहा था कि पिछड़ापन एससी-एसटी पर लागू नहीं होता क्योंकि उनको पिछड़ा माना ही जाता है।

गौरतलब है कि हाल ही में केंद्र सरकार ने एससी-एसटी अत्याचार रोकथाम कानून में संशोधन लाने का फैसला किया है। इसी साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी कानून पर दिए गए एक फैसले के बाद देश भर के एससी-एसटी समुदाय में सरकार के खिलाफ नाराजगी देखने को मिल रही थी। जिसको देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने संसद के मौजूदा मॉनसून सत्र में ही ये संशोधन विधेयक लाने का फैसला किया है। इसके बाद अब एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण के मामले में केंद्र के सकारात्मक रुख को आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए उठाया गया कदम माना जा रहा है।

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Published: 03 Aug 2018, 5:29 PM