नेहरू की विरासत पर मोदी सरकार का बढ़ता हमला, जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फंड का कार्यालय खाली कराने की कोशिश
11 सितंबर 2018 को डॉयरेक्टोरेट ऑफ एस्टेट ने जेएनएमएफ को पत्र लिखकर 24 सितंबर 2018 तक कार्यालय खाली करने का आदेश दिया था, अपनी असहमति प्रकट करते हुए जिसका जवाब 20 सितंबर 2018 को जेएनएमएफ ने डॉयरेक्टोरेट ऑफ एस्टेट को भेज दिया था।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की विरासत और स्मृतियों से छेड़छाड़ करने की मोदी सरकार की कोशिशें तेज हो गई हैं। पिछले कुछ महीनों से नेहरू की याद में बने नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी के मूल मकसद को खत्म करने की कार्रवाई चल रही है और वहां भारत के सभी प्रधानमंत्रियों के काम को रेखांकित करने वाला संग्रहालय बनाया जा रहा है। इसे लेकर कांग्रेस पार्टी, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह सहित कांग्रेस के कई नेता अपनी आपत्ति जता चुके हैं। एक तरह से देखा जाए तो मोदी सरकार और उसके मंत्री अक्सर नेहरू के योगदान की उपेक्षा करते हैं या उसे भूलने का ढोंग करते हैं।
ताजा मामला जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फंड (जेएनएमएफ) का है। 17 अगस्त 1964 को नेहरू की स्मृति में स्थापित जेएनएमएफ ट्रस्ट का कार्यालय तीन मूर्ति हाउस में है जो भारत के प्रथम प्रधानमंत्री की रिहायश थी। उसी संपति पर नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी (एनएमएमएल) है जिसकी स्थापना 1 अप्रैल 1966 को हुई थी।
11 सितंबर 2018 को भारत सरकार के शहरी कार्य मंत्रालय के एक विभाग डॉयरेक्टोरेट ऑफ एस्टेट ने जेएनएमएफ को पत्र लिखकर 24 सितंबर 2018 तक कार्यालय खाली करने का आदेश दिया था, अपनी असहमति प्रकट करते हुए जिसका जवाब 20 सितंबर 2018 को जेएनएमएफ ने डॉयरेक्टोरेट ऑफ एस्टेट को भेज दिया था। यह खबर लिखे जाने तक डॉयरेक्टोरेट ऑफ एस्टेट की तरफ से कोई और प्रतिक्रिया जेएमएमएफ को प्राप्त नहीं हुई है। उनके पत्र के अनुसार, आज कार्यालय खाली करने की आखिरी तारीख थी और वहां कोई ऐसी गतिविधि भी दिखाई नहीं दे रही है।
डॉयरेक्टोरेट ऑफ एस्टेट ने जेएनएमएफ के प्रशासनिक सचिव एन बालाकृष्णन को लिखे अपने पत्र में कुछ ऐसे तथ्यों का हवाला दिया था जिसका जेएनएमएफ ने अपने जवाब में जोरदार खंडन किया है। डॉयरेक्टोरेट ऑफ एस्टेट का कहना था कि 13 जनवरी 1967 के एक ज्ञापन के अनुसार, उसने तीन मूर्ति एस्टेट नाम की संपति को अपने अधिकार में ले लिया था। जेएनएमएफ की तरफ से डॉ बालाकृष्णन ने अपने जवाब में लिखा है कि यह जानकारी तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत है। संस्था ने उसी ज्ञापन को उद्धृत किया, “तीन मूर्ति हाउस के पूर्व का परिसर जो तीन मूर्ति हाउस की चारदीवारी के भीतर है, वो नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी की संपति बनी रहेगी।”
डॉयरेक्टोरेट ऑफ एस्टेट ने जेएनएमएफ के कार्यालय को गैर-आधिकारिक दखल करार देते हुए अपने पत्र में यह भी कहा था कि 23 अगस्त 2018 को एनएमएमएल सोसायटी ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर जेएनएमएफ से कार्यालय को खाली कराने का आग्रह किया था।
जेएनएमएफ ने बहुत विस्तार से इस बिंदु का जवाब देते हुए एनएमएमएल और उनके बीच के 51 साल पुराने रिश्ते का ब्यौरा दिया है जो परिसर में मौजूद दो मकानों पर उनके आधिकारिक दखल की पुष्टि करता है।
जेएनएमएफ ने लिखा, “एनएमएमएल ने जेएनएमएफ को तीन मूर्ति हाउस के पूर्व में स्थित दो मकानों का इस्तेमाल करने और दखल करने की आधिकारिक इजाजत दी थी...इस फैसले पर 1967 से अब तक न कोई सवाल उठा है और न ही इसे चुनौती दी गई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि एनएमएमएल और जेएनएमएफ के उद्देश्य एक हैं और दोनों एक दूसरे की मदद करते हैं।”
संस्था ने यह भी जोड़ा कि एनएमएमएल को उसके उद्देश्यों को पूरा करने में जेएनएमएफ ने काफी मदद की। 1968 से ही जवाहरलाल नेहरू और उनके पिता मोतीलाल नेहरू सहित परिवार के अन्य सदस्यों से जुड़े पुराने दस्तावेजों, तस्वीरों को लाइब्रेरी के अभिलेखागार के लिए मुहैया कराया। 1984 में बच्चों और युवाओं के भीतर वैज्ञानिक चेतना को बढ़ावा देने के लिए बनाए गए नेहरू तारामंडल को भी 2005 में एनएमएमएल को उपहारस्वरूप दे दिया। इसके अलावा भी संस्था ने एनएमएमल को कई और मदद पहुंचाई है।
संस्था ने परिसर की दो इमारतों पर अपना अधिकार साबित करते हुए डॉयरेक्टोरेट ऑफ एस्टेट से यह आग्रह किया कि इस इतिहास को देखते हुए वो अपना 11 सितंबर को भेजा पत्र वापस लें।
इस पूरे मसले पर संस्था के सचिव सुमन दुबे ने नवजीवन को बताया,“हमारा एनएमएमएल से बहुत लंबा संबंध है और हमने लाइब्रेरी और पूरे संस्थान के विकास में बहुत योगदान दिया है। हम उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार हमारे आग्रह को मानते हुए अपना आदेश वापस ले लेगी।”
उन्होंने यह भी बताया कि अभी तक उन्हें सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है और जब उन्हें कोई जवाब प्राप्त होगा तो फिर वे अगले कदम के बारे में विचार करेंगे।
अपनी स्थापना से लेकर अब तक जेएनएमएफ लगातार नेहरू के विचारों को आगे बढ़ाने और राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका से देशवासियों को अवगत कराने के लिए कई कार्य करता रहा है। इनमें नेहरू से जुड़े दस्तावेजों का प्रकाशन, वरिष्ठ विद्वानों और युवा अध्येताओं को शोध-वृति देना और समय-समय प्रासंगिक विषयों पर सेमीनारों का आयोजन करना शामिल है।
फिलहाल आगे की कार्रवाई के बारे में कहना मुश्किल है, लेकिन इतना तो तय है कि देश के पहले प्रधानमंत्री और आधुनिक भारत के निर्माता के नाते नेहरू की विरासत और स्मृतियों की रक्षा और उसे आगे बढ़ाना देश का कर्तव्य है और यह उम्मीद की जा सकती है कि छोटी राजनीति इसके आड़े नहीं आएगी।
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