डिजिटल मीडिया पर अंकुश लगाने की तैयारी में मोदी सरकार! नया विधेयक पेश करने की योजना, जानें क्या है इसका मतलब
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार जल्द ही कैबिनेट के सामने बदलाव के साथ प्रेस और पत्रिका पंजीकरण विधेयक, 2019 का प्रस्ताव रखने जा रही है। नया विधेयक औपनिवेशिक युग के प्रेस और पुस्तकों के पंजीकरण अधिनियम, 1867 की जगह लेगा।
केंद्र की मोदी सरकार ने डिजिटल मीडिया की आजादी पर अंकुश लगाने को लेकर कवायद तेज कर दी है। सरकार 155 साल पुराने ‘प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण कानून’ में बदलाव करने की तैयारी में है। इसकी जगह पर सरकार एक नया विधेयक पेश करने की योजना बना रही है। नए विधेयक में डिजिटल समाचार मीडिया उद्योग भी शामिल किया जाएगा। खबरों के मुताबिक, अगर ऐसा हुआ तो डिजिटल मीडिया उद्योग को प्रेस रजिस्ट्रार जनरल के साथ रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य हो जाएगा।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार जल्द ही कैबिनेट के सामने बदलाव के साथ प्रेस और पत्रिका पंजीकरण विधेयक, 2019 का प्रस्ताव रखने जा रही है। नया विधेयक औपनिवेशिक युग के प्रेस और पुस्तकों के पंजीकरण अधिनियम, 1867 की जगह लेगा, जो वर्तमान में देश में समाचार पत्र और प्रिंटिंग प्रेस उद्योग को नियंत्रित करता है।
नए विधेयक के पीछे सरकार का मकसद क्या है?
नए विधेयक में डिजिटल समाचार पोर्टल्स को समाचार पत्रों के बराबर लाने का प्रस्ताव है। मतलब यह कि अब तक जिस तरीके से समाचार पत्रों पर सरकार नज़र रख रही थी, ठीक उसी तरह इस विधेयक के संसद से पास हो जानें और कानूनी जामा पहनाए जाने के बाद न्यूज़ पोर्टल्स पर भी सरकार शिकंजा कस सकती है। अगर यह विधेयक संसद से पास होकर कानूनी रूप ले लेता है तो बकायदे इस कानून के जरिए न्यूज़ पोर्टल्स को प्रेस रजिस्ट्रार जनरल के साथ पंजीकृत करने के लिए निर्देशित किया जाएगा। मौजूदा समय में डिजिटल न्यूज़ प्लेटफॉर्म के लिए ऐसा कोई रजिस्ट्रेशन नहीं किया जाता है। जाहिर कई ऐसे कई न्यूज़ पोर्टल्स हैं जो समय-समय पर सरकार की कमियों और उसकी गलत नीतियों को प्रमुखता से उठाते रहे हैं। ऐसे न्यूज़ पोर्टल्स सरकार की नजर में खटकते भी रहे हैं।
विधेयक के मसौदे में क्या है?
केंद्र सरकार ने साल 2019 में प्रेस और आवधिक विधेयक के पंजीकरण का मसौदा तैयार किया था। इस विधेयक में ‘डिजिटल मीडिया पर समाचार’ को 'डिजिटल प्रारूप में समाचार’ के रूप में परिभाषित किया गया था, जिसे इंटरनेट, कंप्यूटर या मोबाइल नेटवर्क पर प्रसारित किया जा सकता है और इसमें टेक्स्ट, ऑडियो, वीडियो और ग्राफिक्स शामिल हैं। उस समय सरकार द्वारा लाए गए मौसेद पर काफी बहस भी हुई थी और इसका विरोध भी जताया गया था।
मसौदा विधेयक में उन्हीं लोगों को प्रकाशन का अधिकार दिया गया है, जिन्हें आतंकवादी अधिनियम या गैरकानूनी गतिविधि से जुड़े अपराध या ‘राज्य की सुरक्षा के खिलाफ कुछ भी करने’ के लिए किसी भी अदालत द्वारा दोषी नहीं ठहराया गया।
मसौदे में कहा गया है कि ‘आतंकवादी अधिनियम’ या ‘गैरकानूनी गतिविधि’ को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (के) और (ओ) के अनुसार परिभाषित किया जाएगा। प्रस्तावित मसौदा मजिस्ट्रेट जैसे स्थानीय अधिकारियों को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने या कानून के प्रावधानों के उल्लंघन के कारण उपकरण जब्त करने की शक्तियां नहीं देता है।
नए विधेयक में प्रेस रजिस्ट्रार की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है जिसके पास कानून में उल्लंघन पाने पर प्रकाशन के पंजीकरण को रद्द करने अधिकार होगा। ‘ई-पेपर के पंजीकरण की सरल प्रणाली’ का प्रस्ताव रखते हुए मसौदा विधेयक यह भी कहता है कि ‘प्रेस रजिस्ट्रार जनरल’ द्वारा समय-समय पर समाचार पत्रों के साथ पत्रिकाओं के भी शीर्षक और पंजीकरण की प्रक्रिया को तय किया जाएगा।
इसका मुख्य नियंत्रक प्राधिकारी प्रेस रजिस्ट्रार जनरल होगा जिसे समाचार पत्रों और पत्रिकाओं का सालाना लेखा-जोखा मंगाने, अखबारों के प्रसार की पुष्टि करने और पत्रिकाओं के पंजीकरण को संशोधित करने, रद्द करने या निलंबित करने का अधिकार होगा। इस अधिकारी के पास जुर्माना लगाने और दंड देने का भी अधिकार होगा।
विधेयक का मसौदा सामने आने के बाद उस समय आरोप लगे थे कि इस मसौदे के जरिए सरकार डिजिटल समाचार मीडिया को 'नियंत्रित' करने की कोसिश में जुटी है। विरोध के बीच केंद्र सरकार ने मसौदा विधेयक को आगे नहीं बढ़ाया था। लेकिन अब इसे कानून को मंजूरी देने के लिए कैबिनेट के सामने रखा जा सकता है, ताकि जल्द ही संसद में लाया जा सके।
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