इलेक्टोरल बॉन्ड से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा! आरबीआई ने किया था विरोध, मोदी सरकार ने नहीं मानी राय: रिपोर्ट
आरबीआई ने सोमवार यानि 30 जनवरी, 2017 को अपना कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए इस मेल का जवाब दिया। आरबीआई ने कहा कि चुनावी बॉन्ड और आरबीआई अधिनियम में संशोधन करने से एक गलत परंपरा शुरू हो जाएगी।
इलेक्टोरल बॉन्ड पर बड़ा खुलासा हुआ है। न्यूज वेबसाइट न्यूज लॉन्ड्री ने दावा किया है कि साल 2017 के बजट से ठीक पहले खुद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने इलेक्टोरल बॉन्ड का विरोध किया था। लेकिन मोदी सरकार ने आरबीआई की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा कर दी।
न्यूज लॉन्ड्री के मुताबिक 2017 का बजट पेश होने से सिर्फ चार दिन पहले, शनिवार के दिन एक वरिष्ठ टैक्स अधिकारी को वित्त मंत्री द्वारा संसद में पेश किए जाने वाले दस्तावेज में एक गड़बड़ी नजर आई।
1 फरवरी, 2017 को तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली अपने बजट भाषण में इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा करने वाले थे। इलेक्टोरल बॉन्ड यानि एक विवादास्पद लेकिन कानूनी तौर पर स्वीकृत ऐसा औजार जिसके जरिए बड़े कारपोरेशन और अन्य कानूनी संस्थाएं अपनी पहचान उजागर किए बिना असीमित मात्रा में धन राजनीतिक दलों को मुहैया करवा सकते हैं।
लेकिन इसमें एक अड़चन थी। एक वरिष्ठ टैक्स अधिकारी ने 28 जनवरी, 2017 को वित्त मंत्रालय में अपने वरिष्ठ अधिकारियों को एक आधिकारिक नोट लिखकर आगाह किया कि- “गुमनाम चंदे को कानूनी रूप से वैध बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम में संशोधन करना होगा।” उन्होंने इस प्रस्तावित संशोधन का ड्राफ्ट बना कर वित्त मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के पास अनुमोदन के लिए भी भेज दिया।
उसी दिन दोपहर में 1:45 बजे, वित्त मंत्रालय के एक आधिकारी ने रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर रामा सुब्रमण्यम गांधी- जो कि उस वक्त रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ अधिकारी थे- को प्रस्तावित संशोधन पर "त्वरित टिप्पणी का आग्रह" करते हुए पांच लाइन का एक काम चलाऊ मेल भेज दिया।
आरबीआई ने सोमवार यानि 30 जनवरी, 2017 को अपना मुखर विरोध दर्ज कराते हुए इस मेल का जवाब दिया। आरबीआई ने कहा कि चुनावी बॉन्ड और आरबीआई अधिनियम में संशोधन करने से एक गलत परंपरा शुरू हो जाएगी। इससे मनी लॉन्ड्रिंग को प्रोत्साहन मिलेगा, भारतीय मुद्रा पर भरोसा टूटेगा और नतीजतन केंद्रीय बैंकिंग कानून के मूलभूत सिद्धांतों पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
भारत की बैंकिंग व्यवस्था पर असर
आरबीआई के मुताबिक "इस कदम से कई गैर-संप्रभु इकाइयां धारक दस्तावेज (बेयरर इंस्ट्रूमेंट) जारी करने के लिए अधिकृत हो जाएंगी। इस तरह की कोई भी व्यवस्था एकमात्र आरबीआई द्वारा धारक दस्तावेज यानि नकद जारी करने के विचार के खिलाफ है। धारक दस्तावेज करेंसी का विकल्प बन सकते हैं, और यदि ये बड़ी मात्रा में जारी होने लगे तो आरबीआई द्वारा जारी किये करेंसी नोटों से भरोसा कम कर सकते हैं। आरबीआई की धारा 31 में किसी भी तरह का संशोधन केंद्रीय बैंकिंग कानून के मूलभूत सिद्धांत को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है और इससे एक गलत परंपरा स्थापत होगी।"
कौन दे रहा चंदा ये पता लगाना मुश्किल
आरबीआई ने लिखा, "इसके जरिए पारदर्शिता का अपेक्षित उद्देश्य भी हासिल नहीं होगा, क्योंकि संभव है कि इसका (बेयरर इंस्ट्रूमेंट) असली खरीददार कोई और हो और राजनीतिक पार्टी को वास्तविक योगदान देने वाला कोई तीसरा व्यक्ति हो। ये धारक बॉन्ड हैं और डिलीवरी के दौरान हस्तांतरित किये जा सकते हैं। इसलिए वास्तव में कौन राजनीतिक पार्टी में दान दे रहा है इसका पता नहीं लगेगा।"
"अगर इसका इरादा यह है कि इस बॉन्ड को खरीदने वाला व्यक्ति, संस्था या इकाई इसे किसी राजनीतिक पार्टी को दान में देगी, तो आज की व्यवस्था में एक सामान्य चेक, डिमांड ड्राफ्ट या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल भुगतान के जरिए इसे किया जा सकता है। इलेक्टोरल धारक बॉन्ड की न तो कोई खास जरूरत है और न ही इसका कोई विशेष लाभ, वो भी एक स्थापित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बिगाड़ कर।“
न्यूज वेबसाइट न्यूज लॉन्ड्री के मुताबिक जिस दिन आरबीआई ने वित्त मंत्रालय को चिट्ठी लिखी उसी दिन आनन-फानन में तत्कालीन राजस्व सचिव हंसमुख अधिया ने एक पैराग्राफ का संक्षिप्त जवाब भेज कर आरबीआई की सभी आपत्तियों को खारिज कर दिया।
वित्त सचिव तपन रे और वित्त मंत्री अरुण जेटली को लिखे नोट में अधिया ने कहा, "मुझे लगता है कि आरबीआई दानदाता की पहचान को गुप्त रखने के उद्देश्य से लाए जा रहे प्रस्तावित प्री-पेड बेयरर इंस्ट्रूमेंट के तंत्र को ठीक से समझ नहीं पाया है, जबकि उसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि जो भी दान देगा वह उस व्यक्ति के टैक्स पेड पैसे से ही होगा।"
जाहिर है आरबीआई की चिंताओं पर कोई ठोस तर्क देने के बजाय, अधिया के नोट से यह पता चलता है कि सरकार आरबीआई की आपत्तियों को लेकर कभी भी गंभीर नहीं थी। बाद के पत्राचार में भी यह बात साबित हुई।
अधिया ने लिखा, "आरबीआई की सलाह काफी देर से आई है और वित्त विधेयक पहले ही छप चुका है। इसलिए हम अपने प्रस्ताव के साथ आगे बढ़ सकते हैं।"
वित्त सचिव तपन रे ने भी उसी दिन अधिया के विचार से अपनी सहमति जताई। इस तरह फाइल बिजली की गति से पास हो गई और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी इस पर तुरंत हस्ताक्षर कर दिए।
दो दिन बाद यानि 1 फरवरी, 2017 को जेटली ने पारदर्शिता लाने और "राजनीतिक फंडिंग की प्रणाली को साफ सुथरा बनाने" के लिए चुनावी बॉन्ड बनाने और आरबीआई के अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव रखा। अगले महीने वित्त विधेयक 2017 के पारित होने साथ ही ये प्रस्ताव कानून बन गया।
आरबीआई अधिनियम में परोक्ष तौर पर अहानिकारक दिख रही यह छेड़छाड़ और संशोधन बेहद जल्दबाजी और कानूनी पारमर्श के अभाव में लिया गया। इस कदम ने भारत की राजनीति व्यवस्था में बड़े व्यावसायिक घरानों के प्रभाव को वैध कर दिया और भारतीय राजनीति में विदेशी पैसे के अबाध प्रवाह का द्वार खोल दिया।
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा किए गए इस संशोधन ने सबकुछ बदल दिया। अब भारतीय कंपनियां, जिनमें शेल कंपनियां भी शामिल हैं, जिनका कोई व्यवसाय नहीं है सिवाय राजनीतिक दलों को पैसा पहुंचाने के, कोई भी व्यक्ति या अन्य कानूनी रूप से वैध संस्था या ट्रस्ट गुप्त रूप से असीमित मात्रा में इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकते हैं और चुपचाप उन्हें अपनी पसंद के राजनीतिक दल को दे सकता है। विदेशी कंपनियां भी अब इस व्यवस्था के जरिए भारत के राजनीतिक दलों को पैसा मुहैया करवा सकती हैं।
इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बीजेपी सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा को दरकिनार कर इलेक्टोरल बॉन्ड को हरी झंडी दिखाई गई थी। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि बीजेपी कालाधन बटोर सके। प्रियंका ने कहा कि कालेधन को खत्म करने के वादे के साथ बीजेपी सत्ता में आई थी, लेकिन वो खुद इससे जुड़ी रही।
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: 18 Nov 2019, 4:31 PM