राज्यसभा में मोदी सरकार नहीं करा पायी तीन तलाक और सिटिजनशिप बिल पास, कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित

राज्यसभा की कार्यवाही बुधवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गई । इसके साथ ही लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र महत्वपूर्ण माने जा रहे ट्रिपल तलाक़ और सिटिजनशिप बिल-2016 भी रद्द हो गए हैं।

फोटो: सोशल मीडिया 
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नवजीवन डेस्क

राज्यसभा की कार्यवाही बुधवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गई। लेकिन तमाम दावों के बावजूद राज्यसभा में मोदी सरकार तीन तलाक बिल और सिटिजनशिप बिल-2016 पास नहीं करा पायी। आज राज्यसभा के स्थगित होने के साथ ही मोदी सरकार के दोनों बिल रद्द हो गए। राज्यसभा में बीजेपी के पास बहुमत न होना, सरकार के लिए बड़ी मुश्किल बना। मोदी सरकार ने तीन तलाक और सिटिजनशिप बिल को लोकसभा से पारित तो कर लिया था। लेकिन राज्यसभा से पारित न होने को कारण अब ये दोनों बिल रद्द हो गए हैं।

बताते चले कि लोकसभा में पेश किया गया कोई भी बिल अगर किसी भी सदन में लंबित है तो वह सरकार के कार्यकाल के साथ ही समाप्त हो जाता है। अगर कोई बिल राज्यसभा में पास हुआ है लेकिन लोकसभा में लंबित है तो वो भी रद्द हो जाता है। इस आधार पर अब अगर तीन तलाक बिल और सिटिजनशिप बिल को लेकर नया कानून बनाना है तो अगली सरकार के आने के बाद इन्हें दोबारा लोकसभा और राज्यसभा में पास कराना होगा।

कैसे होते हैं बिल निष्प्रभावी?


नियमों के मुताबिक एक अध्यादेश की समयावधि छह महीने की होती है और सत्र शुरू होने पर इसे विधेयक के तौर पर संसद से 42 दिन (छह सप्ताह) के भीतर पारित कराना होता है, नहीं तो यह अध्यादेश निष्प्रभावी हो जाता है। लेकिन अगर दोनों सदनों से इसे पारित कर दिया जाता है वह कानून का रूप ले लेता है।

चलिए जानते है दोनों बिलों पर क्यों विवाद है?

तीन तलाक पर सरकार के प्रस्तावित बिल को विपक्ष वापस सेलेक्ट कमेटी को भेजे जाने की मांग की थी। विपक्ष का कहना था कि इस बिल में कई खामियां हैं जिन्हे सुधारे जाने की जरूरत है। तीन तलाक बिल को लेकर विपक्षी दलों ने कहा था कि सरकार इसे जल्दबाजी में पास कराना चाहती है। जबकि हम इस इस बिल को बिना आवश्यक संशोधनों के जस का तस पास नहीं होंगे देंगे।

सिटिजनशिप बिल की बात करे तो सरकार राज्यसभा में पास कराने में विफल रही। इस विधेयक को लकेकर मोदी सरकार के खिलाफ पूर्वोत्तर में भारी प्रदर्शन हो रहे हैं। इस बिल का विरोध करते हुए असम गण परिषद समेत कई दलों ने एनडीए का साथ छोड़ दिया है।

क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक?

नागरिकता संशोधन विधेयक के कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल की बजाय 6 साल भारत में गुजारने पर भारतीय नागरिकता मिल जाएगी।

वहीं सत्र के अंतिम दिन राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव को बिना चर्चा के मंजूरी दे दी गई। सभापति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि वर्तमान सत्र में होने वाली कुल 10 बैठकों में कामकाज के 48 घंटों में से करीब 44 घंटे हंगामे की भेंट चढ़ गए। इस दौरान कुल 5 विधेयक पारित किए गए या लौटाए गए और सदन के कामकाज का प्रतिशत मात्र 4.9 रहा। सत्र के दौरान 6 विधेयकों को पेश किया गया।

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