डिजिटल कार्यप्रणाली को तरजीह देने से मोदी सरकार के मंत्री ने जताई आपत्ति, कहा, इससे संसदीय व्यवस्था हुई कमजोर
केंद्रीय संसदीय कार्य राज्यमंत्री विजय गोयल ने संसदीय कार्यव्यवस्था में डिजिटल प्रणाली अपनाने में सावधानी बरतने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि इस परिपाटी को बढ़ावा दिया जाएगा तो संसदीय कामकाज पूरी तरह नीरस और मृतप्राय हो जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 26 सितंबर को डिजिटल संचार आयोग के गठन को हरी झंडी देने के 24 घंटे पहले ही उनके मंत्री विजय गोयल ने डिजिटल इंडिया को लेकर अंधानुकरण के प्रति सांसदों, विधायकों और सरकार के आला अधिकारियों को आगाह कर डाला। उन्होंने चेतावनी दी कि इस दौड़ में शामिल होने से संसद और विधानसभाओं के संवादहीन होने का खतरा पैदा हो सकता है। उन्हें चिंता है कि निर्वाचित संस्थाओं की जीवंतता खत्म हुई तो फिर हम कुछ भी नहीं बचा पाएंगे।
संसद भवन में आयोजित दो दिन पहले हुई संसद और विधानसभाओं की दो दिन की राष्ट्रीय कार्यशाला के दौरान उन्होंने यह बातें कहीं। समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय संसदीय कार्य राज्यमंत्री विजय गोयल ने कहा कि संसद और विधानसभाएं अधिकाधिक संवाद बनाए रखने के लिए होती हैं और जनता से नियमित मेल-मिलाप की वजह से ही सांसदों-विधायकों को जनता चुनकर भेजती है। उन्होंने संसदीय कार्यव्यवस्था में डिजिटल प्रणाली अपनाने के लिए सावधानी बरतने की नसीहत दी। विजय गोयल तीन बार दिल्ली बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष होने के साथ ही तीन बार लोकसभा के सांसद भी रह चुके हैं। उन्होंने कहा कि अगर टैब के जरिए संसद में सांसदों के सवालों के जवाब देने की परिपाटी को बढ़ावा दिया जाएगा तो संसदीय कामकाज पूरी तरह नीरस और मृतप्राय हो जाएगा। उनका कहना था कि सबसे पहले संस्थाओं की जीवंतता आवश्यक है।
इस कार्यशाला में देश के सभी प्रदेशों की विधानसभा और विधानपरिषदों के अध्यक्षों, संसदीय सचिवों के अलावा नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत और संसदीय कार्य मंत्रालय के सचिव सुरेंद्र मोहन त्रिपाठी भी मौजूद थे। उनका कहना था कि बदलाव और तकनीकी का इस्तेमाल समय के हिसाब से होना चाहिए, लेकिन ऐसा न हो कि डिजिटल की दौड़ में हम संसदीय व्यवस्था को ही अर्थहीन बना डालें। उन्होंने कहा कि अगर संतुलन बनाने पर ध्यान नहीं दिया गया तो एक दिन ऐसा आएगा कि हम लिखना, बोलना और यहां तक कि संवाद करना भी भूल जाएंगे।
डिजिटल इंडिया में सांसदों के अलग-थलग पड़ जाने पर चिंता प्रकट करते हुए गोयल ने कहा, "यहां सांसद आते हैं और हाथ में बैग लेकर खुद को एकदम अकेला महसूस करते हैं।" संसद में बहस और चर्चाओं के निरंतर सिकुड़ने पर भी उन्होने चिंता जताई, "पहले के वर्षों में संसद 140 से 160 दिनों तक चलती थी, लेकिन अब बमुश्किल 70 से 80 दिन तक ही चल पाती है। सांसदों को सवालों के लिखित जवाब की जानकारी संसद की कार्यवाही आरंभ होने के पहले ही उनके टैब पर जारी होने से सांसदों को संसद में सवाल का जवाब लेने के लिए आने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी तो संसद और विधानसभाओं में उनका पहुंचना और भी कम होता जाएगा।”
मीडिया के बढ़ते विस्तार के चलते संसदीय चर्चा के महत्वहीन होते जाने पर भी गोयल ने चिंता प्रकट की। उनका कहना था कि संसद के सम्मुख विचार या पारित करने के लिए कोई मामला आने से पहले ही टीवी पैनल चर्चाओं में राजनीतिक पार्टियां और सांसद अपना संपूर्ण पक्ष रख देते हैं। ऐसी सूरत में संसद और विधानसभाओं में उस विषय पर बहस और सरकार का जवाब अपना महत्व खो देते हैं।
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