कोरोना काल में संकट मोचक बनी मनरेगा योजना, 11 करोड़ गरीबों का दूर कर रही दुख

संकट की इस घड़ी में मनरेगा ने फिर से अपनी उपयोगिता साबित कर दी है। मनरेगा में भले बाजार रेट 300 रुपये से कम करीब 200 रुपये ही मजदूरी मिलती है, मगर आज बाजार में रोजगार नहीं होने पर गांव में मजदूरों को कम से कम मनरेगा से दो जून की रोटी तो मिल रही है।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

कोरोना महामारी के चलते लगे लॉकडाउन के कारण दिल्ली, मुंबई, सूरत आदि महानगरों से गांवों की तरफ लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए अब संकट की घड़ी में मनरेगा मददगार बनकर उभरी है। देश में इस वक्त 11 करोड़ से अधिक मजदूरों को मनरेगा से गांव में ही रोजी-रोटी मिल रही है। चालू वित्त वर्ष में 11 हजार करोड़ रुपये खर्च कर सरकार 18.78 करोड़ मानव कार्य दिवसों का सृजन कर चुकी है।

उत्तर प्रदेश, बिहार सहित सभी राज्यों में तेजी से मनरेगा के कार्यो का संचालन शुरू हुआ है। यूपी में इन दिनों प्रतिदिन 30 लाख लोगों को मनरेगा से रोजगार मिल रहा है। जिससे उत्साहित योगी सरकार ने हर दिन मनरेगा से 50 लाख रोजगार पैदा करने की दिशा में काम शुरू किया है। खास बात है कि देश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में गिना जाने वाला बुंदेलखंड आज मनरेगा से गांवों में रोजगार देने के मामले में उत्तर प्रदेश में अव्वल चल रहा है।

मनरेगा के क्रियान्वयन के मामले में बुंदेलखंड के चित्रकूट मंडल के सभी चार जिले महोबा, चित्रकूट, हमीरपुर और बांदा उत्तर प्रदेश के 75 जिलों की सूची में टॉप 15 में जगह बनाए हुए हैं। मनरेगा के तहत रोजगार देने के मामले में बुंदेलखंड का चित्रकूट जैसा जिला उत्तर प्रदेश में नंबर वन है। चित्रकूट मंडल के चार जिलों में 12 मई तक 1,14,812 से अधिक मजदूरों को रोजगार मिल चुका है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सब कुछ ठप हो जाने के बाद गांवों में किस तरह से मनरेगा ने गरीबों को दो जून की रोटी मुहैया कराने में अहम भूमिका निभाई है।

भारत सरकार के केंद्रीय रोजगार गारंटी परिषद के सदस्य रह चुके संजय दीक्षित ने कहा, "संकट की इस घड़ी में मनरेगा ने फिर से अपनी उपयोगिता साबित कर दी है। मनरेगा में भले ही बाजार रेट तीन सौ रुपये से कम सिर्फ तकरीबन दो सौ रुपये मजदूरी मिलती है, मगर आज बाजार में रोजगार नहीं है, लेकिन गांव में दो सौ रुपये ही सही कम से कम मनरेगा से दो जून की रोटी तो मजदूरों को मिल रही है।"

संजय दीक्षित ने कहा, "आज मनरेगा के तहत गांवों में जल संरक्षण के लिए तालाब की खुदाई, मेड़बंदी, गांव में सड़क आदि निर्माण का कार्य चल रहा है। इससे जहां महानगरों से लौटे लोगों को रोजगार मिल रहा है, वहीं गांवों का विकास भी हो रहा है। हालांकि, मेरा मानना है कि अगर मनरेगा से देश के 90 प्रतिशत लघु एवं सीमांत किसानों को जोड़ दिया जाए तो फिर चमत्कारी परिवर्तन देखने को मिलेगा।"

लाखों प्रवासियों के शहरों से रिवर्स पलायन के कारण गांवों में रोजगार देने की चुनौती केंद्र सरकार के सामने खड़ी है। इस चुनौती से निपटने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बीते दिनों मनरेगा के तहत 40 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन किया था। जिससे 300 करोड़ कार्य दिवसों का रोजगार पैदा हो सके।

खास बात है कि बजट 2020-21 की घोषणा करते समय मनरेगा के लिए बजट घटाकर मोदी सरकार ने 61500 करोड़ रुपये का आवंटन किया था, जबकि 2019-20 में करीब 70 हजार करोड़ रुपये का बजट जारी किया था। मगर, अब कोरोना संकट को देखते हुए 40 हजार करोड़ के अतिरिक्त आवंटन से वित्त वर्ष 2020-21 में मनरेगा से और अधिक रोजगार दिया जा सकेगा।

ग्रामीण विकास मंत्रालय की मनरेगा वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक देश में मनरेगा के तहत कुल 26.6 करोड़ मजदूर पंजीकृत हैं। जिसमें इस वक्त सक्रिय मजदूरों की संख्या 11.72 करोड़ है। मौजूदा वित्त वर्ष 2020-21 में सरकार अब तक 11,202.99 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। जिससे 18.78 करोड़ मानव कार्य दिवस (परसन डेज) सृजित किए गए हैं।

गौरतलब है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार लाई थी। इस योजना के पीछे कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी की बड़ी भूमिका रही थी। इस योजना की वजह से यूपीए काल में देश में गांवों की तस्वीर बदलने लगी थी और गांवों से पलायन भी बहुत हद तक प्रभावित हुआ था। लेकिन 2014 में सत्ता में आने के बाद से बीजेपी की मोदी सरकार इस योजना की अनदेखी करती आई थी। लेकिन देश के सामने खड़े कोरोना संकट में यही योजना संकटमोचक साबित हुई है।

(आईएएनएस के इनपुट के साथ)

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