मोदी सरकार में संसाधनों के अभाव में सिमटी मातृत्व लाभ योजना, UPA सरकार की उम्मीद जगाने वाली योजना का बंटाधार
पहले तो इसमें महत्वपूर्ण बदलाव किये गए जिससे प्रति बच्चे के स्थान पर केवल पहले बच्चे के लिए मातृत्व लाभ सीमित कर दिया गया। फिर इस लाभ को आधार कार्ड और बैंक खाते और अन्य औपचारिकताओं से जोड़ दिया गया जिससे अनेक माताओं के लिए यह लाभ प्राप्त करना कठिन हो गया।
यूपीए सरकार के समय में लोगों को बहुत उम्मीद देने वाला राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम साल 2013 पास हुआ था। इसमें सभी भारतीय महिलाओं को एक बच्चे के जन्म के समय कम से कम 6000 रुपए का मातृत्व लाभ मिलने का प्रावधान था। वर्ष 2014 में सरकार बदलने के बाद इस मातृत्व लाभ को क्रियान्वित करने में मोदी सरकार ने बहुत ढीलापन दिखाया। साल 2016-17 तक तो इसके लिए किसी उल्लेखनीय बजट का आवंटन ही नहीं हुआ।
उसके बाद इसमें महत्वपूर्ण बदलाव किये गए जिससे प्रति बच्चे के स्थान पर केवल पहले बच्चे के लिए यह मातृत्व लाभ सीमित कर दिया गया। मातृत्व लाभ राशि को 6000 के स्थान पर 5000 रुपये कर दिया गया जो भी तीन किश्तों में दी जाती है। इतना ही नहीं, क्रियान्वयन के समय इस लाभ को आधार कार्ड और बैंक खाते के मेल, कई दस्तावेजों और औपचारिकताओं से जोड़ दिया गया जिसके कारण अनेक माताओं के लिए यह लाभ प्राप्त करना कठिन हो गया।
इस कानून के पास होने के बाद जाने माने अर्थशास्त्रियों ने यह अनुमान लगाया था कि इसके सही क्रियान्वयन के लिए लगभग 14000 करोड़ रुपए की प्रति वर्ष आवश्यकता होगी। यह देखते हुए कि इससे माताओं और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य के सुधार पर बहुत अच्छा असर पड़ सकता है, एक वर्ष में 14000 करोड़ रुपए की राशि कोई अधिक नहीं है। यह हमारे सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी का महज 0.05 प्रतिशत है।
पर सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून की मातृत्व लाभ संबंधी प्रतिबद्धता को क्रियान्वित करने के लिए जो प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना बनाई है, उसके अंतर्गत तो मात्र जीडीपी का 0.01 प्रतिशत ही इस योजना के लिए मिल पा रहा है। पहले तो इसे असरदार रूप देने में भी देर की गई और उसके बाद भी औसतन प्रति वर्ष मात्र 2000 करोड़ रुपए ही इस पर खर्च किये गए हैं जबकि जरूरत 14000 करोड़ रुपए प्रति वर्ष की है।
कभी-कभी कुछ अधिक राशि का आवंटन होता भी है तो उसे संशोधित अनुमान में कम कर दिया जाता है। वर्ष 2020-21 में मातृ वंदना योजना के लिए 2500 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था पर इस पर मात्र 1300 करोड़ का ही वास्तविक खर्च हुआ जबकि इस वर्ष बढ़ी हुई कठिनाईयों के बीच मातृत्व लाभ की अधिक आवश्यकता थी।
कुछ माताओं को इस आधार पर भी इस लाभ से वंचित रखा गया है कि बच्चे का जन्म अस्पताल में न होकर घर पर हुआ जबकि यह तो प्रायः मजबूरी की हालत में ही होता है क्योंकि सरकारी सुविधाएं पर्याप्त और संतोषजनक नहीं हैं। मातृ वंदना लाभ प्राप्त करने के लिए भेजे गए ऑनलाइन आवेदनों में अनेक किसी न किसी वजह से अस्वीकृत हो जाते हैं या कोई कमी या गलती बताते हुए वापस हो जाते हैं। समस्या का समाधान करवाना प्रायः माताओं के लिए बहुत कठिन होता है।
ऐसी विभिन्न कठिनाईयों के कारण पहले बच्चे के जन्म के समय भी मातृ वंदना का लाभ बहुत सी माताओं को नहीं मिल पा रहा है। सरकार को चाहिए कि वह खाद्य सुरक्षा कानून की मूल सोच के अनुकूल सभी बच्चों के जन्म के समय मातृत्व लाभ की 6000 रुपए की सहायता उपलब्ध करवाए। यदि यह उसके लिए संभव नहीं है तो कम से कम पहले तीन बच्चों के लिए तो यह मातृत्व लाभ उपलब्ध होना ही चाहिए।
इसके अतिरिक्त मातृत्व लाभ प्राप्त करने की राह में जो अत्यधिक तकनीकी समस्याएं और कठिनाईयां उत्पन्न कर दी गई हैं, उन्हें दूर करना चाहिए ताकि यह लाभ सहज रूप में प्राप्त हो सके।
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