वॉट्सऐप से लोकसभा चुनाव में हुई थी पत्रकारों-एक्टिविस्टों की जासूसी, इजरायली स्पायवेयर से दिया गया अंजाम!
अमेरिका में एक केस की सुनवाई के दौरान वॉट्सऐप ने आरोप लगाया कि इजरायली एनएसओ समूह ने पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल करके करीब 1,400 वॉट्सऐप यूजर्स की जासूसी की। इनमें कई भारतीय पत्रकार, शिक्षाविद् और एक्टिविस्ट भी शामिल थे और यह लोकसभा चुनाव का समय था।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वॉट्सऐप ने एक चौंकाने वाले खुलासे में दावा किया है कि भारत के 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान कई भारतीय पत्रकारों, वकीलों शिक्षाविदों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर नजर रखी गई। इस काम को इजरायल की एक एजेंसी एनएसओ द्वारा विकसित विवादास्पद स्पाईवेयर पेगासस के इस्तेमाल के जरिये अंजाम दिया। वॉट्सऐप ने 29 अक्टूबर को अमेरिका में सैन फ्रांसिस्को की एक अदालत में आरोप लगाया कि इजरायली समूह ने पेगासस का इस्तेमाल कर लगभग 1,400 वॉट्सऐप यूजर्स पर नजर रखी थी।
इस मामले के तूल पकड़ने के बाद गृह मंत्रालय ने बयान जारी कर सरकार पर निजता के हनन के लग रहे आरोप को बेबुनियाद बताया है। मंत्रालय ने कहा कि ऐसा कर सरकार की छवि को खराब करने की कोशिश की गई है। वहीं, आईटी मंत्रालय ने इस मामले को लेकर व्हाट्सएप से 4 नवंबर तक एक विस्तृत जानकारी की मांग की है।
इस पूरे मामले में सामने आया है कि देश के करीब 20-25 पत्रकारों, शिक्षाविदों, वकीलों और मानवाधाकार व दलित एक्टिविस्टों से वॉट्सऐप ने संपर्क कर उन्हें इस बात की जानकारी दी है कि 2019 के मई में 2 सप्ताह तक उनके फोन अत्याधुनिक सर्विलांस पर थे। हालांकि, वॉट्सऐप ने भारत में शिकार हुए लोगों की पहचान और ‘सटीक संख्या’ का खुलासा करने से साफ इनकार कर दिया है।
इस बीच खबर है कि भारत में भारत में इसका शिकार होने वालों महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार मानवाधाकिर कार्यकर्ताओं और वकीलों का मुकदमा लड़ रहे वकील भी है। भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार मानवाधिकार वकील सुरेंद्र गाडलिंग की ओर से मुकदमा लड़ रहे वकील निहालसिंह राठौड़ ने अपने फोन पर पेगासस के हमले की पुष्टि की है। उन्होंने दावा किया है कि मामले के आरोपियों के खिलाफ पुणे पुलिस ने जो पत्राचार के रिकॉर्ड कोर्ट में पेश किए हैं, वे उनके कंप्यूटर से बरामद किए गए थए। निहालसिंह राठौड़ ने दावा किया है कि पेगासस हैक का खुलासा साबित करता है कि ये पत्राचार उनके कंप्यूटरों में हैक करके सेव किया गया था।
इस मामले में सबसे दिलचस्प बात ये है कि इजरायल के एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित स्पाईवेअर पेगासस केवल सरकार या सरकारी एजेंसियों को ही बेचा जाता है। आरोप लगने के बाद समूह ने भी दावा किया है कि यह तकनीक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए नहीं है। एनएसओ ने कहा है कि पेगासस सिर्फ सरकारी एजेंसियों को बेचा गया है। कंपनी का कहना है कि हम अपने उत्पाद का लाइसेंस केवल वैध सरकारी एजेंसियों को देते हैं।
ऐसे में भीमा-कोरेगांव मामले के आरोपियों के वकील का दावा गंभीर हो जाता है। क्योंकि वह भी बार-बार सराकरी एजेंसियों पर कंप्यूटर हैक करने और उसमें संदिग्ध और गैरकानूनी सामग्री सेव करने का आरोप लगा रहे हैं, जिसे एजेंसियों ने आरोपियों के पास से बरामद दिखाया है।
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