चीनी सेना से जुड़ी कई कंपनियों ने भारत के बड़े शहरों में कर रखा है निवेश, सरकारी दावों का निकला दम!

भारत और चीन के बीच संबंधों को सामान्य करने केप्रयास जोर शोर से भले ही जारी हैं, लेकिन जमीनी वास्तविकता सामान्य से काफी दूर है। भारत की कई परियोजनाएं ऐसी कंपनियों द्वारा चलाई जा रही हैं या उनसे महत्वपूर्ण रूप से जुड़ी हुई हैं, जिनके गहरे जुड़ाव चीन की पीपल्स लिबरेशन ऑर्मी(पीएलए) से हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

चीन को लेकर सरकारी दावे कुछ भी हों, लेकिन चीनी सेना से जुड़ी कंपनियों ने भारत के कई बड़े शहरों में निवेश कर रखा है। भारत में चल रही कम से कम कई ऐसी कंपनियों की पहचान की है, जिनका कथित रूप से सीधे तौर पर या फिर अप्रत्यक्ष रूप से चीन की सेना से संबंध है।

भारत और चीन के बीच संबंधों को सामान्य करने के प्रयास जोर शोर से भले ही जारी हैं, लेकिन जमीनी वास्तविकता सामान्य से काफी दूर है। ऐसे समय में जब चीनी आयात घटाने के लिए भारत के सौर विनिर्माण को वीजीएफ सपोर्ट मिलने या केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी द्वारा सड़क निर्माण अनुबंधों पर चीन की खिंचाई करने की खबरें सुर्खियों में हैं, ठीक वहीं पर भारत की कई परियोजनाएं ऐसी कंपनियों द्वारा चलाई जा रही हैं या उनसे महत्वपूर्ण रूप से जुड़ी हुई हैं, जिनके गहरे जुड़ाव चीन की पीपल्स लिबरेशन ऑर्मी (पीएलए) से हैं।


सरकार के करीबी सूत्रों ने कहा है कि इस तरह की एक शीर्ष परियोजना कर्नाटक में चल रही है। भारत और चीन के बीच एक सबसे बड़ा संयुक्त उद्यम मानी जाने वाली शिंडिया स्टील्स लिमिटेड ने हाल ही में कर्नाटक के कोप्पल जिले में होसपेट के पास 0.8 एमटीपीए लौह अयस्क पैलेट सुविधा का संचालन शुरू कर दिया है, जिसकी लागत 250 करोड़ रुपये से थोड़ी अधिक है।

हालांकि इसकी मुख्य निवेशक शिनशिंग कैथे इंटरनेशनल ग्रुप कॉ लिमिटेड (चीन) है। इसकी वेबसाइट के अनुसार, यह पीएलए के जनरल लॉजिस्टिक्स डिपार्टमेंट के पूर्व सहायक उद्यमों और संस्थानों और उत्पादन विभाग से अलग होकर पुननिर्मित और पुनर्गठित है। यह वही पीएलए है, जिसके साथ पूर्वी लद्दाख में पिछले महीने संघर्ष के दौरान 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे।

होसपेट परियोजना को जो कंपनी संचालित करती है, उसकी निगरानी सरकारी स्वामित्व वाली एसेट्स सुपरविजन एंड एडमिनिस्ट्रेशन कमिशन ऑफ द स्टेट काउंसिल इन चाइना (एसएएसएसी) करती है। और यह तो मात्र नमूना भर है। आंध्र प्रदेश में एक दूसरी परियोजना है, जिसे लेकर भी मौजूदा परिदृश्य में सुरक्षा के मुद्दे खड़े हुए हैं। चाइना इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्नॉलॉजी ग्रुप कॉरपोरेशन (सीईटीसी) ने आंध्र प्रदेश के श्री सिटी में 2018 में 200 मेगावाट की पीवी विनिर्माण सुविधा में लाखों डॉलर के निवेश की घोषणा की थी।


सीईटीसी चीन की प्रमुख सैन्य इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माता है और यह हिकविजन सीसीटीवी कैमरे भी बनाती है। इसे चीन के सर्विलांस सीजार के रूप में जाना जाता है, जिसने शिनजियांग के 1.1 करोड़ मुस्लिम उइगरों की फेसियल रिकाग्निशन के जरिए पहचान की और एक राज्य प्रायोजित दमन को अंजाम दिया।

अमेरिका ने लंबे समय से सरकारी एजेंसियों पर हिकविजन के उत्पाद खरीदने पर प्रतिबंध लगा रखा है। अमेरिका सरकार की सूची में सीईटीसी के कई शोध संस्थान और सहयोगी संस्थान शामिल किए गए हैं, जिनसे आयात पर राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर प्रतिबंध है।

भारत 2017 के उस कानून के खतरे की फिर से पड़ताल कर रहा है, जिसे चीन की विधायिका ने पारित किया था। इसे एक नए इंटेलिजेंस कानून के रूप में जाना जाता है, जिसने संदिग्धों पर नजर रखने, परिसरों पर छापे मारने और वाहनों और उपकरणों को जब्त करने के नए अधिकार देता है। 'मिलिट्री एंड सिक्युरिटी डेवलपमेंट्स इनवाल्विंग द पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना 2019' पर अमेरिकी रक्षा मंत्री की वार्षिक रपट के अनुसार, यह कानून चीनी कंपनियों जैसे हुवेई, जेडटीई, टिक टॉक आदि को बाध्य करता है कि वे जहां भी अपना संचालन करें, चीन के राष्ट्रीय इंटेलिजेंस कार्य में मदद, सहायता और सहयोग मुहैया कराएं। इससे स्पष्ट होता है कि भारत सरकार ने अचानक 59 चीनी एप को प्रतिबंधित क्यों किया, जिसमें टिक टॉक भी शामिल है।

कानून के अनुच्छेद 7 में कहा गया है, “कोई भी संगठन या नागरिक कानून के अनुरूप स्टेट इंटेलिजेंस के साथ मदद, सहायता और सहयोग करेगा।” और अब लगता है कि भारत ने उन चीनी कंपनियों की पहचान शुरू कर दी है, जिनके संबंध पीएलए के साथ एक स्टार्टर के रूप में हैं।

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(आईएएनएस के इनपुट के साथ)

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