मणिपुर हिंसाः सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए बनाई कमेटी, हाईकोर्ट की तीन पूर्व जजों को जिम्मेदारी
आज मणिपुर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हिंसा के मामलों की स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की। इस स्टेटस रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में हिंसा से जुड़े मामलों में अब तक दर्ज एफआईआर की संख्या 4694 है। इसमें सामूहिक बलात्कार और हत्या की केवल एक एफआईआर दर्ज की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हिंसा प्रभावित मणिपुर में राहत, पुनर्वास आदि जैसे मानवीय मुद्दों को देखने के लिए तीन सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की एक समिति का गठन कर दिया। समिति की अध्यक्षता जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गीता मित्तल करेंगी। वहीं बॉम्बे हाईकोर्ट की सेवानिवृत्त जज जस्टिस शालिनी पनसाकर जोशी और दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्व जस्टिस आशा मेनन को समिति का सदस्य बनाया गया है।
मणिपुर हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय न्यायिक कमेटी राज्य में हिंसा से जुड़े मुद्दों की पड़ताल करेगी और राहत और पुनर्वास जैसे मानवीय मुद्दों को भी देखेगी। ये कमेटी सीबीआई और पुलिस जांचू से अलग हिंसा के मामलों को देखेगी। ये समिति विशेष रुप से महिलाओं से जुड़े अपराधों और अन्य मानवीय मामलों और सुविधा की निगरानी करेगी और सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंपेगी।
आज की सुनवाई के दौरान मणिपुर सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में हिंसा के मामलों की स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की गई। इस स्टेटस रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में हिंसा से जुड़े मामलों में अब तक दर्ज एफआईआर की संख्या 4694 है। इसमें सामूहिक बलात्कार और हत्या की केवल एक एफआईआर दर्ज की गई है, जबकि गैंगरेप और बलात्कार के तीन मामले दर्ज हैं। वहीं हत्या के लिए 72 एफआईआर दर्ज की गई हैं। महिला की शील भंग करने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल प्रयोग के 6 केस दर्ज हुए हैं। वहीं आगजनी या विस्फोटक पदार्थ (आगजनी) द्वारा शरारत की 4454 एफआईआर दर्ज की गई है।
इससे पहले आज मणिपुर हिंसा मामले पर सुनवाई के दौरान राज्य की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि हम जमीनी स्थिति को समझने की कोशिश कर रहे हैं। हम सभी शांति बहाली चाहते हैं। इन हालात में कोई भी छोटी सी चूक बहुत गहरा असर डाल सकती है। वहीं पीड़िताओं की ओर से पेश वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि इन मामलों के अलावा अब तक जिन मामलों में कोई एक्शन नहीं लिया गया है, उनमें भी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।
मणिपुर सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अपराधों की जांच के लिए 6 जिलों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को शामिल करते हुए 6 SIT का गठन किया गया है। हिंसा, अशांति और नफरत के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए महिला पुलिस अधिकारियों की टीम बनाई जा रही है। याचिकाकर्ताओं की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि आईपीसी की धारा 166ए के तहत भी कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है जो कार्रवाई न करने के लिए अधिकारियों को जवाबदेह बनाती है।
इससे पहले बीते मंगलवार को भी मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। उस दिन सीजेआई ने हाईकोर्ट के पूर्व जजों की कमेटी बनाने की बात कही थी जो नुकसान, मुआवजा, पुनर्वास, पीड़ितों के 162 और 164 के तहत बयान दर्ज करने की तारीखों आदि का ब्योरे लेगी. सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह भी कहा था कि हम ये भी देखेंगे कि सीबीआई को कौन-कौन से मुकदमे-एफआईआर जांच के लिए सौंपे जाएं। सरकार इस का हल सोच कर हमारे पास आए। इस दौरान कोर्ट ने राज्य के डीजीपी को अगली सुनवाई पर तलब किया था।
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