मध्य प्रदेश: बीजेपी दावे-वादे कितने करे, लेकिन जल-जंगल-जमीन बचाने के लिए लामबंद हो रहे हैं आदिवासी
मध्य प्रदेश में बीजेपी जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान बड़े-बड़े दावे और वादे कर रही है। लेकिन इसके इतर राज्य के आदिवासी जंगल और जमीन बचाने के लिए लामबंद हो रहे हैं। उनका कहना है कि बिना किसी वार्ता या सहमति के जमीनों के अधिग्रहण के नोटिस जारी हो रहे हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को मध्य प्रदेश के मंडला में अपनी पार्टी के लिए जन आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत करते हुए कहा तो बहुत कुछ लेकिन शायद एक दिन पहले उसी जिले के 31 गांवों के आदिवासियों की हुई बड़ी बैठक के बारे में उन्हें जानकारी नहीं थी। यह बैठक भाजपा के लिए खतरे की घंटी ही है।
शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि उनकी सरकार आदिवासियों की है और आपको फैसला करना है कि देश के खजाने पर गरीब आदिवासियों का अधिकार होगा या अल्पसंख्यकों का? शाह ने यह तक कहा कि आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन के साथ मोदी जी ने सुरक्षा, सम्मान और समावेशी विकास का नया रास्ता दिया। बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मु को राष्ट्रपति बनाकर आदिवासी को सम्मान दिया।
शाह के साथ मंच पर मुख्यमंत्री और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के साथ केंद्रीय इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते भी बैठे थे। कुलस्ते इसी मंडला जिले से लोकसभा सदस्य हैं।
कुलस्ते का गांव मंडला के मुकासकला गांव में हैं। उससे करीब 16 किलोमीटर दूर चकदेही गांव में सोमवार को 31 गांवों के आदिवासियों की सभा हुई। जितने लोग मौजूद थे, उनमें से आधी संख्या महिलाओं की थी। ये ग्रामीण इसलिए इकट्ठा हुए थे क्योंकि प्रस्तावित बसनिया बहुद्देशीय परियोजना के लिए उनके गांवों में जमीन का अधिग्रहण होना है। इसकी अधिसूचना अभी 31 अगस्त को ही मंडला कलेक्टर ने जारी की है। इसमें भूमि अधिग्रहण करने के लिए मंडला जिले के कार्यपालन यंत्री को जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह बांध मंडला जिले के ग्राम औढ़ारी विकासखंड मोहगांव में बनना प्रस्तावित है जिससे 2,735 परिवारों की 2,443 हेक्टेयर काश्तकारी जमीन डूब जाएगी। बसनिया बांध की वजह से उजाड़े जाने वाले सभी गांव संविधान के पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत अधिसूचित हैं।
इससे पहले जबलपुर के पास बने बरगी बरगी बांध के विस्थापितों एवं प्रभावितों के संघ के राज कुमार सिन्हा के अनुसार, मध्य प्रदेश सरकार ने भूअर्जन पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 के क्रियान्वयन के लिए 3 सितंबर, 2015 को नियमों को अधिसूचित किया है।
इसमें साफ कहा गया है कि जमीन अधिग्रहण से पहले ग्राम सभा की सहमति ली जाएगी। लेकिन बसनिया बांध मामले में अब तक किसी ग्राम सभा से सहमति लेने की बात तो दूर, किसी ग्रामीण आदिवासी से किसी ने बात तक नहीं की है। स्थानीय मीडिया के अनुसार, बांध निर्माण का ठेका मुंबई की किसी कंपनी को तैयारी की जा रही है।
इस इलाके से जबलपुर के बरगी बांध इलाके की दूरी लगभग 123 किलोमीटर है। उस बांध के डूब क्षेत्र के लोगों का अनुभव इतना डरावना है कि प्रस्तावित बसनिया बांध से प्रभावित होने वाले लोगों को अपना भविष्य अनिश्चित दिख रहा है। बरगी से प्रदेश के तीन जिलां- जबलपुर, मंडला और सिवनी जिलों के 162 गांव प्रभावित हुए थे जिनमें से 82 गांव पूरी तरह डूब गए।
इससे करीब 12,000 लोगों को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा जिनमें से अनुमानतः 43 प्रतिशत आदिवासी, 12 प्रतिशत दलित और 38 प्रतिशत पिछड़ी जातियों के लोग हैं। इनमें से अधिकांश लोग अब भी भूमिहीन हैं क्योंकि उन्हें इतना कम मुआवजा मिला कि उससे दूसरी जगह जमीन खरीदना उनके लिए सपना ही है। इसलिए खेतीबाड़ी के साथ-साथ उनका रोजगार भी जाता रहा।
इसीलिए बसनिया बांध के खिलाफ चकदेही गांव में सोमवार को हुई सभा बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है। इस सभा में केंद्रीय इस्पात राज्यमंत्री कुलस्ते खास तौर पर निशाने पर रहे। कुलस्ते प्रमुख आदिवासी नेता माने जाते हैं। सभा में वक्ताओं ने कुलस्ते के अलावा भी देश के सभी आदिवासी सांसदों और मध्य प्रदेश के आदिवासी विधायकों को निशाने पर लिया। उनका कहना था कि इस बांध का प्रस्ताव जबसे किया गया है, वे सभी आदिवासी नेताओं को चिट्ठियां लिख रहे हैं और कई बार उनसे बात कर चुके हैं लेकिन कोई उनकी बात पर कान नहीं दे रहे हैं। कुलस्ते पर उनका गुस्सा खास तौर से इसलिए था कि वह इसी मंडला जिले के हैं।
ऐसे में, बीजेपी अगर आदिवासी वोटों की उम्मीद कर रही है, तो यह दिन में सपने देखने वाली बात ही लग रही है।
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