निकाय चुनाव से ठीक पहले RLD का दर्जा जाना एसपी के लिए भी झटका, अखिलेश की रणनीतियों पर फिर सकता है पानी
आरएलडी के सूत्रों की मानें तो जयंत चौधरी की पार्टी निकाय चुनाव में पश्चिम की कुछ सीटों पर मेयर के लिए भी दावेदारी ठोकने की तैयारी में थी। इसके लिए पार्टी में काफी तेजी से तैयारियां चल रही थीं। लेकिन आयोग के एक फैसले ने आरएलडी को बैकफुट पर ला दिया है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा में 9 विधायकों वाली आरएलडी के लिए निकाय चुनाव से पहले राज्य स्तर की पार्टी का दर्जा हटाना बड़ा झटका तो है ही, लेकिन उसकी सहयोगी समाजवादी पार्टी के लिए भी इसे बड़ा झटका माना जा रहा है। इस फैसले का असर आगामी यूपी निकाय चुनाव में पड़ने की पूरी संभावना है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो अखिलेश आरएलडी के जरिए पश्चिमी यूपी में बीजेपी को चुनौती देने की तैयारी में थे। हाल में खतौली के उपचुनाव में मिली जीत के बाद एसपी अपने को मजबूत मान रही थी। अगर कहीं आरएलडी का चुनाव चिन्ह छिन गया तो एसपी गठबंधन को परेशानी हो सकती है।
राजनीतिक विश्लेषक अमोदकांत की मानें तो आरएलडी का राज्य पार्टी का दर्जा छिनने से पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं पर इसका असर पड़ेगा। निकाय चुनाव में पार्टी को अब नई रणनीति के साथ उतरना पड़ेगा। इस बीच आरएलडी के सूत्रों की मानें तो जयंत चौधरी की पार्टी निकाय चुनाव में पश्चिम की कुछ सीटों पर मेयर के लिए भी दावेदारी ठोकने की तैयारी में थी। इसके लिए पार्टी के अंदरखाने में काफी तेजी से तैयारियां चल रही थीं। लेकिन आयोग के एक फैसले ने आरएलडी को बैकफुट पर ला दिया है।
यहां बता दें कि राष्ट्रीय लोकदल का गठन पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह ने 1996 में किया था। पार्टी के लोगों ने बताया कि वर्ष 2002 में पार्टी को राज्य पार्टी का दर्जा मिला था। ठीक 21 साल बाद उसकी मान्यता चली गई। आरएलडी का पश्चिमी यूपी के आलावा एक विधायक राजस्थान में भी है।
उत्तर प्रदेश में 2022 में आरएलडी का एसपी के साथ गठबंधन था। विधानसभा चुनाव में आरएलडी ने एसपी के साथ 33 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें उसे आठ सीटों पर सफलता मिली। उसे इस चुनाव में महज 2.85 फीसद वोट प्राप्त हुए थे। हाल में उसे खतौली विधानसभा सीट पर अभी हुए उपचुनाव में भी जीत मिली थी। एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि आरएलडी का दर्जा छीने जाने से उसके कार्यकर्ताओं का मनोबल घटेगा। साथ ही अगर सिंबल चला गया तो ज्यादा परेशानी उठानी पड़ सकती है।
हालांकि राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने हैंडपंप सिंबल को लेकर राज्य निर्वाचन आयुक्त को पत्र लिखा है। उन्होंने पार्टी का चुनाव निशान बरकरार रखने की अपील की है। हालांकि, एक बात और कही जा रही है कि निशान गया तो समाजवादी पार्टी इनके प्रत्याशी को निकाय चुनाव अपने सिंबल पर लड़ा सकती है। ऐसे में आरएलडी के प्रत्याशी भी एसपी के कहलाएंगे। इसके साथ ही 2024 के लोकसभा चुनाव में भी असर पड़ेगा।
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