बिहार में भी खोखले निकले सरकारी दावे, अस्पतालों में बढ़ती जा रही है 'वायरल बुखार' से पीड़ित बच्चों की संख्या
चमकी बुखार के लिए कुख्यात मुजफ्फरपुर और आसपास में 8 सितंबर तक करीब 300 बच्चों का इलाज चल रहा था- कहीं डेंगू तो कभी निपाह वायरस के नाम पर। रेस्पिरेटरी सिनसिटियल वायरस और निपाह को लेकर अभी असमंजस की स्थिति है।
बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने यूपी की तरह अपने अस्पतालों को भी तीसरी लहर के लिए तैयार बताया था। बच्चों के लिए खास इंतजाम की बात भी कही थी। लेकिन कोरोना-जैसी किसी वायरल बीमारी ने नीतीश सरकार की भी पोल खोल दी। सरकारी अस्पतालों में बच्चों को इलाज के लिए बेड नहीं मिल रहा है। लाइन ऑफ ट्रीटमेंट तय नहीं है। डर के मारे खांसी होते ही लोग बच्चे को लेकर सरकारी अस्पताल भाग रहे हैं, पर वहां डॉक्टर ही नहीं मिल रहे। या तो एक बेड पर दो-दो बच्चों को रखकर इलाज हो रहा है या फिर दूसरे अस्पताल रेफर किया जा रहा है।
चमकी बुखार के लिए कुख्यात मुजफ्फरपुर और आसपास में 8 सितंबर तक करीब 300 बच्चों का इलाज चल रहा था- कहीं डेंगू तो कभी निपाह वायरस के नाम पर। रेस्पिरेटरी सिनसिटियल वायरस और निपाह को लेकर अभी असमंजस की स्थिति है। वैसे, तेजी से जांच की व्यवस्था नहीं है, इसलिए डॉक्टर तेज बुखार, जमी खांसी और हांफते बच्चों का इलाज वायरल बताकर कर रहे हैं।
मुजफ्फरपुर में सरकार ने चमकी को लेकर जिस शिशु अस्पताल को तैयार कर अपनी पीठ थपथपाई थी और जिसे कोरोना की तीसरी लहर के लिए बड़ा सेटअप बताया जा रहा था, उस अस्पताल में 102 बेड पर 110 बच्चे पहले से थे; फिर, 5 घटे और 25 बढ़ गए। यह एक दिन का अंतर था। बच्चोंके आईसीयू वार्ड की यह हालत हो गई तो अन्य बीमार बच्चों को सामान्य वार्ड और दूसरे अस्पताल में भर्ती किया गया।
मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेमोरियल कॉलेज अस्पताल के शिशु आईसीयू को पूरे बिहार के बच्चों को संभालने के नजरिये से मजबूत बताया जा रहा था जबकि स्थिति यह हुई कि अपने जिले के अलावा गोपालगंज, पूर्वी चंपारण, सीवान और सीतामढ़ी के बच्चों का ही यह लोड नहीं ले सका। मुजफ्फरपुर में ही केजरीवाल अस्पताल में यहां से बच्चों को रेफर किया जा रहा है या कई जिलों से सीधे वहीं भेजा जा रहा है। केजरीवाल अस्पताल में 7 सितंबर तक 100 बच्चों का ब्रोंकाइटिस के नाम पर इलाज हो रहा था जिनकी संख्या अगले दिन 115 हो गई। बच्चों को बीमारी क्या है, यह जानने के लिए इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलांस सिस्टम के विशेषज्ञ भी पहुंच गए लेकिन तीन दिनों बाद भी बीमारी के इस तेजी से सामने आने की वजह अब तक अस्पष्ट है।
नौ जिलों- सारण, सीवान, समस्तीपुर, गोपालगंज, जहानाबाद, औरंगाबाद, नालंदा, वैशाली और पूर्वी चंपारण के सदर अस्पतालों और पश्चिमी चंपारण तथा रजौली के एक-एक अनुमंडल अस्पतालों में बच्चों का आईसीयू तैयार बताया गया था। लेकिन गोपालगंज, पूर्वी चंपारण, सीवान के लोग अपने बीमार बच्चों को मुजफ्फरपुर ले जाने को विवश हैं। कुछ बच्चों को परिजन उत्तर प्रदेश की ओर भी लेकर निकल रहे हैं। नीतीश सरकार में भाजपा की ओर से मंत्रिमंडल में मजबूत बताए जा रहे स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के पास इस बात का भी जवाब नहीं है कि राजधानी पटना के सरकारी अस्पतालों में वायरल बुखार और ब्रोंकाइटिस जैसे लक्षणों के साथ अचानक सामने आए मरीजों को भर्ती कराने की जगह क्यों नहीं है? राज्य के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच के साथ ही एनएमसीएच, आईजीआईएमएस में तो बच्चों के सारे आईसीयू भरे हुए हैं ही, पटना एम्स के भी करीब 110 बेड वाले बच्चों के आईसीयू में जगह नहीं है। लोग प्राइवेट अस्पतालों की ओर भाग रहे हैं लेकिन यहां भी ज्यादा पैसे पर ही जगह मिल रहीहै।
यूपी वाली गलती यहां भी हुई। सरकार थोड़ा पहले चेतती, तो यह हालत नहीं होती। 25 अगस्त को नवादा में अज्ञात बीमारी से एक ही परिवार के 5 लोगों की मौत हो गई। वैसे, सरकार अगर सिर्फ पटना के सरकारी अस्पतालों में शिशु वार्ड के ओपीडी और बच्चों के प्राइवेट क्लीनिकों पर ही नजर रखती तो उसे अंदेशा हो जाता। शिशु रोग विशेषज्ञों की मानें तो 15 अगस्त के बाद से जकड़ी हुई खांसी के साथ बुखार के केस बहुत तेज चल रहे थे और ज्यादातर को वायरल बताकर उनका घर पर इलाज कराया जा रहा था। इसी में से केस नियंत्रित नहीं हुए जो सितंबर की शुरुआत में अचानक तेज दिखने लगे।
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Published: 11 Sep 2021, 3:02 PM