हरियाणा में BJP के अंदर पक रहा है विरोध का लावा, कभी भी बन सकता है ज्वालामुखी, एक भी दिग्गज हाईकमान से खुश नहीं

पूर्व गृह मंत्री अनिल विज सीएम पद पर दावा ठोक खुल कर मैदान में आ गए हैं। ओम प्रकाश धनखड़ और कैप्टन अभिमन्यू भी खुश नहीं हैं। हरियाणा बीजेपी के भीष्म पितामह माने जाने वाले राम बिलास शर्मा की हालत टिकट काटकर लाल कृष्ण आडवाणी की तरह कर दी गई है।

हरियाणा में BJP के अंदर पक रहा है विरोध का लावा, एक भी दिग्गज हाईकमान से खुश नहीं
हरियाणा में BJP के अंदर पक रहा है विरोध का लावा, एक भी दिग्गज हाईकमान से खुश नहीं
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धीरेंद्र अवस्थी

हरियाणा में बीजेपी के अंदर विरोध का लावा पक रहा है। कब यह ज्वालामुखी बन जाएगा, किसी को पता नहीं है। बगावत और विरोध का दायरा व्यापक है। शायद ही कोई ऐसा विधानसभा क्षेत्र होगा, जहां असंतोष की चिंगारी नहीं है। मुश्किल दिनों में पार्टी का झंडा उठाने वालों के बगावती रुख से संकट गहरा है। पूर्व गृह मंत्री अनिल विज हाईकमान के फैसले के खिलाफ सीएम पद पर दावा ठोक खुल कर मैदान में आ गए हैं। पूर्व दिग्गज ओम प्रकाश धनखड़ और कैप्टन अभिमन्यू भी खुश नहीं हैं। हरियाणा बीजेपी के भीष्म पितामह माने जाने वाले पांच बार विधायक और दो बार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे राम बिलास शर्मा की हालत टिकट काटकर लाल कृष्ण आडवाणी की तरह कर दी गई है।

अपने कथित अनुशासन और मजबूत कैडर का दावा करने वाली बीजेपी हरियाणा में बुरी तरह बिखरी हुई दिखाई दे रही है। अपने ही अपनों को चुनावी बिसात पर मात देने पर आमादा हैं। हरियाणा के दो बार के प्रदेश अध्यक्ष, महेंद्रगढ़ से पांच बार विधायक और तीन बार कैबिनेट मंत्री रहे हरियाणा में पार्टी के भीष्म पितामह माने जाते रहे राम बिलास शर्मा की जो हालात पार्टी हाईकमान ने की है, उससे पार्टी के संस्थापक लाल कृष्ण आडवाणी के साथ हुए व्यवहार की यादें भाजपाईयों के ही जेहन में ताजा हो गई हैं।

राम बिलास शर्मा ने टिकट कटता देख किसी दूसरे के नाम का ऐलान होने से पहले ही अपना नामांकन भी कर दिया था। हाईकमान को अपने योगदान की याद वह दिलाते रहे। वह कहते रहे कि उनका 55 साल का संघर्ष रहा है। मैंने डंडा नहीं बदला, झंडा नहीं बदला और एजेंडा नहीं बदला। मुझे कमजोर न करें। आपको मेरे ईमान की कसम, मेरे जयराम भगवान की कसम, आप मुझे भावुक होकर कमजोर न करें। नहीं तो मैं टूट जाऊंगा। जिंदगी 10 साल या 15 साल की है, मुझे अंत में उस झंडे के साथ ही रहने दीजिए। बावजूद इसके हाईकमान नहीं पसीजा।

बीजेपी के लिए हरियाणा में राम बिलास शर्मा का योगदान कोई सामान्य नहीं है। 1982 में उन्होंने पहली बार बीजेपी से चुनाव लड़ा था। 1991 में वह पूरे प्रदेश में अकेले बीजेपी से चुनाव जीते थे। 2014 में जब बीजेपी हरियाणा में पहली बार अपने दम पर सत्ता में आई तो राम बिलास शर्मा ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे। सीएम के लिए भी वही सबसे बड़े दावेदार थे, लेकिन लॉटरी निकली मनोहर लाल खट्टर के नाम। केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने भी कहा कि जब वह स्वयं कांग्रेस पार्टी में होते थे तो हरियाणा में बीजेपी का झंडा केवल रामबिलास शर्मा लहराते थे। पार्टी टिकट दे या न दे, लेकिन उन्हें बेइज्जत करने का अधिकार किसी को नहीं है। अगर पार्टी उन्हें नकारती है तो केवल महेंद्रगढ़ में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश को इससे धक्का लगेगा।

जले में नमक यह कि इसी बीच मुख्य सचिव की तरफ से रामबिलास शर्मा और उनके बेटे गौतम शर्मा के खिलाफ एक मामले में कार्रवाई का लेटर वॉट्सऐप्प पर वायरल हो गया। पूर्व केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी मनाने आए तो राम बिलास शर्मा की उनसे बहस भी हुई। खट्टर मुर्दाबाद और बीजेपी मुर्दाबाद के नारे भी लगे। आखिर टिकट न मिलने पर उन्होंने अपना नॉमिनेशन वापस ले लिया, लेकिन यह साफ हो गया कि मोदी युग में पार्टी के लिए किसी की कुबार्नी के कोई मायने नहीं हैं।


इसी तरह बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और वर्तमान में राष्ट्रीय सचिव ओम प्रकाश धनखड़ भी खुश नहीं हैं। सूत्रों की मानें तो वह बादली की जगह बहादुरगढ़ से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन उनकी नहीं सुनी गई। बादली से वह पिछला विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। ठीक इसी तरह सूत्रों के मुताबिक पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यू नारनौंद की जगह बरवाला से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन उनकी भी नहीं सुनी गई। वह नारनौंद से पिछला चुनाव हार चुके हैं।

वहीं पूर्व गृह मंत्री और अंबाला कैंट से प्रत्याशी अनिल विज ने तो बगावत का बिगुल ही फूंक दिया है। 29 जून को पंचकूला में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की ओर से नायब सिंह सैनी को अगला सीएम घोषित करने के बावजूद उन्होंने सीएम पद पर अपना दावा ठोक दिया है। अपना अंतिम चुनाव भांप उन्होंने शायद अब आर-पार की लड़ाई का मन बना लिया है। हाईकमान के फैसले के खिलाफ इस तरह उनका मैदान पर आना शीर्ष नेतृत्व को खुली चुनौती देना माना जा रहा है। पूर्व मंत्री और बीजेपी ओबीसी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कर्ण देव कंबोज अपने दो सौ से अधिक समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। रादौर और इंद्री विधानसभा में उनकी बगावत बीजेपी के लिए मुश्किल का सबब बनेगी। बीजेपी किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व विधायक सुखविंदर मांढी भी अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं।   

2014 और 2019 में बीजेपी को हरियाणा की सत्ता तक पहुंचाने वाले अहीरवाल का मूड भी इस बार बदला-बदला सा है। अहीरवाल में बीजेपी के खेवैया केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह भी मान रहे हैं कि चुनौती इस बार गंभीर है। रेवाड़ी से प्रशांत यादव, पूर्व विधायक रणधीर कापड़ीवास, पर्यटन निगम के पूर्व चेयरमैन अरविंद यादव और कोसली में पूर्व मंत्री बिक्रम ठेकेदार नाराज हैं। बावल से टिकट कटने पर मंत्री डा. बनवारी लाल खामोश हैं। बादशाहपुर से प्रत्याशी पूर्व मंत्री राव नरबीर सिंह भितरघात की आशंका से ग्रस्त हैं। यहां से पिछला चुनाव लड़ चुके मनीष यादव और खट्टर के ओएसडी रहे जवाहर यादव भी टिकट के दावेदार थे। गुरुग्राम बीजेपी जिलाध्यक्ष कमल यादव भी यहां से टिकट की रेस में थे। केंद्रीय राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह और पूर्व सांसद व संसदीय बोर्ड सदस्य सुधा यादव उनकी विरोधी हैं। इन सभी के समर्थन को लेकर राव नरबीर आशंकित हैं।

सोनीपत की गोहाना विधानसभा सीट से उतारे गए लोकसभा चुनाव में रोहतक से दीपेंद्र हुड्डा से हारे अरविंद शर्मा का भी स्थानीय बीजेपी नेता भारी विरोध कर रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली के सामने स्थानीय नेताओं ने कह दिया कि हम किसी भी हालत में अरविंद शर्मा का समर्थन नहीं करेंगे। सोनीपत जिले के गन्नौर में युवा आयोग के चेयरमैन देवेंद्र कादियान ने बीजेपी को अलविदा कह दिया है। उन्होंने सौ करोड़ में यहां का टिकट बिकने का आरोप लगाया है। देवेंद्र कादियान मन्नत ग्रुप होटल्स के चेयरमैन हैं।

बीजेपी में संकट एक नहीं कई तरह के हैं। पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भजन लाल के परिवार के सामने अपनी प्रतिष्ठा बचाना चुनौती है। अपने गढ़ हिसार के आदमपुर में पिछले लगातार दो लोकसभा चुनाव में भजन लाल का परिवार पिछड़ा है। भजन लाल की तीसरी पीढ़ी कुलदीप बिश्नोई के पुत्र भव्य बिश्नोई यहां से मैदान में हैं। कुलदीप बिश्नोई और उनकी पत्नी रेणुका घर-घर और गांव-गांव जाने के लिए मजबूर हो गए हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में हिसार लोकसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार रणजीत चौटाला आदमपुर से 6 हजार से अधिक वोटों से पिछड़े थे। कांग्रेस के जयप्रकाश यहां से विजयी हुए थे। बिश्नोई बिरादरी के गांवों में भी कांग्रेस के जयप्रकाश आगे रहे थे। 

बिश्नोई समाज के लोग चौधरी भजन लाल पर की गई एक टिप्पणी को लेकर पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर से बेहद नाराज हैं। मनोहर लाल के कमेंट से असहज बिश्नोई परिवार अपने कार्यक्रमों में खट्‌टर का नाम और फोटो लगाने से भी परहेज कर रहा है। हिसार शहर में भी बड़ी विचित्र स्थिति है। उद्योगपति सावित्री जिंदल निर्दलीय मैदान में हैं और उनका बेटा कुरुक्षेत्र से सांसद नवीन जिंदल बीजेपी का स्टार प्रचारक है। हिसार जिले की उकलाना विधानसभा सीट से उतरे पूर्व मंत्री अनूप धानक के सामने ही लोग उनके हारने की शर्त लगा रहे हैं। लोग उनके सामने ही कह रहे हैं कि जितनी मर्जी शर्त लगा लो, इस बार हारोगे। इस माहौल में अनूप धानक बेहद असहज हैं। हिसार जिले की बरवाला सीट से उतारे गए डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा का तकरीबन पूरी बीजेपी स्थानीय इकाई विरोध कर रही है। बरवाला नगर पालिका के चेयरमैन रमेश बैटरीवाला ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। गंगवा नलवा सीट से टिकट चाह रहे थे, लेकिन उन्हें बरवाला से उतार दिया गया।


फरीदाबाद से पूर्व विधायक नागेंद्र भड़ाना बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। पिछले 5 साल बीजेपी को समर्थन देकर उसकी सरकार चलाते रहे फरीदाबाद की पृथला विधानसभा से निर्दलीय विधायक नयन पाल रावत टिकट न देने पर एक बार फिर निर्दलीय कूद पड़े हैं। वह बीजेपी प्रत्याशी टेकचंद शर्मा को गद्दार कह रहे हैं।

सिरसा में तो बीजेपी हंसी का पात्र बन गई है। एयर होस्टेज गीतिका शर्मा सुसाइड केस में आरोपी रहे हरियाणा लोक हित पार्टी के मुखिया गोपाल कांडा पहले तो एनडीए में होने की दुहाई देते रहे। बीजेपी से गठबंधन के लिए दौड़ लगाते रहे। जब बात नहीं बनी तो वह इनेलो-बीएसपी गठबंधन के साथ चले गए। अब बीजेपी ने सिरसा से अपने उम्मीदवार रोहताश जांगड़ा का नामांकन गोपाल कांडा के समर्थन में वापस करवा लिया है, लेकिन गोपाल कांडा कह रहे हैं कि उन्होंने तो बीजेपी से समर्थन मांगा ही नहीं। वहीं, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली कह रहे हैं उन्हें तो सिरसा से प्रत्याशी के नामांकन वापस लेने की जानकारी ही नहीं है। सिरसा के कालांवाली से पूर्व विधायक बलकौर सिंह बागी होकर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। यहां से बीजेपी ने राजेंद्र देसुजोधा को टिकट दिया है, जिन पर वह कभी ड्रग सिंडिकेट में शामिल होने के आरोप लगाती थी। सिरसा की डबवाली सीट से टिकट के दावेदार रहे सिरसा के पूर्व बीजेपी जिला अध्यक्ष आदित्य चौटाला चेयरमैनी छोड़कर बीजेपी को अलविदा कह चुके हैं।  

सोनीपत में पूर्व मंत्री कविता जैन और उनके पति राजीव जैन फिलहाल तो मान गए हैं, लेकिन उनके पार्टी के साथ खड़े होने पर संशय है। पुंडरी में पूर्व विधायक संदीप कौशिक मुसीबत बने हैं। सीएम नायब सिंह सैनी को कुरुक्षेत्र के लाडवा से उतार दिया गया। वह करनाल से लड़ना चाहते थे। माना जा रहा है कि हाईकमान ने उनको भी फंसा दिया है। कुरुक्षेत्र की पिहोवा से विवादित हो गए कवलजीत सिंह अजराना का टिकट वापस लेने के बाद सिख संगत ने बीजेपी नेताओं के पुतले जलाए हैं। यह पंजाब से लगती सीट है। रोहतक में बीजेपी एससी मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष सूरजमल किलोई ने पार्टी छोड़ दी है। रोहतक के महम से पूर्व विधायक शमशेर खरकड़ा ने बागवत कर अपनी पत्नी को निर्दलीय उतार दिया है। तकरीबन पूरी स्थानीय बीजेपी इकाई उनके समर्थन में खड़ी हो गई है।

सीएम सिटी करनाल में बीजेपी का संकट गंभीर होता जा रहा है। पूर्व सीएम मनोहर लाल पर शोषण का आरोप लगाते हुए 5 मौजूदा समेत 10 पूर्व पार्षदों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। पूर्व मेयर रेणु बाला गुप्ता और बीजेपी के 57 साल पुराने कार्यकर्ता और पूर्व जिला अध्यक्ष अशोक सुखीजा खफा हैं। वर्तमान और पूर्व सीएम पर आरोप लगाते हुए सुखीजा ने कहा कि दोनों सीएम झोला उठाकर आए थे और अब झोला उठाकर चल दिए हैं। पूर्व मंत्री जयप्रकाश, हरपाल कलामपुरा और युवा नेता सुरेंद्र उड़ाना पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। करनाल के असंध से पूर्व विधायक जिले राम शर्मा भी बागी हो गए हैं। पूर्व विधायक और सीपीएस रहे बख्शीश सिंह विर्क सैकड़ों समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। 

“राम को लाए हैं....” गीत गाने वाले कन्हैया मित्तल की बीजेपी से नाराजगी सुर्खियां बटोर चुकी है। वह पंचकूला से टिकट चाह रहे थे। पंचकूला से विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता प्रत्याशी हैं। अब बीजेपी की चिंता यह है कि उसके कोर वोटर वैश्य समाज के लोग इससे न नाराज हो जाएं।पंचकूला की कालका विधानसभा से पूर्व विधायक और बीजेपी महिला मोर्चा की राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष लतिका शर्मा, अंबाला सिटी की मेयर और पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा की पत्नी शक्तिरानी शर्मा को पार्टी का पटका पहनते ही टिकट थमा देने पर नाराज हैं। कालका सीट से शक्तिरानी शर्मा को 2014 में विधानसभा चुनाव में महज 4 से 5 हजार वोट मिले थे।


जींद की जुलाना विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी ओलिंपियन विनेश फोगाट के खुलासे बीजेपी के लिए वैसे ही मुसीबत बने हुए हैं। जींद के सफीदों से पूर्व मंत्री बचन सिंह आर्य ने बीजेपी छोड़ दी। पिछले 33 वर्ष से सफीदों विधानसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति बचन सिंह आर्य के इर्दगिर्द ही घूमती रही है। इसी तरह फतेहाबाद की टोहाना विधानसभा से पूर्व मंत्री देबेंद्र सिंह बबली के नामांकन में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला नहीं आए। बराला को बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रहते 2019 के चुनाव में बबली ने तकरीबन 50 हजार मतों से हराया था। दोनों के बीच जख्म अभी भरे नहीं हैं।

रतिया से पूर्व विधायक लक्ष्मण नापा कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। भिवानी की बरवाला सीट से टिकट कटने से मंत्री बिशंभर बाल्मीकि नाराज हैं। 2019 में नूंह से उम्मीदवार रहे पूर्व विधायक जाकिर हुसैन ने घर से बीजेपी के झंडे उतार दिए हैं। सोहना से टिकट कटने पर नाराज संजय सिंह को बाद में नूंह से उतार दिया गया, जिससे वह वहां फंस गए हैं। रानियां से मंत्री रणजीत सिंह चौटाला, भिवानी से विनोद चावला और प्रिया असीजा, भिवानी के तोशाम से पूर्व विधायक शशिरंजन परमार, पृथला से दीपक डागर, बेरी से अमित अहलावत, झज्जर से सतवीर सिंह, पुंडरी से दिनेश कौशिक, कलायत से विनोद निर्मल और आनंद राणा, इसराना से सत्यवान शेरा भी बीजेपी को अलविदा कह चुके हैं। यह फेहरिस्त काफी लंबी है। कुछ लोगों को बीजेपी मना लेने का दावा कर रही है, लेकिन पार्टी के साथ उसी शिद्दत से उनके खड़े होने पर संदेह है।

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