कोलकाता पुलिस का मीडिया पर झूठी सूचनाएं फैलाने का आरोप, 9 गिरफ्तार, लेकिन कुछ पर्तें अभी खुलना बाकी

आरजी कर अस्पताल में महिला डॉक्टर की हत्या के मामले में कोलकाता पुलिस चौतरफा आलोचना का सामना कर रही है। अब उसने मीडिया पर ही झूठी सूचनाएं फैलाने का आरोप लगाया है। लेकिन इस मामले में अभी काफी कुछ सामने आना बाकी है।

कोलकाता पुलिस कमिश्नर
कोलकाता पुलिस कमिश्नर
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ए जे प्रबल

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल परिसर में कोलकाता पुलिस कमिश्नर विनीत गोयल का गुस्सा आज मीडिया पर फूटा। वे बीती रात हुई तोड़फोड़ की घटना के बाद अस्पताल परिसर पहुंचे थे और उन्हें मीडिया ने घेरकर सवालों की झड़ी लगा दी थी।

ध्यान रहे कि कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में हुई वारदात देश-विदेश में सुर्खी बनी है। इस वारदता में एक युवा महिला डॉक्टर की यौन उत्पीड़न के बाद हत्या कर दी गई है। डॉक्टर का शव 9 अगस्त अस्पताल की चौथी मंजिल पर बने सेमिनार रूम में पाया गया था। घटना सामने आने के फौरन बाद पुलिस ने कथित अपराधी को गिरफ्तार कर लिया था। आरोप एक स्वैच्छिक कर्मचारी है जो अस्पताल की बाहरी चौकी पर तैनात था। लेकिन इस घटना में किसी एक ‘अपने’ को बचाने के पुलिस-प्रशासन पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। इसके चलते पुलिस और प्रशासन के खिलाफ भी लोगों का गुस्सा है।

घटना के बाद मीडिया से बातचीत में जब पुलिस कमिश्नर गोयल से आरोपी की पहचान के बारे में पूछा गया तो वे काफी नाराज हो गए। हालांकि आरोपी का नाम और पेशे की जानकारी मीडिया में सब तरफ है। पुलिस का यही रवैया घटना के अगले 4 दिन तक बरकरार रहा, जब तक कि हाईकोर्ट ने मामले को सीबीआई को नहीं सौंप दिया।

दरअसल घटना को लेकर कोलकाता पुलिस की चुप्पी की वजह से लोगों का गुस्सा और पुलिस की आलोचना में उबाल आ गया। आरोप लगने लगे कि पुलिस न सिर्फ आरोपी को बचाने की कोशिश कर रही है बल्कि उसने क्राइम सीन को भी सुरक्षित नहीं रखा है। पुलिस पर यह आरोप भी लगे कि अस्पातल के कुछ इनसाइडर को छोड़ दिया है जिनकी तृणमूल कांग्रेस से नजदीकियां हैं।

एक और बड़ा आरोप पुलिस पर है कि उसने मृतका के परिवार को गलत जानकारी देते हुए बताया कि उसने आत्महत्या कर ली है। इस आरोप का पुलिस कमिश्नर ने खंडन किया है कि पुलिस ने ऐसी कोई जानकारी परिवार को नहीं दी। पुलिस ने यह खंडन अपने सोशल मीडिया पेज पर दिया। पुलिस कमिश्नर का कहना है कि हो सकता है कि अस्पताल से किसी ने पीड़िता के माता-पिता को फोन किया हो।

इस घटना पर कोलकाता पुलिस की खामोशी के चलते सोशल मीडिया तरह-तरह की  बातें की जाने लगीं। जिसे भी जो सूचना मिलती वह उसे पोस्ट करने लगा। और ऐसी पोस्ट को हजारों लोग बिना पुष्टि किए शेयर भी करने लगे।

लेकिन बुधवार की रात कोलकाता में अद्भुत घटना हुई। पीडिता को इंसाफ दिलाने के लिए री-क्लेम द नाइट नाम के आंदोलन का आह्वान कर महिलाओं की भारी भीड़ सड़कों पर निकल आई। लेकिन इसी बीच किसी और दिशा से करीब 5-7 हजार लोगों की भीड़ ने अस्पताल परिसर पर धावा बोल दिया और वहां भारी तोड़फोड़ की। कोलकाता पुलिस के मुताबिक इसमें अस्पताल के इमरजेंसी रूम को भी काफी नुकसान पहुंचा है।

अस्पताल की सुरक्षा के लिए तैनात चंद पुलिस वाले इतनी भारी भीड़ का क्या ही मुकाबला करते, फिर भी रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने अपने तौर पर भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन भीड़ भारी पड़ गई। कई पुलिस वालों को चोटें भी आईं। भीड़ ने जूनियर डॉक्टरों  पर भी हमला किया जो अपने साथी की हत्या के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के लिए धरने पर बैठे थे। इस मामले में पुलिस ने 9 लोगों को हिरासत में लिया है।

बीती रात के रीक्लेम द नाइट और फिर आधी रात अस्पताल पर भीड़ के हमले की तस्वीरें वीडियो सोशल मीडिया पर देर रात से ही छा गईं। सोशल मीडिया पोस्ट में दावे किए जाने लगे कि पुलिस सबूतों को नष्ट करने के लिए ऐसा कर रही है और उसी ने भीड़ को खुली छूट दी। लेकिन किसी पोस्ट में ऐसा कहीं नहीं बताया गया कि किन सबूतों को नष्ट किया जा सकता है, क्योंकि घटना को हुए तो करीब एक सप्ताह हो चुका है और वारदात वाले इलाके से रोज तमाम लोगों का आना-जाना होता है।

कुछ पोस्ट में आरोप लगाया गया कि भीड़ में सत्तारूढ़ पार्टी के गुंडे थे और मामले से ध्यान भटकाने और महिलाओं के ऐतिहासिक रात्रि मार्च से भ्रमित करना चाहते थे।

इसी सब मामले पर बुधवार दोपहल जब पुलिस कमिश्नर का सामना मीडिया से हुआ तो उन्होंने पुलिस पर लगे सारो आरोपों का जोरदार खंडन किया। उन्होंने कहा, “हमने कुछ भी गलत नहीं किया है। हम केस के सिलसिले में जो कुछ कर सकते थे किया है। सारी झूठी बातें मीडिया फैला रहा है और सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार चल रहा है। इसीलिए लोगों का हमसे भरोसा उठ रहा है।”

इससे पहले कोलकाता पुलिस ने सोशल मीडिया एक्स पर फिर से दोहराया कि मृतका के परिवार को आत्महत्या की बात अस्पताल से फोन कर बताई गई थी न कि पुलिस द्वारा। पुलिस ने इस बात से भी इनकार किया कि पुलिस ने जल्दबाजी में मृतका का अंतिम संस्कार किया है। पुलिस ने कहा कि उसका अंतिम संस्कार परिवार द्वारा ही पोस्टमार्टम के बाद किया गया है।

इस बीच दिल्ली की एक महिला पत्रकार ने सोशल मीडिया पर लिखा कि जिस इमरजेंसी रूम में वारदात हुई थी उसे तहस-नहस कर दिया गया है, इस पर पुलिस ने लिखा कि वारदात सेमिनार रूम में हुई थी न कि इमरजेंसी रूम में, कृपया झूठी बातें न फैलाएं, वर्ना आपके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा।

पुलिस ने उन दावों का भी खंडन किया है - जो सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हुए थे। मसलन यह कि मृतका की पेल्विक गर्डल और कॉलर बोन टूटी हुई थी। लेकिन पुलिस की तरफ से शायद ये सारे खंडन और सफाई आने में काफी देर हो चुकी थी।

कोलकाता पुलिस चूंकि कथित मुख्य आरोपी को पकड़ चुकी थी और उसने इस मामले में जानबूझकर चुप्पी साध ली थी, लेकिन यह भी तथ्य है कि सिविक वॉलंटियर की नियुक्ति राजनीतिक प्रभाव से ही होती है। पूर्व में कोलकाता पुलिस ही यह अनुरोध कर चुकी है कि ऐसे वॉलंटियर को किसी अन्य विभाग में नियुक्त किया जाए. क्योंकि पुलिस के साथ काम करने के लिए खास किस्म के कौशल की जरूरत होती है। लेकिन इस अनुरोध को नहीं माना गया था।

जानकार सूत्रों का कहना है कि जिस सिविक वॉलंटियर को गिरफ्तार किया गया है वह राजनीतिक रसूख वाला है और उसके कुछ ऐसे पुलिस अफसरों से भी अच्छे ताल्लुकात हैं जो तृणमूल कांग्रेस के करीबी हैं। बताया जाता है कि उसे ऑफिशियल मोटरसाइकिल इस्तेमाल करने की छूट दी गई थी जब उसके पद में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आरोपी का अतीत भी काफी खराब रहा है। उसने कई बार शादी की थी और उस पर यौन शोषण और घरेलू हिंसा के आरोप लगे थे। इस मामले में एफआईआर भी दर्ज हुई थी।

वैसे पुलिस सूत्रों का कहना है कि सिविक वॉलंटिर का बैकग्राउंड चेक नहीं किया जाता है क्योंकि उनकी नियुक्ति विभाग के माध्यम से नहीं की जाती है। ये स्वयंसेवक, जो अक्सर ट्रैफिक ड्यूटी में मदद करते हैं, आमतौर पर टीएमसी नेताओं की सिफारिशों पर नौकरी पाते हैं, जिससे वे पुलिस बल के भीतर अपने अफसरों के प्रति जवाबदेह नहीं रह जाते। यह अपने आप में एक घोटाला जिसकी पर्तें भी हो सकता है आने वाले वक्त में सामने आएं और तब शायद राज्य सरकार, टीएमसी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए इसका बचाव करना मुश्किल हो जाए।

Police sources, however, pointed out that civic volunteers do not undergo background checks because their appointments are not done through the department. These volunteers, who most often help in traffic duties, typically find employment on the recommendations of TMC leaders, making them unaccountable to their bosses within the force.

This scandal is likely to blow up sooner or later, and the state government, the TMC, and chief minister Mamata Banerjee will clearly be hard-put to defend the practice.

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Published: 15 Aug 2024, 9:29 PM