मोदी-योगी राज में आखिरी सांसें गिन रहे गांधी आश्रम, करोड़ों के कपड़े डंप, कर्मचारियों के पीएफ तक के पैसे नहीं
नीतियों की मार ने गांधी आश्रमों को ‘अब-तब’ की स्थिति में पहुंचा दिया है। करोड़ों के सामान पड़े हुए हैं, कर्मचारी आधे हो गए हैं, जो बचे हैं उनका पीएफ तक देने के पैसे नहीं हैं आश्रम के पास। इसके लिए आश्रम की संपत्ति बिकने या गिरवी रखने की खबरें मिल रही हैं।
गांवों के स्तर पर लोगों को रोजगार देकर उनके हाथ मजबूत करने वाले गांधी आश्रम आज खुद दयनीय हाल में हैं। केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार के आने के बाद ये आश्रम धीमी मौत मरते रहे हैं। यही स्थिति यूपी की भी रही लेकिन योगी आदित्यनाथ की सरकार के आने के बाद तो गांधी आश्रमों की हालत बड़ी तेजी से बिगड़ती चली गई। हाल के समय में एक तो कोराना और दूसरे नीतियों की मार ने गांधी आश्रमों को ‘अब-तब’ की स्थिति में पहुंचा दिया है। करोड़ों के सामान पड़े हुए हैं, स्थायी कर्मचारियों की संख्या आधे से भी कम हो गई है और जो हैं, आश्रम उनके पीएफ के पैसे भी देने की हालत में नहीं। आए दिन पीएफ जमा करने के लिए आश्रम की संपत्ति के बिकने या गिरवी रखने के मामले सामने आ रहे हैं।
योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद यूपी के गांधी आश्रमों की स्थिति खास तौर पर खराब हुई है। खादी आश्रम के कंबलों की कभी बड़ी खरीद हुआ करती थी। जिला प्रशासन, नगर निगम से लेकर पंचायतें इनसे कंबल खरीदते थे लेकिन पिछले चार साल से खरीद ठप है। अधिकारी दलील दे रहे हैं कि शासन की गाइड लाइन के मुताबिक, खरीद पोर्टल से होती है। जिसका रेट कम होता है, उससे खरीद की जाती है। दरअसल, प्रशासन जो कंबल गरीबों में बांटने के लिए खरीदता है, उसकी कीमत 500 रुपये से अधिक नहीं हो सकती। जो ‘लेना-देना’ है, वह भी इसी में। ऐसे में 800 रुपये कीमत वाला गांधी आश्रम का कंबल प्रतियोगिता में भाग ही नहीं ले पा रहा। हरी-लाल झंडी, वर्दी के साथ ही कंबल और चादरों की खरीद करने वाले रेलवे ने भी हाथ खींच लिए है। गांधी आश्रम के महामंत्री विशेश्वर नाथ तिवारी का कहना है कि ‘सरकार से मदद नहीं मिली तो गांधी आश्रम तथा इससे जुड़े कर्मचारियों, कतिनों और बुनकरों के हालात खराब हो जाएगी।’
सरकारों की अनदेखी से बिजनौर, आजमगढ़, मऊ से लेकर बाराबंकी के खादी आश्रम की हालत खस्ता है। बिजनौर जिले के धामपुर के केंद्रीय वस्त्रागार से पूरे देश को सूती कपड़ा, चादर, लिहाफ, गद्दे भेजे जाते थे। खादी के काम से जुड़े इकबाल अहमद, मोहम्मद दिलशाद, हनीफ आदि का कहना है कि सिलाई का भुगतान नहीं होने से भुखमरी की स्थिति है। नब्बे के दशक में आजमगढ़ में 20 चरखा कताई केंद्र खुले थे जिनसे हजारों को रोजगार मिला हुआ था। लेकिन ये केंद्र एक-एक कर बंद हो चुके हैं। सुल्तानपुर जिले में रामगंज, अखंडनगर और अमेठी आश्रम समेत चार कताई-बुनाई केंद्र हैं।
सौ करोड़ से अधिक का माल डम्प
प्रदेश में खादी आश्रम 35 स्थानों से संचालित होता है। गोदामों में 100 करोड़ से अधिक कीमत का डम्प पड़ा हुआ है। इनमें ज्यादा वस्त्र हैं। गोरखपुर में गांधी आश्रम के अभिमन्यु सिंह का कहना है कि ‘रोजमर्रा की वस्तुओं की बिक्री और खपत है लेकिन कपड़ों की स्थिति बेहद खराब है। करीब 30 करोड़ का माल तो सिर्फ गोरखपुर और महराजगंज में ही डंप है।’ तिरंगा झंडा महराजगंज की आनंद नगर शाखा के अलावा अकबरपुर और बाराबंकी में सिला जाता है। आनंदनगर शाखा के प्रबंधक मोहम्मद इस्लाम अंसारी का कहना है कि ‘सामान्य दिनों में प्रतिवर्ष 8,000 से अधिक तिरंगा बिकता था, अब बिक्री आधे से भी कम हो गई है। केमिकल की महंगाई से कीमतें भी बढ़ गई हैं। टेलर तो बेकार हुए ही हैं, विभिन्न कार्य में लगे 2,500 से अधिक कामगार भी खाली हो गए हैं।’ खादी आश्रम में तीन वर्षों की बिक्री से भी खस्ताहाली का अंदाजा हो जाता है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में यूपी के गांधी आश्रमों से करीब 125 करोड़ तो 2020-21 में सिर्फ 70 करोड़ की बिक्री हुई। चालू वित्त वर्ष में 6 महीने गुजरने के बाद भी 35 करोड़ की बिक्री नहीं हुई है। सुल्तानपुर में सालाना 6 करोड़ से अधिक की बिक्री होती थी लेकिन दो साल से बमुश्किल एक करोड़ पार हो रहा है।
छूट बंद, जीएसटी चालू
गांधी आश्रम के उत्पादों पर केंद्र सरकार ने 18 फीसदी तक जीएसटी लगाया तो योगी सरकार ने गांधी जयंती पर छूट के एवज में मिलने वाली सब्सिडी को भी खत्म कर दिया। तिरंगा झंडा, गांधी टोपी और सूत के अलावा सभी खादी उत्पादों पर पांच से 12 फीसदी तक जीएसटी देना पड़ रहा है। लखनऊ खादी आश्रम में महामंत्री अरविंद कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि ‘अक्तूबर महीने से गांधी आश्रम द्वारा दी जाने वाली छूट की रकम प्रदेश सरकार नकद सब्सिडी के रूप में वापस कर देती थी। लेकिन पिछले चार वर्षों से यह बंद है। खादी आश्रम को अपने संसाधन से छूट के साथ ही जीएसटी भी देना है। वर्तमान में सरकार प्राइम कॉस्टपर 30 फीसदी छूट देती है। इसी रकम से प्रचार-प्रसार, शो-रूम की व्यवस्था से लेकर बुनकरों और कर्मचारियों को अंशदान दिया जाना है। लेकिन जब बिक्री ही नहीं है तो उत्पादन करने और छूट की संभावना भी खत्म है। किसी भी उत्पाद पर 20 फीसदी से अधिक मार्जिन लेने पर रिकवरी की जा रही है।’
पीएफ के भी पैसे नहीं
मेरठ में गांधी आश्रम की 400 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है। यहां गांधी आश्रम प्रबंधन ने कर्मचारियों के पीएफ भुगतान के लिए जमीन को लीज पर दे दिया। रेणुका आशियाना प्राइवेट लिमिटेड की रेनू गुप्ता के नाम 24 मई, 2021 को जमीन लीज पर दी गई तो हंगामा खड़ा हो गया। गांधी आश्रम समिति का कहना है कि 6 अगस्त, 2015 को संस्था की बैठक में हुए निर्णय के आधार पर जमीन लीज पर देने का फैसला हुआ था। पांच करोड़ की सिक्योरिटी के बाद 1.80 लाख के मासिक रेंट पर जमीन दी गई है। इस रकम का उपयोग पीएफ भुगतान में हो रहा है। खैर, मामले में शासन के निर्देश पर डीएम द्वारा गठित चार सदस्यीय कमेटी ने रिपोर्ट दे दी है। इस पर निर्णय डीएम के. बालाजी को लेना है। उधर, खादी ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने जमीन को लीज पर देने को पूरी तरह गलत बताया है। वहीं अकबरपुर के क्षेत्रीय गांधी आश्रम को भी पीएफ के लिए जमीन को लीज पर देना पड़ा है।
वर्ष 1920 में आचार्य जेबी कृपलानी द्वारा अलीगढ़ में खोले गए गांधी आश्रम को सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने पांच करोड़ से भी अधिक की बकाएदारी में नोटिस भेजा है। बैंक ने क्षेत्रीय गांधी आश्रम सहित तीन संपत्ति बंधक बनाने का नोटिस जारी किया है। 2.28 करोड़ का लोन बैंक ने 1980 में स्वीकृत किया था। आश्रम मूल से भी ज्यादा राशि ब्याज में दे चुका है। यहां कर्मचारियों का करीब एक करोड़ रुपये का वेतन बकाया है।
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