दिल्ली में खास लोगों को ही शराब के ठेके देने का खेल, केजरीवाल सरकार ने छोटे कारोबारियों पर थोपीं असंभव सी शर्तें
सवाल उठ रहे हैं कि ऐसी नीति लेकर आखिर दिल्ली सरकार इतनी जल्दबाजी में क्यों है। नाम नहीं बताने की शर्त पर एक व्यक्ति ने अंदर की कथा इस तरह बताई, ‘वास्तव में, मुख्यमंत्री केजरीवाल के बाद इस सरकार में सबसे शक्तिशाली एक व्यक्ति की शह पर ही यह सब हो रहा है।'
हरीश चौहान की दिल्ली के शेख सराय-I में 2002 से शराब की दुकान थी। जून, 2021 के आखिर में जब दिल्ली सरकार ने शराब की दुकानों के लाइसेंस के लिए निविदाएं निकालीं, उसकी शर्तें देखकर वह समझ गए कि उनसे ये पूरा नहीं होने वालीं। निविदा में भाग लेने वाले को बयाना राशि के तौर पर 30 करोड़ रुपये और साथ में, गैर वापसी योग्य (नॉन-रिफंडेबल) रकम के तौर पर 10 लाख रुपये जमा करने थे।
पिछले साल तक शराब व्यापार के लिए वार्षिक लाइसेंस फीस 8 लाख रुपये थी। सभी लाइसेंस की अवधि 30 सितंबर को समाप्त हो रही थी। इन शर्तों के कारण सभी छोटे व्यापारी झटका खा गए। सरकार ने यह भी घोषणा की थी कि सिर्फ सरकारी स्वामित्व वाली दुकानें ही 30 सितंबर के बाद शराब बेच पाएंगी। नई राजस्व नीति के अनुसार, नीलामी में भाग लेने वालों को दिल्ली के 32 जोन में से हरेक में सभी 27 दुकानों के लिए बोली लगानी है। पुरानी नीति में एक परिवार को एक ही शराब व्यापार लाइसेंस लेने की अनुमति थी। इस बार यह प्रतिबंध हटा लिया गया और खुली छूट दी गई कि जितने जोन में चाहें, निविदा भरी जा सकती है।
दिल्ली शराब व्यापारी एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेश गोयल के अनुसार, एयरपोर्ट जोन को छोड़कर शेष सभी जोन के लिए रिजर्व लाइसेंस फीस 220 से 228 करोड़ रुपये रखी गई। एयरपोर्ट जोन के लिए यह 105 करोड़ थी। सभी जोन में 10 बजे सुबह से रात 10 बजे तक दुकानें खोलने की अनुमति है जबकि एयरपोर्ट में दुकान चौबीस घंटे खोलने की अनुमति है। चौहान कहते हैं कि दिल्ली में 540 सरकारी दुकानें थीं जबकि 260 निजी लाइसेंस लेने वालों में से अधिकतर पिछले करीब पौने दो साल में महामारी की वजह से बुरी तरह टूट गए थे। कोई बिक्री तो थी नहीं, बावजूद इसके किराया और वार्षिक लाइसेंस फीस का भुगतान तो करना ही था। उन्होंने बताया कि ‘हम लोगों को अपनी जमा पूंजी खर्च करनी पड़ रही थी और अब तो हम इस व्यापार से ही बाहर कर दिए गए हैं।’
दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने इन्हें और समय देने तथा त्योहार के मौसम में बिक्री की अनुमति देने से मना कर दिया। यह तर्क भी अनसुना कर दिया गया कि ऐसा न करने से सरकारी दुकानों पर भीड़ बढ़ेगी। व्यापारियों ने यह तक कहा कि इस किस्म की भीड़ से बचने के लिए लोग गुरुग्राम, फरीदाबाद, नोएडा और गाजियाबाद जाकर शराब खरीद सकते हैं जिससे सरकार को राजस्व की हानि होगी। इससे भी कोई फायदा नहीं हुआ।
दिल्ली हाईकोर्ट ने भी आदेश पर स्थगन लगाने से मना कर दिया। हाई कोर्ट ने इसे भेदभाव नहीं माना और कहा कि‘... बदलाव अवश्यंभावी है। एक्साइज नीति इससे अलग नहीं है। नीति के खयाल से नए प्रयोग की सब दिन अनुमति दी जाती है।’ कोर्ट को यह तर्क प्रभावित नहीं कर पाया कि नई नीति कुछ लोगों का संघ बना लेने और उनका एकाधिकार होने का मार्ग प्रशस्त करेगा और इससे उपभोक्ताओं को अधिक कीमत चुकानी होगी। वैसे, हाईकोर्ट ने रोक लगाने के आवेदन को निरस्त करते हुए अंतरिम आदेश दिया है और 21 अक्तूबर को आगे की सुनवाई होगी।
दुकानदारों का कहना है कि ‘किसी इलाके में दुकान खोलना कोई आसान काम नहीं है। पहले तो आरडब्ल्यूए और लोगों की आपत्तियों से उबरना होता है, फिर कई बाधाएं दूर करनी होती हैं। सरकारी दुकानें तो छोटी होती हैं लेकिन निजी दुकानों को कम-से-कम 500 वर्ग फीट जगह चाहिए होती है और अधिकांशतः यह किराये पर होती है। दुकानों से वास्तविक आय आसपास की आबादी पर निर्भर करती है। इसके अनुरूप ही शराब बिकती है। भारत में बनी विदेशी शराब और विदेशी शराब बेचने वाले दुकानदार औसतन दो से तीन लाख रुपये हर माह कमा पाते हैं।’
लेकिन सवाल यह भी उठ रहे हैं कि ऐसी नीति लेकर दिल्ली सरकार आई ही क्यों और उसे इतनी जल्दबाजी क्यों है। नाम नहीं बताने की शर्त पर एक व्यक्ति ने अंदर की कथा इस तरह बताई, ‘वास्तव में, मुख्यमंत्री केजरीवाल के बाद इस सरकार में सबसे शक्तिशाली एक व्यक्ति का 3-4 लोगों पर वरदहस्त है। उन लोगों ने हाथ मिला लिए और आपस में 100 से अधिक दुकानें बांट ली। इस वजह से यह हाल हुआ है।’
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