कर्नाटकः कैबिनेट में विद्रोह झेल रहे सीएम बोम्मई के सामने नया संकट, पंचमसाली समुदाय के लिए मिला अल्टीमेटम
जया मृत्युंजय स्वामी ने चेतावनी दी कि अगर मांग पूरी नहीं हुई तो वह 1 अक्टूबर से बेंगलुरु के फ्रीडम पार्क में प्रदर्शन शुरू कर देंगे। वहीं राज्य में आरक्षण पर समुदाय को जागरूक करने के लिए 26 अगस्त से पंचमसाली प्रतिज्ञा पंचायत कार्यक्रम का आयोजन किया गया है।
कर्नाटक में कोरोना महामारी से मुकाबले के साथ कैबिनेट गठन के बाद विद्रोह से निपटने की कोशिश कर रहे मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के सामने एक और नई चुनौती खड़ी हो गई है। पंचमसाली समुदाय के बसव जया मृत्युंजय स्वामीजी ने समुदाय को ओबीसी आरक्षण प्रदान करने की समय सीमा निर्धारित करने की सरकार को चेतावनी दे दी है।
लिंगायत समुदाय के पंचमसाली उप संप्रदाय के जया मृत्युंजय स्वामी ने गुरुवार को चेतावनी दी कि अगर मांग पूरी नहीं हुई तो वह 1 अक्टूबर से बेंगलुरु के फ्रीडम पार्क में विरोध प्रदर्शन शुरू कर देंगे। इस मुद्दे पर सरकार को समझाने की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी मंत्री सी.सी. पाटिल को दी गई है।
जया मृत्युंजय स्वामी ने कहा, "पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने विधानसभा सत्र में आश्वासन दिया था कि मांग पर 6 महीने में विचार किया जाएगा। उस वादे के अनुसार सरकार को 15 सितंबर तक कार्रवाई करनी होगी। बोम्मई, जो उस समय गृह मंत्रालय के प्रभारी थे, उन्होंने पूरा सहयोग दिया था। अब वह मुख्यमंत्री हैं और उन्हें समुदाय को यह सुविधा देनी चाहिए।"
इस बीच राज्य भर में आरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए पंचमसाली प्रतिज्ञा पंचायत कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। स्वामी ने कहा कि अभियान 26 अगस्त को एमएम हिल्स से शुरू होगा और यहां से बेंगलुरू तक एक रैली निकाली जाएगी।
जया मृत्युंजय स्वामी 2 ए श्रेणी के तहत आरक्षण की मांग कर रहे हैं, जो लिंगायत समुदाय के पंचमसाली उप संप्रदाय के लिए अन्य पिछड़ा समुदायों (ओबीसी) के तहत आरक्षण प्रदान करेगा। उन्होंने कहा कि केंद्र द्वारा ओबीसी की अपनी सूची बनाने के लिए राज्यों की शक्ति बहाल करने के साथ, राज्य को इस पर कार्रवाई कर मांग को पूरा करना चाहिए।
बता दें कि येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री रहने के दौरान फरवरी में पंचमसाली उपजात के लिए आरक्षण की मांग को लेकर कुडलसंगम से बेंगलुरु तक 446 किलोमीटर की एक विशाल विरोध रैली निकाली गई थी। रैली का इस्तेमाल येदियुरप्पा के विरोधियों ने यह दिखाने के लिए भी किया था कि लिंगायत समुदाय का सबसे बड़ा उप संप्रदाय उनके साथ आमने-सामने है।
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