अगर जेडीएस के समर्थन से बनी कांग्रेस सरकार तो खड़गे, परमेश्वर या मुनियप्पा हो सकते हैं मुख्यमंत्री!

कर्नाटक में अगली सरकार को लेकर बेंगलुरू से लेकर दिल्ली तक सियासी सरगर्मियां तेज़ हो चुकी हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के यह कहने के बाद कि दलित सीएम के लिए वे अपनी दावेदारी छोड़ देंगे, जेडीएस ने संकेत दे दिए हैं कि वह कांग्रेस के साथ आने को तैयार है।

फोटो : सोशल मीडिया
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तसलीम खान

कर्नाटक में क्या मतदाताओं ने स्पष्ट बहुमत दिया है? क्या कोई एक राजनीतिक पार्टी अकेले अपने दम पर सरकार बना लेगी? अगर ऐसा है तो वह पार्टी कौन सी होगी? क्या वोटों की गिनती के बाद नतीजे त्रिशंकु विधानसभा की तस्वीर पेश करेंगे? त्रिशंकु विधानसभा होने की स्थिति में कौन दल किसके साथ जाएगा? यह कुछ ऐसे सवाल हैं, जो इस समय देश के मन में हैं। और इन सबसे बड़ा सवाल है कि कर्नाटक में किसकी बनेगी सरकार? और बनेगी तो कैसे बनेगी?

शनिवार को मतदान के बाद हुए एग्जिट पोल के जो नतीजे सामने आए, उससे तस्वीर साफ होने के बजाए और उलझ गई। टीवी चैनलों और कुछ अन्य मीडिया संस्थानों द्वारा किए गए 8-9 एग्जिट पोल के नतीजों में किसी एक दल के पक्ष में नतीजे जाते नहीं नजर आए। किसी ने कांग्रेस को पूर्ण बहुमत या सबसे बड़ी पार्टी बताया, तो किसी ने बीजेपी को पूर्ण बहुमत या सबसे बड़ी पार्टी होने का  कयास लगाया। लेकिन इन सबमें एक समानता साफ थी, वह थी देवेगौड़ा की पार्टी जेडीएस के हिस्से में आने वाली 22 से 40 तक सीटें। अगर यह अनुमान सही है, तो कहा जा सकता है कि सरकार बनाने की चाभी जेडीएस के हाथ में होगी।

12 मई को वोटिंग के बाद कर्नाटक को लेकर राजनीतिक चक्र बहुत तेजी से चल रहा है और सियासी गहमागहमी अपने चरम पर दिख रही है। कांग्रेस और बीजेपी, दोनों ही अपनी जीत को लेकर बेफिक्र दिख रहे हैं। इसके बावजूद दोनों खेमों में प्लान बी पर माथापच्ची भी जारी है। माथापच्ची इस बात को लेकर है कि अगर स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, तो जेडीएस को किस आधार /e मुद्दों पर अपनी तरफ मिलाया जाएगा।

लेकिन इससे पहले शनिवार और रविवार को सामने आए कुछ राजनीतिक बयानों को समझना जरूरी है। शनिवार को मतदान के दौरान मुख्यममंत्री सिद्धारमैया निश्चिंत नजर आए और एग्जिट पोल के नतीजों के बाद भी उनका यही रुख कायम रहा। यहां तक कि उन्होंने एग्जिट पोल को मनोरंजन का साधन तक करार दे दिया। लेकिन रविवार को उनके इस बयान ने उस सियासी सन्नाटे को तीर की तरह चीर दिया कि अगर किसी दलित को मुख्यमंत्री बनाया जाता है, तो वे सीएम पद का दावा छोड़ देंगे।

सिद्धारमैया के इस बयान के बाद आनन-फानन में जेडीएस प्रमुख एच डी देवेगौड़ा की प्रतिक्रिया भी सामने आई कि अगर सिद्धारमैया सीएम नहीं बनेंगे तो जेडीएस कांग्रेस को समर्थन देगी। उनके इस बयान को काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि देवगौड़ा की सिद्धारमैया से रंजिश के चलते यह चर्चा आम थी कि जेडीएस कांग्रेस के साथ नहीं जाएगी। इस बीच सूत्रों का यह भी कहना है कि कर्नाटक में जेडीएस से गठबंधन करने वाली बीएसपी की मुखिया मायावती ने भी देवगौड़ा को संकेत दिए कि अगर दलित सीएम का विकल्प सामने आता है, तो कांग्रेस को समर्थन दिया जाए।

अगर ऐसा होता है तो त्रिशंकु विधानसभा होने की स्थिति में कांग्रेस एक बार फिर राज्य की सत्ता पर काबिज होगी, हां, उसे सहयोगी जेडीएस के साथ सत्ता की साझेदारी करनी पड़ सकती है।

सिद्धारमैया के बयान और देवगौड़ा के संकेतों के बाद कांग्रेस में यह मंथन शुरू हो गया है कि सिद्धारमैया नहीं तो फिर कौन बनेगा मुख्यमंत्री। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि अगर किसी दलित को राज्य की कमान सौंपने पर फैसला होता है तो इनमें अगली कतार में नजर आते हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे। खड़गे कर्नाटक के बीदर जिले से आते हैं और राज्य की सियासत में उनका तजुर्बा काफी लंबा है। वे कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 2013 में भी कांग्रेस की जीत के बाद सीएम पद के लिए उनके नाम की चर्चा थी, लेकिन ऐन मौके पर बाजी सिद्धारमैया के हाथ रही थी।

कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, खड़गे के अलावा कर्नाटक में कांग्रेस के पास दूसरा बड़ा दलित चेहरा हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री केएच मुनियप्पा। मुनियप्पा गुलबर्गा जिले के हैं और कोलार सीट से लगातार सात बार सांसद हैं। यूपीए की दोनों सरकारों में वे केंद्रीय मंत्री भी रहे और आलाकमान से नजदीकियां भी हैं। इसके अलावा एक और दलित चेहरा कांग्रेस के पास है, और वह हैं कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष जी परमेश्वर। 2013 में कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की जीत का सेहरा जी परमेश्वर को भी दिया गया था, लेकिन चूंकि वे खुद चुनाव हार गए थे, इसलिए मौका होने के बावजूद सीएम की कुर्सी उनके हिस्से में नहीं आई। लेकिन इस बार दलित चेहरे के रूप में उनका नाम शामिल है, और कांग्रेस सूत्र बताते हैं कि वे काफी दमदार उम्मीदवार हैं।

दूसरी तरफ बीजेपी खेमे में भी मंथन और चर्चाओं का दौर जारी है, लेकिन सबसे अहम बात यह कि उधर कुछ मायूसी नजर आ रही है। राजनीतिक विश्लेषक बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार बीएस येदियुरप्पा के इस बयान को काफी महत्वपूर्ण मानते हैं जिसमें उन्होंने अपनी जीत का दावा करते हुए हासिल होने वाली सीटों की संख्या 150 से घटाकर 125 कर दी थी। राजनीतिक गलियारों में सीटों की संख्या में इतनी बड़ी कमी का अनुमान काफी मायने रखता है।

उधर जेडीएस आश्वस्त है। उसे अच्छी तरह एहसास हो गया है कि संभवत: सत्ता की चाभी उसी के हाथ है। इसीलिए मतदान खत्म होते ही देवगौड़ा के पुत्र एचडी कुमारास्वामी सिंगापुर चले गए। हालांकि बताया जा रहा है कि वे कुछ जरूरी मेडिकल चेकअप के लिए गए हैं और शायद सोमवार देर रात तक वापस भी आ जाएंगे।

इस पूरी कवायद और सियासी हलचलों से जो संकेत निकलते हैं, वह यह हैं कि दक्षिण में कमल खिलने में अभी वक्त है, और कर्नाटक इतिहास रचते हुए सत्ता की कमान लगातार दूसरी बार कांग्रेस को ही सौंपेगा।

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