कर्नाटक चुनाव: ग्रामीण इलाकों पर ध्यान देने की कांग्रेस की चुनाव प्रचार नीति से अब तक ‘एडवांटेज सिद्धारमैया’
जानकार मानते हैं कि पिछले 5 सालों में कर्नाटक में शहरों की हालत काफी बेहतर हुई है, इसलिए रणनीतिक रूप से सिद्धारमैया ने इस बार का अपना चुनाव प्रचार ज्यादातर ग्रामीण इलाकों पर केंद्रित किया है।
कल यानी 10 मई को कर्नाटक चुनाव के लिए प्रचार खत्म हो गया और कल यानी 12 मई को कर्नाटक के मतदाता अपने मतों के जरिये इस बात का फैसला करेंगे कि कर्नाटक में अगली सरकार किसकी होगी। और 15 मई को हम यह जान पाएंगे कि फैसला किसके पक्ष में गया है। क्या वर्तमान सीएम सिद्धारमैया फिर से कर्नाटक के मुख्यमंत्री होंगे या फिर बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार येदुरप्पा को जीत मिलेगी?
चुनाव प्रचार के दौरान तो यही देखने को मिला कि कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने न सिर्फ बीजेपी की राज्य ईकाई को, बल्कि पीएम मोदी और अमित शाह समेत उनके पूरे केंद्रीय नेतृत्व को अपने राजनीतिक कौशल से पसीने छुड़ा दिए हैं। स्वतंत्र विशेषज्ञों की भी राय है कि पूरे चुनाव अभियान में अब तक सिद्धारमैया हावी रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में हुए ओपिनियन पोल के नतीजे भी उनके पक्ष में गए हैं। वे कर्नाटक में पिछले चार दशकों में 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले पहले मुख्यमंत्री बने और उनकी सरकार का रिपोर्ट कार्ड भी अच्छा रहा। बहुत दिनों बाद किसी राज्य में चुनाव विश्लेषकों ने माना कि कोई सत्ता-विरोधी लहर नहीं दिख रही है। लेकिन यह सारे कयास कितने सच साबित होते हैं, यह तो चुनाव परिणाम की घोषणा के बाद ही पता चलेगा।
इस पूरे चुनाव अभियान में सिद्धारमैया के पक्ष में एक खास बात यह जाती है कि उनका चुनाव अभियान कर्नाटक के ग्रामीण इलाकों पर केंद्रित रहा है। चुनाव आयोग के आंकड़ों की मानें तो कर्नाटक में 154 सीटें ग्रामीण इलाकों में हैं, जबकि शहरी इलाकों में सिर्फ 70 सीटें हैं। उनमें भी 28 यानी लगभग आधी शहरी सीटें बेंगलुरू और उसके आसपास हैं।
2008 में जब राज्य में बीजेपी की सरकार बनी थी तब उन्होंने बेंगलुरू की 28 में से 17 सीटों पर कब्जा किया था और कांग्रेस को राज्य के 60 फीसदी ग्रामीण सीटों पर जीत मिली थी। 2013 में कांग्रेस ने बेंगलुरू की 13 सीटें जीती थीं और बीजेपी को 12 मिली थीं। 2013 के चुनाव में शहरी मतदाताओं की बड़ी भूमिका थी क्योंकि कर्नाटक के सारे शहरों की हालत खराब थी, यहां तक कि बेंगलुरू जैसा शहर कई तरह की समस्याएं झेल रहा था। लेकिन जानकार मानते हैं कि पिछले 5 सालों में शहरों की हालत काफी बेहतर हुई है। उनका यह भी कहना है कि इसलिए रणनीतिक रूप से सिद्धारमैया ने इस बार का अपना चुनाव प्रचार ज्यादातर ग्रामीण इलाकों पर केंद्रित किया है।
कर्नाटक की 224 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में 2655 उम्मीदवार खड़े हैं और 2.52 करोड़ पुरुष और 2.44 महिलाएं उनके राजनीतिक भाग्य का फैसला करेंगी। 15 लाख मतदाता ऐसे होंगे जो पहली बार वोट डालेंगे।
अब 15 मई को यह पता चलेगा कि इन मतदाताओं ने 122 सीटों वाली कांग्रेस पर फिर से भरोसा जताया है या 40-40 सीटों वाली बीजेपी और जेडीएस को 113 के जादुई आंकड़े तक पहुंचा दिया है। टेनिस की भाषा में कहें तो फिलहाल अभी तक यह चुनाव ‘एडवांटेज सिद्धारमैया’ है।
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