कैराना उपचुनाव: बीजेपी के हाथों अजित सिंह के अपमान का बदला लेने के लिए लामबंद हुए जाट
पहले कैराना उपचुनाव में जयंत चौधरी को यहां उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा थी, मगर तीन दिन चली गहरी चर्चा के बाद सपा विधायक नाहिद हसन की मां तबस्सुम हसन को आरएलडी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ाना तय हुआ।
कैराना से 84 किमी दूर मीरापुर के जाटों वाले मोहल्ले में हुक्का गुड़गुड़ाते हुए कुछ जाट सड़क के किनारे चारपाई पर बैठकर कैराना चुनाव की चर्चा में मशगूल है। कैराना की बेचैनी को इनके चेहरे पर पढ़ा जा सकता है। कैराना में वे वोट नही कर सकते, मगर कैराना पर इनकी पल-पल की नजर है। इसकी अपनी वजह है। यहां बैठे 81 साल के चौधरी मल्लू सिंह की इसका खुलासा करते हैं। वे कहते हैं, "जाटों का नेता खत्म हो जाएगा। इन बीजेपी वालों ने तो उसका घर भी छीन लिया और अब हमारा वजूद भी छीनना चाहते हैं। उन्हें जाटों की राजनीति से जलन हो रही है। जयंत हमारा बच्चा है, उसमें अपने दादा वाली बात है। यह चुनाव तब्बसुम हसन नही लड़ रही हैं, जाट लड़ रहे हैं। यह जाटों के मान-सम्मान की बात है। रालोद हमारी पार्टी है। किसानों की बात करती है। बीजेपी तो पूंजीपतियों का दल है।"
कैराना चुनाव की गूंज दूर तक फैल रही है। आरएलडी के प्रवक्ता अभिषेक चौधरी बताते हैं कि कैराना उपचुनाव में बीजेपी ने अपने 16 जाट विधायक सिर्फ जाटों को मनाने के लिए उतार दिए है क्योंकि जाटों के तमाम चौधरी आरएलडी नेता अजित सिंह के साथ आ गए हैं। मुजफ्फरनगर के अजित राठी कहते हैं, "जाट बहुत जज्बाती क़ौम है। उसकी समझ मे आ गया है कि बीजेपी उनके नेतृत्व को खत्म करने की साजिश कर रही है।”
इस समय आरएलडी का विधानसभा और लोकसभा में कहीं भी प्रतिनिधित्व नहीं है। उनके एकमात्र विधायक सहेंद्र रमाला अब बीजेपी में शामिल हो गए हैं। उत्तर प्रदेश में हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव में रालोद विधायक ने क्रॉस वोटिंग करते हुए बीजेपी प्रत्याशी को वोट किया था, जिसके बाद अजित सिंह ने छपरौली से विधायक सहेंद्र रमाला को पार्टी से निकाल दिया था। चौधरी अजित सिंह का घर खाली कराने और साजिश कर उनके विधायक को फुसलाने पर जाटों में नाराजगी है। आरएलडी के पूर्व एमएलसी मुश्ताक चौधरी बताते हैं, “दिल्ली के उसी घर मे जयंत पैदा हुए थे। जाटों की उससे भावनाएं जुड़ी थीं। बीजेपी चौधरी अजीत सिंह का वजूद मिटाने की साज़िश कर रही है, मगर कैराना में बीजेपी को हराकर हम करारा जवाब देंगे।”
इस चुनाव को चौधरी अजित सिंह ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। इससे पहले कभी उन्होंने इतनी मेहनत नही की है। वे बुधवार को जलालाबाद के आरएलडी नेता अशरफ अली खान के घर पहुंचे। उन्होंने कहा, "अब मेरी जिंदगी का एक ही मक़सद है। जाटों और मुसलमानों में पहले जैसी मोहब्बत पैदा करना।"
अशरफ अली खान के पिता गय्यूर अली खान कैराना से सांसद रहे हैं और वे अजित सिंह के पिता पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के करीबी मित्र के तौर पर जाने जाते थे। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद यहां जाटों और मुसलमानों के बीच गहरी खाई पैदा हो गई थी। आरएलडी सुप्रीमो पिछले तीन महीने से यहां दंगा प्रभावित इलाकों में घूमकर दिलों को करीब लाने की कोशिश कर रहे हैं। पहले कैराना उपचुनाव में जयंत चौधरी को यहां उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा थी, मगर तीन दिन चली गहरी चर्चा के बाद सपा विधायक नाहिद हसन की मां तबस्सुम हसन को आरएलडी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ाना तय हुआ।
सहारनपुर के जिला पंचायत अध्यक्ष रहे सपा नेता इरशाद चौधरी कहते हैं कि सेकुलर दलो में बेहतरीन समन्वय के लिए यह एक सुलझा हुआ फैसला है।
कैराना लोकसभा में लगभग डेढ़ लाख जाट हैं, जबकि मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 14 लाख है। इनमें 5 लाख सिर्फ मुसलमान हैं, मगर फिर भी चर्चा के केंद्र में सिर्फ जाट आ गए हैं क्योंकि उनकी स्थिति निर्णायक बन गई है। 2013 के दंगों में सबसे ज्यादा प्रभावित गांव लांक, बहावड़ी और लिसाढ़ भी इसी क्षेत्र में आते हैं। बीजेपी कैराना परिणाम का मतलब अच्छी तरह समझ रही है, इसलिए इन्हीं जाट बहुल जगहों का 28 मंत्री लगातार दौरा कर रहे हैं और घर-घर जा रहे हैं। यह अलग बात है कि जाटों को वे लुभा नही पा रहे हैं।
यहां आरएलडी का एक पोस्टर भी चर्चा में है। इस पर लिखा है, "यहां जिन्ना नहीं, गन्ना चलेगा।" अभिषेक बताते हैं कि बीजेपी के पास चुनाव में कोई मुद्दा नहीं है। वे झूठ पर झूठ बोलते रहते हैं। गन्ना के भुगतान पर लाल किले से झूठ बोला गया। यहां किसान दुखी है। उसे अपना गन्ना बेचने के लिए 48 घंटे तक लाइन में खड़ा होना पड़ता है और फिर भुगतान के लिए परेशानी उठानी पड़ती है। अब मंत्री महोदया कह रही हैं कि गन्ना बो ही क्यों रहे हों ! बीजेपी के पास समाधान नहीं है। वह बस मुद्दों को डाइवर्ट करने के लिए जिन्ना को लाती है।”
जाट इस चुनाव को कितनी गंभीरता से ले रहे हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आरएलडी सुप्रीमो अजित सिंह आपसी मतभेद भुलाकर भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत की पुण्यतिथि पर पहुंचे तो उनके परिवार ने उनका जोरदार स्वागत किया। दिवंगत महेंद्र सिंह टिकैत के पुत्र नरेश टिकैत ने अपने पिता के बाद उन्हें अपना संरक्षक बताया। चौधरी अजित सिंह ने टिकैत परिवार के साथ घंटो बात की और वहां कैराना चुनाव की रणनीति पर भी चर्चा हुई।
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