कैरानाः मौत के 9 साल बाद भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं सांसद मुनव्वर हसन

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बड़े नेता रहे मुनव्वर हसन की मौत को 9 साल हो गए। लेकिन क्या हिंदू, क्या मुसलमान, इलाके के तमाम लोगों के दिलों में आज भी उनकी यादें जिंदा हैं।

फोटोः आस मोहम्मद खान
फोटोः आस मोहम्मद खान
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आस मोहम्मद कैफ

"मैं उस दिन का गवाह हूं। कैराना इतना चुप कभी नही हुआ। 50 हजार की आबादी के कैराना में हर घर में मातम था। किसी चूल्हे में आंच नहीं थी। कैराना की आबादी 50 हजार थी, मगर उस दिन कैराना में लाखों लोग थे। किसानों का सबसे बड़ा नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत अपने सर को दोनों हाथों के बीच दबाए उदास बैठा था। कैराना के कद्दावर नेता हुकुम सिंह को लोगों ने मुनव्वर के लिए रोते हुए देखा।”

उस समय की मुख्यमंत्री मायावती अपना उसूल तोड़कर मुनव्वर की मिट्टी में शरीक होने आयी थीं। 3 किमी तक रस्सी बांधकर मायावती के लिए रास्ता बनाया गया था। पूरा कैराना बंद था, एक दुकान कहीं नहीं खुली थी। कैराना बिल्कुल चुप था। इससे पहले कैराना इतना चुप कभी नहीं हुआ था और इतना बड़ा नेता भी कैराना में इससे पहले कभी नहीं हुआ था। उस दिन आधी रात के बाद बसपा सरकार के ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय की बेटी की शादी में शिरकत कर लौट रहे सांसद मुनव्वर हसन की कार और एक ट्रक में हुई टक्कर में उनकी मौत हो गई।

मौत से कुछ दिन पहले ही उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया था। मुनव्वर हसन भारत के राजनितिक इतिहास के ऐसे एकमात्र नेता हैं जिन्होंने भारत के चारों सदन- राज्यसभा, लोकसभा, विधानसभा और विधान परिषद का प्रतिनिधित्व किया है। पश्चिम उत्तर प्रदेश के जिलों में उनकी अदुभुत लोकप्रियता थी। कैराना के शायर रियासत अली कहते हैं कि एमपी साहब को 10 हजार से ज्यादा नाम जबानी याद थे। आज उनके बेटे नाहिद हसन कैराना से विधायक हैं। मौत के समय मुनव्वर 44 साल के थे। कैराना के मौलाना नसीम बताते हैं, "उनकी पसंदीदगी का आलम यह है कि आप रिक्शेवाले से कहिये कि एमपी साहब के घर जाना है वो मुनव्वर हसन के घर पहुंचा देगा, जबकि एमपी और भी हैं, मगर दिल में मुनव्वर बसे हैं।

कैराना के मशहूर आइसक्रीम विक्रेता जाहिद कहते हैं, "मुनव्वर हसन जैसा नेता यहां कभी पैदा नहीं हो सकता। उनमें लोगों को अपना बना लेने की कला थी। रेहड़ी पर कबाब बेचने वाले महमूद कहते हैं, "एमपी साहब मेरे दोस्त थे, गाड़ी रोककर अक्सर कबाब खाते थे। वो ऐसे बात करते थे जैसे अपने हों। जाहिद कहते हैं, "इसलिए लोग उन्हें गरीबों का नेता कहते थे, एकदम जमीनी नेता। वो किस तरह के नेता थे, यह राशिद अली बताते हैं, 2007 में मुनव्वर हसन को अलमासपुर
में हमने एक ट्रेक्टर एजेंसी की ओपनिंग के लिए बुलाया। वो उस समय सांसद थे। 100 से ज्यादा गाड़ियों का लंबा काफिला आया। हम मुनव्वर को बड़ी गाडी में समझ रहे थे। मगर वो मारुती 800 से उतरे। मीरापुर के पूर्व चेयरमैन जहीर कुरैशी कहते हैं, "मुनव्वर किसी को नहीं कहते थे कि मेरे साथ चलो, लोग खुद ब खुद उनके साथ चल देते थे।

जानसठ के अब्दुल्ला ठेली पर केले बेचते थे। वो बताते हैं, “एक दिन मुनव्वर से कहीं मिले तो मुनव्वर ने हमारा नाम याद कर लिया। अब एमपी साहब भीड़ के सामने कहें, "और अब्दुल्ला भाई! कैसे हो, तो दीवानगी लाजिम थी। कैराना में मुनव्वर हसन अक्सर लोगों के घर में चले जाते और कहते, "ला लाल्ली (स्थानीय जबान में बहन ) खाना दे, भूख लग रही है।” नसीम कहते हैं कि इससे उन्हें पता चल जाता था कि उनके लोगों की वास्तविक हालत क्या है।

मुनव्वर हसन के पिता अख्तर हसन बसपा सुप्रीमो मायावती को 2 लाख वोटों से हराकर सांसद बने थे। उनका चौधरी परिवार इलाके का सबसे बड़ा जमींदार परिवार है। मुनव्वर के दादा चौधरी बुन्दू और वर्तमान सांसद हुकुम सिंह आपस में भाई हैं। 1991 में मुनव्वर हसन ने अपने पहले विधानसभा चुनाव में अपने 'दादा ' हुकुम सिंह को जोरदार हार का मजा चखा दिया। 1993 में फिर से चुनाव हुआ। फिर कैराना से मुनव्वर ने हुकुम सिंह को हरा दिया। 1996 में वो सांसद बन गए और 1998 में उन्हें समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा में भेज दिया। समाजवादी पार्टी में उनके साथी राशिद सिद्दीकी कहते हैं, "मुनव्वर भाई का जलवा ऐसा था कि नेता जी मुलायम सिंह यादव शिवपाल जी की बात टाल सकते थे मगर उनकी नहीं। जो अधिकारी जनता के काम नहीं करता था वो उनके एक  फोन पर हटा दिया जाता था। शामली के नफीस राणा के अनुसार, “उन्होंने गरीबों की बेइंतहा दुआ ली। यहां सूदखोरों का आतंक था। वो गरीब को 5 हजार रुपए देते और 50 हजार कर देते थे। फिर उसका घर हड़प लेते थे। यह आतंक एमपी साहब ने खत्म कराया। 50 से ज्यादा गरीबों के घर उन्हें वापस कराए। उनकी मौत के बाद यह मातम इसलिए था।”

2003 में वो एमएलसी बन गए इसके बाद गिनीज बुक में उनका नाम दर्ज हुआ और उपहार में लंदन में उन्हें जगह मिली। जब मुनव्वर हसन की मौत हुई तो उनके इकलौते बेटे नाहिद हसन आस्ट्रेलिया में पढ़ाई कर रहे थे। उनके करीबी बताते हैं कि वो कभी नहीं चाहते थे कि नाहिद सियासत करें। दरअसल वो हर रंग देख चुके थे। उनकी मौत के तुरंत बाद मायावती ने उनकी पत्नी तब्बसुम हसन को उनकी जगह लोकसभा प्रत्याशी घोषित कर दिया। 2009 के आम चुनाव में तब्बसुम ने हुकुम सिंह को हरा दिया। हाल ही में उनकी बेटी इकरा हसन जिला पंचायत का चुनाव लड़ चुकी है। 1 दिसम्बर को आये निकाय चुनाव परिणाम में उनके भाई अनवर हसन कैराना के चेयरमैन चुने गए हैं।

मुजफ्फरनगर में उनके बंगले पर एक समय सबसे ज्यादा फरियादियों की भीड़ जुटती थी। अब किसी नेता के दरबार में इतनी भीड़ नही जुटती। नाहिद अब कैराना से विद्यायक हैं। दूसरा मुनव्वरअब तक कोई नहीं बन पाया है। मोहम्मद उमर एडवोकेट बताते हैं, "मुनव्वर हसन लक्जरी नेता नहीं थे। उनका देसी स्टाइल ही उनकी जान था। आजकल कई नेता मुनव्वर स्टाइल की नकल करते हैं। मगर वो परिपक्वता और काबिलयत अभी उनके बेटे में भी नहीं आ पाई है। जनता उनकी दीवानी थी। वो कहीं भी लाख आदमी इकट्ठा करने की क्षमता रखते थे। इसीलिए फोन पर "सुनो मुनव्वर बोल रहा हूं" सुनकर अफसर हिल जाते थे।

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Published: 13 Dec 2017, 9:11 PM