मिल्खा सिंह से ‘फ्लाइंग सिख’ तक का सफर, हर एक पल को इतिहास के सुनहरे पन्नों में कराया दर्ज, पढ़िए...

मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर, 1929 को पाकिस्तान में हुआ। उनका गांव अविभाजित भारत के मुजफ्फरगढ़ जिले में पड़ता था, जो अब पश्चिमी पाकिस्तान में आता है। उनके गांव का नाम गोविंदपुरा था। उन्होंने राजपूत राठोर परिवार में जन्म लिया था।

फोटो: IANS
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नवजीवन डेस्क

फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर धावक मिलखा सिंह के निधन से पूरे देश में शोक की लहर है। 91 वर्षीय मिल्खा सिंह का चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में रात 11.30 बजे निधन हो गया। मिलखा सिंह से फ्लाइंग सिख बनने तक का उनका सफर बेहद रोमांचक और गौरवशाली रहा। उनके जीवन में कई ऐसे विपरीत पल आए, जिन से उन्होंने ना सिर्फ पार पाया, बल्कि इतिहास रच दिया। उनके जीवन से जुड़े कई किस्से याद किए जा रहे हैं।

मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर, 1929 को पाकिस्तान में हुआ। उनका गांव अविभाजित भारत के मुजफ्फरगढ़ जिले में पड़ता था, जो अब पश्चिमी पाकिस्तान में आता है। उनके गांव का नाम गोविंदपुरा था। उन्होंने राजपूत राठोर परिवार में जन्म लिया था। उनके कुल 12 भाई-बहन थे। मिल्खा सिंह के परिवार ने विभाजन की त्रासदी का दर्द झेला। उस दौरान उनके माता-पिता के साथ आठ भाई-बहन मारे दिए गए थे। परिवार में सिर्फ चार लोग ही जिंदा बचे थे, जिनमें से एक आगे चलकर विश्व के महान धावकों में से एक बने, जिन्हें अब फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह के नाम जाना जाता है।


भारत आने के बाद मिल्खा सिंह साल 1951 में वे भारतीय सेना में शामिल हो गए। सेना में शामिल होना ही उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट था, जहां से एक महान खिलाड़ी का उदय हुआ। इसी दौरान उन्हें खेलों में हिस्सा लेने का मौका मिला। मिल्खा सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया था कि आर्मी ज्वाइन करने के 15 ही दिन बाद एक दौड़ का आयोजन किया गया था, जिससे एथलेटिक्स ट्रेनिंग के लिए 10 जवान चुने जाने थे। उन्होंने बताया कि जब मैंने रेस शुरू की तो मेरे पेट में दर्द होने लगा, जिसके चलते मुझे रुकना पड़ा, इसके बाद मैंने फिर अपनी दौड़ शुरू कर दी। उन्होंने बताया कि आधा मील चला ही होऊंगा कि फिर दर्द होने लगा। रुकता, फिर चलने लगता, फिर रुकता, फिर चलता। इस तरह वो दोड़ पूरी की, फिर भी मैं उन करीब 500 लोगों में से 6वें स्थान पर आने में कामयाब हुआ। इस तरह भारतीय सेना में स्पोर्ट्स के लिए उनका दरवाजा खुला। इसके बाद तो जो कुछ हुआ वह इतिहास बन गया।

मिल्खा सिंह 1958 में देश के पहले इंडिविजुअल एथलेटिक्स बने, जिन्होंने कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड मेडल जीता। साल 2010 तक यह सम्मान पाने वाले वे अकेले भारतीय थे। साल 1958 और साल 1958 में आयोजित एशियन खेलों में भी वे गोल्ड मेडल जीते। इसी दौरान सरकार ने खेलों में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्म श्री अवॉर्ड से नवाजा। मिल्खा सिंह ने लगातार तीन ओलंपिक खेलों में देश का नेतृत्व किया। यह तीन ओलंपिक थे साल 1956 में मेलबर्न में आयोजित हुआ समर ओलंपिक, फिर साल 1960 में रोम में आयोजित हुआ समर ओलंपिक और साल 1964 में टोक्यो में आयोजित हुआ समर ओलंपिक।


सेना में भर्ती होने के 4 साल बाद 1956 में वे पटियाला में हुए नेशनल गेम्स जीते। इससे उन्हें ओलंपिक के लिए ट्रायल देने का मौका मिला। लेकिन ओलंपिक के लिए ट्रायल देने से पहले ही उन्हें एक भयंकर और दर्दनाक अनुभव से गुजरना पड़ा था। मिल्खा सिंह के जो प्रतिद्वंदी थे वे नहीं चाहते थे कि मिल्खा सिंह उस रेस में हिस्सा लें। इसलिए एक दिन पहले ही उनके प्रतिद्वंदियों ने उन पर हमला बोला। उनके सर और पैरों में चोट आई। अगली सुबह उनके शरीर पर जगह-जगह निशान दिखे और बुखार भी आया हुआ। वे डॉक्टर के पास गए तो डॉक्टर ने उनसे कहा कि वे रनिंग में हिस्सा ना लें।

मिल्खा ने एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता में चार बार स्वर्ण पदक जीता है और 1958 के राष्ट्रमंडल खेलों में भी स्वर्ण पदक जीता था। हालांकिक, 91 वर्षीय को 1960 के रोम ओलंपिक के 400 मीटर फाइनल में उनकी एपिक रेस के लिए याद किया जाता है।


बीते 13 जून को ही मिल्खा सिंह की पत्नी निर्मल कौर का कोरोना से निधन हो गया था। मिल्खा सिंह के परिवार में तीन बेटियां डॉ. मोना सिंह, अलीजा ग्रोवर, सोनिया सांवल्का और बेटा जीव मिल्खा सिंह हैं। गोल्फर जीव, जो 14 बार के अंतरराष्ट्रीय विजेता हैं, वे भी अपने पिता की तरह पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित हैं।

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Published: 19 Jun 2021, 9:43 AM