जोशीमठ : सरकार के दावे और सच्चाई में जमीन आसमान का अंतर, जुगाड़ के सहारे हादसे को रोकने की हो रही कोशिश!
जोशीमठ के सिंहधार की खिसकती चट्टान के मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि भारी-भरकम चट्टान को खिसकने से रोकने के लिए लोक निर्माण विभाग ने एक लोहे का पाइप और लकड़ी की कुछ बल्लियां लगाई हैं।
सड़क से संसद तक जोशीमठ की चर्चा है। एक तरफ जोशीमठ के भूधंसाव को लेकर जोशीमठ से लेकर देहरादून और दिल्ली तक लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ संसद में भी इस मामले को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं। लेकिन सड़कों पर लोग और खासकर जोशीमठ के प्रभावित जो कह रहे हैं और संसद में जो जवाब मिल रहे हैं, उनमें कहीं न कहीं अंतर है। दरअसल यही अंतर जोशीमठ की समस्या को उलझा रहा है। जोशीमठ में लोग लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं और हर रोज बढ़ रहे भूधंसाव को लेकर जानकारी दे रहे हैं। उधर सरकार का दावा के स्थिति पर 24 घंटे 7 दिन नजर रखी जा रही है और अब नई दरारें नहीं आ रही हैं।
पिछले हफ्ते राज्यसभा में विपक्ष की ओर से कई सवाल सरकार से पूछे गए थे। इन सवालों के जवाब में सरकार ने कुछ दावे किए। इनमें पहला दावा यह कि जोशीमठ में आ रहे भूधंसाव में अब क्रमिक रूप से कमी आ रही है और दूसरा दावा यह कि स्थिति पर हर समय नजर रखी जा रही है। लेकिन, जमीनी स्थिति कुछ अलग है। उदाहरण के लिए असुरक्षित जोन में शामिल किए गए सिंहधार की एक बड़ी चट्टान जिसमें दो दिन पहले धंसाव महसूस किया गया था और अब तक लगातार धंसाव बढ़ रहा है। यदि 24 घंटे 7 दिन नजर होती और ग्राउंड जीरो से सही रिपोर्ट हो रही होती तो कमी आने की बात संसद में नहीं कही जाती।
सिंहधार की खिसकती चट्टान के मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि भारी-भरकम चट्टान को खिसकने से रोकने के लिए लोक निर्माण विभाग ने एक लोहे का पाइप और लकड़ी की कुछ बल्लियां लगाई हैं। चिन्ताजनक बात यह है कि इस भारी-भरकम चट्टान के ऊपर भी लोगों के घर हैं और नीचे एक किमी तक गिरसी मोहल्ला, रामकलूड़ा मोहल्ला, जेपी कॉलोनी और मारवाड़ी जैसे रिहायशी इलाके हैं। सिंहधार में जहां चट्टान खिसक रही है, वह जोशीमठ में मनोहर बाग के बाद सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में शामिल है। सिंहधार के 151 घरों में दरारें हैं और 98 मकान असुरक्षित घोषित कर दिए गए हैं। इस क्षेत्र के कई परिवार राहत शिविरों में रह रहे हैं।
इसी सिंहधार इलाके में एक करीब 20 फीट ऊंची भारी-भरकम चट्टान है। दो दिन पहले लोगों ने प्रशासन को सूचना दी थी कि चट्टान खिसक रही है। प्रशासन ने सुरक्षा उपाय करने के निर्देश दिए और निर्देशों के पालन में लोक निर्माण विभाग में चट्टान को रोकने के लिए कुछ बल्लियां और पाइप लगा दिए। जाहिर है कि ये कामचलाऊ इंतजाम कोई बड़ा झटका लगने पर धराशायी होने वाले हैं। जोशीमठ में आज फिर से मौसम फिर से बदल रहा है। एक-दो दिन के भीतर यदि बारिश या बर्फबारी की स्थिति बनती है तो इन लोहे की पाइप और लकड़ी की बल्लियों को खिसकना तय है। ऐसे में नीचे की बस्तियों में जहां सैकड़ों लोग रह रहे हैं, उनके लिए बड़ा खतरा पैदा होगा।
सरकार की ओर से संसद में 1976 की मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट का भी उल्लेख किया गया। तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता वाली 22 सदस्य वाली कमेटी ने यह रिपोर्ट तैयार की थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि जोशीमठ पुराने लैंडस्लाइडिंग के मलबे पर बसा हुआ है। इसकी वहन क्षमता कम होने के कारण यहां भारी भरकम निर्माण नहीं किए जाने चाहिए। लेकिन, केन्द्र सरकार के पास इस बात का जवाब नहीं है कि मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट के बावजूद जोशीमठ में भारी-भरकम निर्माण क्यों किए गए। खास बात यह है कि मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट के बावजूद जोशीमठ में भवन निर्माण के लिए कोई नियम तय नहीं किए गए और इस कमजोर जमीन पर 7 मंजिल तक के भवन बन गये। इतना ही नहीं जोशीमठ के आसपास कई भारी-भरकम जल विद्युत परियोजनाएं शुरू कर दी गई। इनमें से जेपी पावर वेंचर की विष्णुगाड परियोजना कुछ वर्ष पहले बनकर तैयार हो गई है। एनटीपीसी की ऋषिगंगा परियोजना फरवरी 2021 की बाढ़ में ध्वस्त हो चुकी है और एनटीपीसी के तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना और टीएचडीसी की विष्णगाड-पीपलकोटी परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं।
जोशीमठ के मौजूदा संकट के लिए जिम्मेदार मानी जा रही तपोवन-विष्णुगाड परियोजना पर 2003 में काम शुरू हुआ था। स्थानीय लोगों ने उसी समय राष्ट्रपति और राज्यपाल के नाम पत्र भेजकर न सिर्फ मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट की याद दिलाई थी, बल्कि इस परियोजना से भविष्य में होने वाले नुकसानों के प्रति भी आशंका जताई थी। लोगों की इस आशंका पर ध्यान नहीं दिया गया और आज 20 वर्षों के बाद वह आशंका सच साबित हो रही है। पर्यावरणविद् भी पहाड़ों में अनियोजित निर्माणों को लेकर आगाह करते रहे हैं। प्रो. रवि चोपड़ा कहते हैं कि हिमालय कच्चा पहाड़ है। यहां भारी-भरकम योजनाओं के लिए भूगर्भीय और जियो टेक्निक जांच की जानी चाहिए। लेकिन, इस काम में ज्यादा समय और पैसा लगता है। हमारे नीति नियंताओं को हर काम तुरंत चाहिए, इसलिए जोशीमठ जैसी घटनाएं हो रही है। उन्हें आशंका है कि जहां भी भारी-भरकम योजनाएं बन रही हैं, उन सभी जगहों पर ऐसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं।
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