झारखंडः खोखले साबित हुए रघुवर सरकार के रोजगार के वादे, निवेश के नाम पर बहाए गए करोड़ों रुपये भी बर्बाद

बीजेपी की रघुवर सरकार ने 2017 में बड़े तामझाम के साथ झारखंड में निवेशक सम्मेलन कराए। सीएम रघुवर दास का दावा था कि इससे खूब पैसा आएगा और राज्य में विकास का पहिया सरपट भागने लगेगा। लेकिन नवजीवन को आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक जमीन पर कुछ खास नहीं उतरा।

फोटोः सोशल मीडिया
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रवि प्रकाश

साल 2017 की फरवरी में रांची की तमाम सड़कें काली कर दी गईं। सड़कों के किनारे खड़े बिजली के सालों पुराने खंभे सिल्वर रंग की पेंटिंग से ऐसे चमका दिये गए, मानो नये हों। फुटपाथ और डिवाइडर तक रंग दिये गए। बड़े-बड़े गमलों में लगे विदेशी नस्ल के पौधों को डिवाइडर और चौराहों पर लगा दिया गया। डिवाइडर की खाली जगह पर हरी घासें उगाई गईं। हर सुबह उनमें पानी डाला जाने लगा। कुछ प्रमुख सड़कों को पानी से धोया गया ताकि वहां धूल नहीं उड़े। बिजली के खंभे लाल और सफेद रंग के चीनी बल्बों से सजा दिये गए। सैकड़ों गेट बनाए गए। हजारों पोस्टर-बैनर और होर्डिंग्स से शहर पाट दिया गया। न केवल झारखंड बल्कि मुंबई और दिल्ली तक में बजने वाले एफएम रेडियो पर झारखंड सरकार के विज्ञापन सुनाई देने लगे। देश के प्रमुख टीवी चैनलों पर झारखंड में विकास के माहौल पर प्रायोजित (पैसे लेकर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम) डाक्यूमेंट्री दिखाई जाने लगीं। मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रायोजित इंटरव्यू प्रसारित हुए। अखबारों में पहले पन्ने पर छपने वाले जैकेट विज्ञापन छपवाए गए। रांची के बिरसा मुंडा हवाईअड्डे पर रोज दर्जनों निजी जहाज उतरने लगे। शाम ढलते ही रांची सफेद और लाल रंग के बल्बों की रोशनी से चमकने लगी। चौराहों पर लगे एलईडी प्रोजेक्टर राज्य की प्रगति की कहानियां दिखाने लगे। जगह-जगह लाल रंग की काया, गेरुआ सूंढ़, नीले कान और हरे रंग के पंख लगाकर उड़ते हाथी की तस्वीरें और कटआउट (मोमेंटम झारखंड का लोगो) लगा दिए गए। पूरे माहौल में नय किस्म का रोमांस महसूस किया जाने लगा। तब लगा कि झारखंड में अब बदलाव की शुरुआत होने वाली है। कुछ ऐसा होने वाला है, जिससे राज्य में औद्योगिक क्रांति आ जाएगी।

वह मौका ‘मोमेंटम झारखंड’ का था। झारखंड सरकार पहली बार बड़े स्तर पर निवेशक सम्मेलन करने जा रही थी। इस ग्लोबवल इन्वेस्टर्स समिट के आयोजन से पहले रघुवर दास दलबल के साथ अमेरिका, जापान, चीन जैसे कुछ देशों की यात्रा कर वहां रोड शो कर चुके थे। मुंबई समेत देश के कुछ प्रमुख शहरों में भी रोड शो कराए गए। दावा किया गया कि झारखंड गठन के 17 साल बीत जाने के बावजूद किसी सरकार ने राज्य के विकास की बात नहीं सोची। अब पहली बार विकास की योजना बनाई गई है। झारखंड दुनिया के मुकाबले खड़ा होने को तैयार है। आदि-आदि। यह दावा झारखंड में सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी-आजसू गठबंधन की सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री रघुवर दास ने किया। (हालांकि तब वे शायद भूल गए कि बिहार से अलग होकर भारत के 28 वें राज्य के रूप में जन्म लेने वाले झारखंड में सर्वाधिक समय बीजेपी का ही शासन रहा।) अब लाखों करोड़ रुपये का निवेश होगा। लाखों बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा और झारखंड औद्योगिक विकास की नई कहानी लिखेगा।

झारखंडः खोखले साबित हुए रघुवर सरकार के रोजगार के वादे, निवेश के नाम पर बहाए गए करोड़ों रुपये भी बर्बाद

दो दिन में 210 एमओयू

आखिरकार झारखंड सरकार ने 16-17 फरवरी, 2017 को अपने बहुप्रचारित मोमेंटम झारखंड का आयोजन कर ही लिया। इस दौरान देश-विदेश के करीब 11,000 डेलिगेट की मौजूदगी रही। सरकार ने दो दिनों के समिट के दौरान विभिन्न छोटी-बड़ी कंपनियों के साथ करीब सवा तीन लाख करोड़ के 210 एमओयू (मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिंग) पर हस्ताक्षर किये। इनमें से अधिकतर कंपनियों को अपना काम दो साल और कुछ को तीन साल के अंदर पूरा कर लेना था। तब दावा किया गया कि इन कंपनियों के आ जाने से छह लाख दो हजार तीन सौ छब्बीस लोगों को रोजगार मिलेगा। इनमें से 2,10,176 लोगों को प्रत्यक्ष और 3.92.150 लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा। सबसे अधिक एमओयू खनन के क्षेत्र में हुए थे। इसके अलावा बिजली, इंफ्रास्ट्रक्चर, हेल्थ, हास्पिटालिटी, पर्यटन, ट्रासंपोर्ट, ऑटोमोबाइल, फूड प्रोसेसिंग, आईटी आदि के क्षेत्र में भी कई एमओयू हुए।

रतन टाटा और धोनी भी बने गवाह

इस दौरान मशहूर उद्योगपति रतन टाटा और कुमारमंगलम बिड़ला के अलावा अनिल अग्रवाल (वेदांता समूह), नवीन जिंदल (जिंदल समूह) और शशि रुईया (एस्सार समूह) भी मौजूद रहे। इनके अलावा भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और इस समिट के ब्रांड एंबेसेडर महेंद्र सिंह धोनी, केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली, वेंकैया नायडू, स्मृति ईरानी, नितिन गडकरी, पीयूष गोयल भी इस समारोह में शामिल हुए। इसके बाद जमशेदपुर, बोकारो और देवघर में ग्राउंड ब्रेंकिंग सेरेमनी भी आयोजित की गई।

सिर्फ 55 प्रोजेक्ट्स पर काम

अब महज दो महीने बाद (फरवरी 2019 में) मोमेंटम झारखंड के आयोजन के दो साल पूरे हो जाएंगे। इसके बावजूद मोमेंटम झारखंड के दौरान हुए एमओयू में से सिर्फ 55 प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है। बाकी के करार कागजों की शोभा बढ़ा रहे हैं। छह लाख से भी अधिक लोगों को रोजगार देने के वादे के उलट सरकारी आंकड़ों के ही मुताबिक अभी तक सिर्फ 25 हजार लोगों को ही रोजगार मिल सका है। आरटीआई के तहद सरकार द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक साल 2017 में झारखंड सरकार ने कुल 238 एमओयू किये। इनमें से हेल्थ सेक्टर में किये गए एमओयू पर काम शुरू हुए होते तो झारखंड की राजधानी रांची में अभी तक कम से कम दो और मेडिकल कॉलेज और अस्पताल खोले जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई होती लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सरकार ने पश्चिम बंगाल के हुगली में स्थित मदर टेरेसा नेशनल वेलफेयर ट्रस्ट और मध्य प्रदेश के श्री रामप्रसाद सिह सोशल फाउंडेशन के साथ रांची में मेडिकल कॉलेज और हास्पिटल और यूनिवर्सिटी खोलने के लिए क्रमशः 560 करोड़ और 300 करोड़ के निवेश का करार किया था। इन्हें साल 2020 तक अपने कॉलेज की शुरुआत कर देनी है लेकिन अभी इसपर काम ही शुरू नहीं हो सका है। यह सिर्फ एक उदाहरण है। करीब डेढ़ सौ से अधिक ऐसे प्रोजेक्ट फाइलों में ही बंद हैं। अब सरकार ने यहां ग्लोबल फूड समिट किया है और दावा किया जा रहा है कि सरकार 271 करोड़ के निवेश वाले 50 प्रोजेक्ट का शिलान्यास कराने पर तत्पर है। लेकिन, पुराने उदाहरण झारखंड के लोगों को ऐसे सपने देखने की हिम्मत नहीं दे पा रहे।

मोमेंटम झारखंड में कितना खर्च

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मोमेंटम झारखंड के दौरान झारखंड सरकार ने पैसे को पानी की तरह बहाया ताकि उनकी ब्रांडिंग ठीक तरीके से हो सके। इसके लिए सीआईआई को पार्टनर बनाया गया था। हालांकि बाद में बिल के भुगतान को लेकर सरकार और सीआईआई (कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज) के बीच मतभेद भी हुए। आरोप लगा कि सीआईआई ने कई फर्जी बिल भी सौंपे हैं।

दरअसल सरकार द्वारा लैंड बैंक बनाए जाने के बावजूद झारखंड में जमीन की उपलब्धता सबसे बड़े संकट है। आदिवासी हितों की रक्षा के लिए अंग्रेजी शासन काल में बने संथाल परगना काश्तकारी एक्ट (एसपीटी) और छोटानागपुर काश्तकारी एक्ट (सीएनटी) के कारण आदिवासी जमीन की प्रकृति नहीं बदली जा सकती है। आदिवासी अपनी जमीन अपने ही थाना क्षेत्र के किसी आदिवासी से ही खरीद या बेच सकते हैं। इन सभी बंदिशो के कारण उद्योंगो के लिए जमीन की उपलब्धता बड़ा संकट है। इसके अलावा जमीन अधिग्रहण भी झारखंड में बड़ी समस्या है। सरकार पर आरोप लगता रहा है कि विस्थापितों के अधिकारों की रक्षा और उनके पुनर्वास के अधिकतर मामलों में सरकार ने आदिवासियों की बजाय उद्योगपतियों का साथ दिया है। इस कारण लोगों का सरकार पर अविश्वास है। गोड्डा में अडाणी समूह के पावर प्लांट को लेकर स्थानीय लोगों का विरोध इसका बड़ा उदाहरण है। इसके अलावा लेवी की वसूली, बिजली आपूर्ति और कानून व्यवस्था जैसे कारण भी उद्योगों की राह में रोड़ा अटका रहे हैं। ऐसे में धनबाद इंडस्ट्रीज व कॉमर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बीएन सिंह की यह बात प्रासंगिक है कि बीजेपी के एक विधायक की रंगदारी से परेशान लोगों ने अब धनबाद में इंडस्ट्री लगाने से मना कर दिया है, लेकिन तमाम शिकायतों के बावजूद सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।

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