पानी में बह गया झारखंड में बीजेपी का विकास: सिर्फ 12 घंटे में टूट गया सीएम रघुवर दास के दावों का ‘बांध’
झारखंड के घोसको मौजा के किसान बिशुन पंडित ने बताया कि उन्होंने अपनी मां के नाम पर जमीन लेकर छोटा घर बनाया था। यहीं पर खेती भी की थी। बांध टूटने से अचानक आई बाढ़ में उनका घर टूट गया और फसल भी बह गई।
झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बुधवार को जिस कोनार सिंचाई परियोजना का उद्घाटन करते हुए दावा किया था कि उन्होंने 42 साल से उपेक्षित पड़ी परियोजना का काम पूरा करा लिया है, उसके लिए बना बांध 12 घंटे भी नहीं टिक सका। बोकारो जिले की कोनार सिंचाई परियोजना के लिए बनाया गया बांध आधी रात बाद गिरिडीह जिले के बगोदर में टूट गया। इससे कई गांवों में पानी भर गया और सैंकड़ों एकड़ में लगी धान और मूंगफली की फसल बर्बाद हो गई। इससे किसानों में आक्रोश है और वे इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकार के अधिकारी इस पर बात करने से कन्नी काट रहे हैं। हालांकि, कुछ अधिकारियों ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर बताया कि हड़बड़ी में ऐसी चूक हुई है। मुख्यमंत्री का जोर था कि वे इस सिंचाई परियोजना का उद्घाटन हर हाल में विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले कर दें। इसके लिए सारा काम हड़बड़ी में कराया गया। यही वजह है कि कोनार नहर पर बना बांध पानी का अत्यधिक दबाव नहीं झेल सका और बगोदर प्रखंड के कुसमरजा पंचायत में टूट गया।
बगोदर के सोशल एक्टिविस्ट और प्रवासी ग्रुप के संचालक सिकंदर अली ने बताया कि जब यह बांध टूटा, तब लोग गहरी नींद में सो रहे थे। सुबह होते ही लोगों ने यह विनाशलीला देखी तो गांव में मातम पसर गया। कोनार नहर का बांध टूटने के कारण कुसमजा पंचायत के घोसको, बरवाडीह, प्रतापपुर, तिरला, चिचाकी, खटैया आदि गांवों की सैकड़ों एकड़ में लगी फसल बर्बाद हो गई है। किसानों ने यहां धान, मूंगफली, मड़ुआ, मक्का आदि की खेती की थी। उन्हें उम्मीद थी कि इस सिंचाई परियोजना के कारण अगले साल से उनकी फसल ठीक होगी, लेकिन अब इसी साल ही उन्हें खाने की दिक्कत हो जाएगी।
घोसको मौजा के किसान बिशुन पंडित ने ‘नवजीवन’ को बताया कि उन्होंने अपनी मां के नाम पर जमीन लेकर छोटा घर बनाया था। यहीं पर खेती भी की थी। अचानक आई बाढ़ में उनका घर टूट गया और फसल भी बह गई। अब वे अपनी किस्मत को कोस रहे हैं।
यहीं के एक और किसान इदरीश अंसारी ने बताया कि मेड़ टूट जाने के कारण खेत में मिट्टी भर गई है और धान की पूरी फसल बर्बाद हो गई है। उन्होंने कहा कि इससे काफी नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई मुश्किल है। यही हालत दूसरे किसानों की भी है। इदरीश अंसारी के मुताबिक, इसमें कई किसानों की पूरी खेती बह गई है। उनके पास खाने लायक उपज भी नहीं होगी। सरकार को इस लापरवाही का जिम्मा लेकर किसानों को मुआवजा देना चाहिए, ताकि उनके घर में कमसे कम खाने का संकट न पैदा हो।
तटबंध टूटने की वजह:
103 किलोमीटर लंबी कोनार मुख्य नहर पर बने बांध की सिमेंटेड माउंटिंग नहीं की गई थी और सहायक नहरों का भी निर्माण नहीं कराया जा सका था। पानी का सारा दबाव मुख्य नहर में था और वह यह दवाब नहीं सह सका। जानकारों का मानना है कि अगर सहायक नहरों में पानी जाने का इंतजाम पहले कर लिया जाता और थोड़ा वक्त लेकर गंभीरता से कम किया गया होता, तो यह नौबत नहीं आती। वहीं, संबंधित अधिकारी दबी जुबान से यह कह रहे हैं कि उन नलोगों ने इसके निर्माण के लिए कुछ समय की मांग की थी, लेकिन बड़े अधिकारियों ने यह दलील दी कि सीएम अगस्त में ही इसका उद्गाटन करना चाहते थे। ऐसे में उनके पास कोई विकल्प शेष नहीं था।
मुख्यमंत्री ने ये कहा था:
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बुधवार की दोपहर विष्णुगढ़ (बोकारो) में इस परियोजना का उद्घाटन किया था। तब उन्होंने पूर्व की सरकारों पर विकास के प्रति लापरवाह रहने का आरोप लगाया और कहा कि कोनार सिंचाई परियोजना पिछले 42 साल से लंबित पड़ी थी, लेकिन हमारी सरकार ने इसे पूरा करा लिया। उन्होंने दावा किया कि साल 2014 में सरकार बनाते ही उन्होंने इस परियोजना पर काम करना प्रारंभ कर दिया था। इस मुस्तैदी के कारण कोनार सिंचाई परियोजना पूरी हो सकी है। उन्होंने कहा था कि कोनार योजना से तीन जिलों के 85 गांवों में सिंचाई होगी। इससे एक फसली खेती करने वाले किसान साल में तीन-तीन फसल लगा सकेंगे। उसके बाद कोनार डैम से 800 क्यूसेक और केनाल (नहर) में 60 किलोमीटर तक पानी छोड़ा गया। यह कहा गया कि यहां से रोज 1700 क्यूसेक पानी छोड़ा जाएगा।
क्या है कोनार सिंचाई परियोजना:
कोनार सिंचाई परियोजना का शिलान्यास साल 1978 में बिहार के तत्कालीन राज्यपाल जगन्नाथ कौशल ने किया था। तब इसे पांच साल में पूरा कर लिए जाने का लक्ष्य रखा गया। तब परियोजना सिर्फ 12 करोड़ की थी, जो पिछले 41 सालों में 208 गुना बढ़ गई। अब इसे 2500 करोड़ रुपये की लागत से पूरा कराया गया है। इससे हजारीबाग, गिरिडीह और बोकारो जिले में सिंचाई का प्रबंध किया जाना था। ऐसे में यह सवाल वाजिब है कि इतने खर्च के बाद भी नहरों का तटबंध इतना कमजोर कैसे था, जो पानी का पहला दवाब ही नहीं सह सका।
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