झारखंड विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राज्य की बीजेपी सरकार ने पत्रकारों को दिया ऑफर, पक्ष में लिखो, भरो पॉकेट
झारखंड के सूचना विभाग की ओर से जारी विज्ञापन दो दिनों पहले रांची के अखबारों में प्रकाशित कराया गया है। पीआर-216421 आइपीआरडी (19-20) डी नंबर से छपवाए गए विज्ञापन में आइपीआरडी के डायरेक्टर ने कहा है कि ऐसे पत्रकारों के चयन के लिए एक कमेटी बनाई गई है।
अगर आप पत्रकार हैं और सरकार की योजनाओं पर लिखने में दिलचस्पी रखते हैं, तो झारखंड सरकार के लिए आपके पास एक ‘मजेदार’ ऑफर है। अगर आपने यहां सत्तासीन रघुवर दास सरकार की ‘लाभप्रदत्त’ योजनाओं पर लिखा, तो सरकार भी आपको शुद्ध ‘लाभ’ देगी। आपको ‘लिखने के बदले पैसे’ मिलेंगे। लेकिन, आपको वह आलेख अपने अखबार में या कहीं और छपवाना होगा। उसकी कतरन सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में जमा करानी होगी। ऐसा करने के बाद आप 15 हजार रुपये तक की प्राप्ति के अधिकारी हो जाएंगे। अगर आप लकी हैं और आपका आलेख सरकार की किताब में शामिल कर लिया गया, तो आपको पांच हजार रुपये और मिलेंगे। सरकार ने ‘पेड न्यूज’ (न्यूज या आलेख, जिसके बदले में पैसे मिलें) का यह ऑफर चोरी-छिपे नहीं दिया है। इसके लिए बजाप्ता विज्ञापन निकाले गए हैं और कई पत्रकारों ने आवेदन भी कर दिया है। आवेदन की अंतिम तारीख 16 सितंबर है।
झारखंड सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग (आइपीआरडी) के निदेशक के हवाले से जारी यह विज्ञापन दो दिनों पहले रांची के अखबारों में प्रकाशित कराया गया है। पीआर-216421 आइपीआरडी (19-20) डी नंबर से छपवाए गए विज्ञापन में आइपीआरडी के डायरेक्टर ने कहा है कि ऐसे पत्रकारों के चयन के लिए एक कमेटी बनाई गई है। 16 सितंबर तक अपना विषय सुझाने वाले 30 पत्रकारों का चयन करने के बाद यह कमेटी उन्हें संबंधित विषयों पर लिखने के लिए एक महीने का समय देगी। इस दौरान इन्हें अपना वह आलेख अपने अखबार या किसी और जगह छपवाना होगा। यही काम टीवी चैनलों के रिपोर्टरों को करना होगा। वे अपनी रिपोर्ट प्रसारित कराएंगे। फिर इन प्रकाशित या प्रसारित आलेख-रिपोर्ट की कतरन या डीवीडी (टीवी रिपोर्ट वाली) वे 18 अक्टूबर तक सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में जमा करा देंगे। इसके बाद इन पत्रकारों को प्रति आलेख 15 हजार रुपये तक का भुगतान करा दिया जाएगा।
इसके बाद इन 30 आलेखों में से 25 का चयन आइपीआरडी की पुस्तिका के लिए किया जाएगा। पुस्तिका में प्रकाशित आलेखों को लिखने वाले पत्रकारों को प्रति पत्रकार 5 हजार रुपये और (सम्मान राशि के बतौर) दिए जाएंगे। मतलब, भागयशाली पत्रकार इस ‘ऑफर’ में 20 हजार तक की अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं। आइपीआरडी से जुड़े भरोसेमंद सूत्रों ने बताया कि दिवाली से ठीक पहले मिल रहे इस ‘ऑफर’ के लिए कई पत्रकारों ने आवेदन भी कर दिया है।
क्या यह पेड न्यूज है:
सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के अधिकारी ऐसा नहीं मानते। एक वरिष्ठ अधिकारी ने दलील दी कि इसे पेड न्यूज़ कैसे कह सकते हैं। हमें अपनी किताब के लिए किसी न किसी से तो आलेख लिखवाना ही है। आलेखों के बदले पैसे तो मीडिया संस्थान भी देते हैं। हम आलेखों का पैसा दे रहे हैं।
अगर कोई पत्रकार सरकार की किसी योजना के बारे में निगेटिव रिपोर्ट (अगर उसे वैसा ही दिखे तब) लिखता है, तो उसे भी पैसे मिलेंगे। मेरे इस सवाल पर उस अधिकारी ने कोई जवाब देना मुनासिब नहीं समझा और तबतक हुई बातचीत को भी अनाम छापने की भी सिफारिश कर डाली। उनके अनुरोध का ख्याल रखते हुए हम उनका नाम कोट नहीं कर रहे हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार क्या उन 30 चयनित पत्रकारों में से कुछ के निगेटिव आलेख (अगर उन्हें वैसा दिखे) भी छापने देने का साहस करेगी। अगर ऐसा नहीं होता है तो आप समझ सकते हैं कि सरकार यह पैसे क्यों दे रही है।
आइपीआरडी के निदेशक आर एल गुप्ता ने इस विज्ञापन के बावत कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। क्योंकि विज्ञापन उनके नाम से छपा है, लिहाजा उसमें लिखी बातें और शर्तें ही उनका आधिकारिक बयान मानी जाएंगी।
सलाहकारों की बेवकूफी:
रांची के प्रमुख अखबार ‘प्रभात खबर’ के स्थानीय संपादक संजय मिश्र इस विज्ञापन में दिए गए शर्तों को बेकार बताते हैं। उन्होंने ‘नवजीवन’ से कहा कि यह मुख्यमंत्री के सलाहकारों की नासमझी है। उन्हें इसकी समझ ही नहीं कि इससे पूरे देश में उनकी आलोचना हो रही है। समझदार लोग इसे पत्रकारों की कलम को प्रभावित करने की कोशिश करार दे रहे हैं और इस विज्ञापन ने उन्हें यह अवसर दे दिया है।
हालांकि, झारखंड सरकार के पीआरडी मीडिया फेलोशिप समिति के सदस्य रह चुके डॉ. विष्णु राजगढ़िया ने कहा कि इस प्रयोग को देखने के बाद ही कोई टिप्पणी बेहतर होगी। फिलहाल यह योजना मीडिया फेलोशिप का सरल रूप दिख रही है।
पत्रकार दर्शन योजना:
उल्लेखनीय है कि झारखंड सरकार इन दिनों रांची के पत्रकारों को अपने खर्च पर विभिन्न जिलों का भ्रमण करा रही है। इस दौरान उनके रहने-खाने और आने-जाने का पूरा खर्च सरकार व्यय करती है। ऐसे पत्रकारों को उन जगहों पर ले जाया जाता है, जहां कथित तौर पर अच्छा काम हुआ है। इसके बाद उस संबंधित करीब-करीब एक ही तरह की रिपोर्टें अधिकतर अखबारों में छपवाई जाती हैं। हालांकि, रांची के एक प्रमुख अखबार ने इसके लिए अपने पत्रकारों को भेजने से मना कर दिया है। लेकिन, ज्यादातर अखबार अपने पत्रकारों को सरकार द्वारा चयनित जगहों पर भेजकर उसकी सकारात्मक खबरें छाप रहे हैं। इस बीच ऐसी ही कुछ खबरनुमा विज्ञापन भी अखबारों में प्रकाशित कराए गए हैं। इसमें पूरे पन्ने के नीचे कहीं एक जगह इसका जिक्र होता है कि यह पेज दरअसल एक विज्ञापन है।
सरकार ने इस बीच झारखंड के पत्रकारों के लिए पेंशन और बीमा योजना की भी शुरुआत की है। अपने 5 साल के कार्यकाल के दौरान झारखंड की बीजेपी सरकार ने 400 करोड़ से भी अधिक की राशि अपने विज्ञापनों पर खर्च की है।
कुछ महीने बाद चुनाव:
गौरलतब है कि अगले कुछ महीने में झारखंड विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। संभव है कि अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े तक इसके लिए तारीखों की घोषणा भी कर दी जाए। ऐसे में चुनावों के ठीक पहले इस तरह की कोशिशें सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करती हैं।
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