झारखंड: साहू पर तो बोले 'साहेब', पर तोमर पर नहीं तोड़ी चुप्पी, और मानव तस्करी के खिलाफ हॉकी
इस सप्ताह की झारखंड डायरी: झारखंड से आने वाले सांसद के कई ठिकानों पर नकदी की बरामदगी को लेकर तो पीएम ने टिप्पणी की, लेकिन इससे पहले एमपी में तोमर के बेटे के मामले में खामोश रहे। उधर झारखंड में ही मानव तस्करी के खिलाफ हॉकी के जरिए अभियान शुरु हुआ है।
ओडिशा और झारखंड के पास स्वर्ण भंडार नहीं हैं। वैसे, झारखंड में बहने वाली स्वर्णरेखा नदी के बालू में सोने के कण मिलते हैं लेकिन यह काफी परिश्रम के बावजूद बहुत ही कम होता है। लेकिन इन दोनों ही राज्यों में खनन के जरिये सोना खूब उगाया जाता है। इसका अंदाजा इस तरह लगाइए। बमुश्किल दस-बारह साल पहले देश में सबसे अधिक आयकर जमा करने वालों में अंबानी या अडानी नहीं होते थे, वे अहुलवालिया और श्रीमती पटनायक थे जिनकी ओडिशा में लौह अयस्क खदानें थीं।
इस शताब्दी की शुरुआत में झारखंड बना। उस वक्त खनन के लिए जाने जाने वाले ओडिशा के बरबील में झारखंड से कहीं ज्यादा बीएमडब्ल्यू सड़कों पर दौड़ती नजर आती थीं। अटल सरकार में केंद्रीय मंत्री दिलीप रॉय शायद उतने ही धनी-मानी थे जितने इस वक्त कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य धीरज साहू हैं जिनके घर, ऑफिस, डिस्टलरी वगैरह से 350 करोड़ रुपये नगद बरामद होने की बातें इन दिनों सुर्खियों में हैं।
साहू पर 'साहेब' की टिप्पणी, पर तोमर पर खामोशी!
अभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक हिन्दी अखबार की कटिंग एक्स पर शेयर की, पर 2021 में जब पिछले यूपी विधानसभा चुनाव के समय कन्नौज में एक अनाम-से ईत्र व्यापारी के यहां से 250 करोड़ नगद बरामद हुए थे, तब उन्होंने चूं भी नहीं की थी। वैसे, सिर्फ याद दिलाने के लिए, मीडिया में तब खबरें आई थीं कि उस व्यवसायी के बीजेपी से अच्छे रिश्ते हैं और आयकर विभाग को, दरअसल, छापेमारी तो सपा-समर्थक एक दूसरे व्यापारी के यहां करनी थी और उसने गलती से इस व्यवसायी के यहां छापा डाल दिया था।
मोदी जी हाल ही में तब भी चुप ही रहे थे जब मध्य प्रदेश चुनाव के बीच में ही उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी नरेंद्र सिंह तोमर के सुपुत्र के वे वीडियो वायरल हुए थे जिनमें वह मारिजुआना उगाने के लिए कनाडा में जमीन खरीदने के लिए 1,000 करोड़ की डील कराते दिख रहे थे। तोमर अब विधायक हैं। बीजेपी ने महादेव ऐप का तो शोर मचाया, पर इन सब वीडियो को लेकर चुप्पी साधे रखी।
भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम की खुल गई पोल-पट्टी
धीरज साहू 'बौद्ध डिस्टिलरीज एंड ग्रुप' के स्वामी हैं। इनके यहां से जिस तरह नकदी की बरामदगी हुई है, वह बताती है कि राज्य के राजनीतिज्ञों और व्यवसायियों को अभी सीखना है कि अपने धन को किस तरह छिपाया जाए। अब तक लगभग अनाम रहे धीरज साहू के पास जब इतना अधिक नगद रह सकता है, तो अंदाजा ही लगा सकते हैं कि 'विकसित' राज्यों के 'विकसित' नेताओं-व्यवसायियों के पास कितना धन होगा!
धीरज साहू को आयकर विभाग को बताना तो होगा ही कि इतना अधिक नगद उन्होंने कैसे, कब से और क्यों रखा हुआ था लेकिन इन सबसे प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार के खिलाफ कथित मुहिम की पोल-पट्टी भी तो खुलती है कि एजेंसियां किस तरह काम कर रही हैं और वह खुद भी कैसे एक आंख बंदकर सबकुछ चलने दे रहे हैं।
मानव तस्करी के खिलाफ हॉकी
2021 में नीति आयोग ने पहला राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी इंडेक्स (एनएमपीआई) जारी किया था। इसमें बताया गया था कि झारखंड के 42.2 प्रतिशत लोग बहुआयामी गरीबी में जी रहे हैं। इस इंडेक्स में बिहार पहले नंबर पर था जबकि झारखंड दूसरे नंबर पर। दोनों ही जगह शिक्षा के हाल के बारे में चीजें जगजाहिर हैं। इस वजह से दोनों ही राज्यों से काफी सारे लोग रोजी-रोजगार के लिए बाहर चले जाते हैं। देश में झारखंड में आदिवासियों की संख्या सबसे ज्यादा है। शायद इस अतिरिक्त कारण की वजह से भी मानव तस्करी की घटनाएं यहां ज्यादा होती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की साल-दर-साल आने वाली रिपोर्ट बताती है कि झारखंड उन दस प्रमुख राज्यों में है जहां से मानव तस्करी ज्यादा होती है।
इस पर चिंता तो चतुर्दिक जताई जाती है, पर इन्हें रोकने का अधिकतर दायित्व पुलिस पर मान लिया जाता है जबकि उसकी भूमिका सीमित ही हो सकती है। इसके लिए उपाय कई तरह के करने होंगे। हालांकि एक उपाय झारखंड में बहुत पहले से अपनाया जाता रहा है लेकिन उसकी गति बढ़ाने की जरूरत है। उदाहरण है यहां का सिमडेगा जिला।
एनएमपीआई के अनुसार, 2019-20 में यहां की 31.4 प्रतिशत आबादी बहुआयामी गरीब थी। इसलिए भी यहां नक्सली फल-फूल रहे थे। यहां 2017 में मानव तस्करी के 27 मामले दर्ज किए गए जबकि 31 मानव तस्करों को गिरफ्तार किया गया। पिछले साल यहां मानव तस्करी के सिर्फ 5 मामले दर्ज किए गए और 8 मानव तस्करों को गिरफ्तार किया गया। इस साल इस तरह के दो मामले ही अब तक रिकॉर्ड किए गए हैं।
दरअसल, राज्य प्रशासन ने इन मामलों पर अंकुश के लिए हॉकी का रास्ता अपनाया है। आदिवासी युवक-युवतियों में हॉकी का क्रेज पहले से रहा है और जब इसे रोजगार, खासकर लड़कियों की रोजी-रोटी से जोड़कर बढ़ावा दिया जा रहा है, तो उसके परिणाम भी भिन्न रहे हैं। 2005 से ही विभिन्न जिलों में डे बोर्डिंग स्कूल बनाए गए जिनमें हॉकी पर जोर दिया गया। इन्हें इनमें बेसिक ट्रेनिंग देने के बाद जिले से लेकर राज्य स्तर तक पर आयोजित टूर्नामेंट में भाग लेने और बेहतर खिलाड़ियों को रांची सेंटर पर और ज्यादा ट्रेनिंग के अवसर दिए जाने लगे।
राज्य के कला, संस्कृति, खेल और युवा मामलों के सचिव रहे आईएएस अधिकारी रनेन्द्र कुमार, एनजीओ शक्ति वाहिनी और विभिन्न पूर्व हॉकी खिलाड़ियों ने मिल-जुलकर हॉकी को युवाओं के बीच इस रूप में प्रोजेक्ट किया है कि वे इसके जरिये रोजगार के अवसर भी तलाश सकते हैं। यही नहीं कि राज्यस्तरीय, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेकर वे नाम-पैसे कमा सकते हैं बल्कि स्पोर्ट्स कोटे के जरिये उन्हें विभिन्न संस्थानों में नौकरी के अवसर भी मिल सकते हैं। लड़कियों के लिए तो यह रोशनी की तरह है।
सिर्फ सिमडेगा जिले से ही सीनियर महिला टीम में संगीता कुमारी, ब्यूटी डुंगडुंग और ओलंपियन सलीमा टेटे हैं जबकि अंडर 21 में भी सलीमा की छोटी बहन महिमा, रोपनी कुमारी और दीपिका सोरेंग हैं। हॉकी और युवा वर्ग को प्रोत्साहन देने के लिए 'खस्सी प्रतियोगिता' तक होती है। खस्सी बकरे को कहते हैं- मतलब, जो टीम जीतती है, उसे पुरस्कार के तौर पर बकरा दिया जाता है!
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