तेज हुआ जम्मू-कश्मीर की तानाशाही रोजगार नीति का विरोध, एसआरओ-202 के खिलाफ युवा सड़कों पर
जम्मू-कश्मीर सरकार की रोजगार नीति न सिर्फ शिक्षित युवाओं से उनका आत्मसम्मान छीन रही है, बल्कि भ्रष्टाचार को बढ़ावा भी दे रही है। युवा अब इस नीति के खिलाफ देश व्यापी हड़ताल की तैयारी कर रहे हैं।
देश में बढ़ती बेरोजगारी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पकोड़ा बयान के बाद देशभर के युवाओँ ने अपनी डिग्री की पोशाक में पकोड़े बेचे थे. इसके बाद अब जम्मू-कश्मीर के युवा राज्य की पीडीपी-बीजेपी सरकार की नई रोजगार नीति के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। युवाओँ का कहना है कि बेतहाशा बढ़ती महंगाई के दौर में एसआरओ 202 नीति के तहत मिली नियुक्ति में महज 7000 रुपए महीने से जिंदगी नहीं चल सकती।
हालांकि हाल ही में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने आश्वासन दिया था कि सरकार सदर-ए-रियासत ऑर्डिनेंस-202 यानी एसआरओ-202 की समीक्षा करेगी, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है और युवाओं का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। एसआरओ-202 के तहत नियुक्त किए गए कर्मचारी को 5 साल तक अस्थाई माना जाता है और इस दौरान उसे 5000 से 7000 रूपए का मामूली मानदेय दिया जाता है। पांच साल काम करने के बाद ही वरिष्ठ अफसरों की संस्तुति के बाद ही उन्हें स्थाई कर्मचारी की श्रेणी दी जाती है।
मेहनत के बाद भी न्यूनतम आय न होने के इस मुद्दे पर नवनियुक्त और बेरोजगार युवा जम्मू और श्रीनगर में सरकार की इस तानाशाही नीति के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। युवाओं और बेरोजगारों के इस मुद्दे को कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई लगातार उठा रही है। हाल के दिनों में एनएसयूआई ने महबूबा मुफ्ती सरकार के खिलाफ कई प्रदर्शन किए हैं। एनएसयूआई ने शिक्षित युवाओं के आत्मसम्मान का मुद्दा बताया है।
जम्मू-कश्मीर एनएसयूआई के प्रदेशाध्यक्ष रफीक खान इस नीति को शोषण और पक्षपातपूर्ण करार दिया है। उन्होंने इस नीति की खामियां गिनाते हुए कहा कि इस नीति के तहत नियुक्त किए गए युवाओं को नौकरी के पहले पांच वर्षों में न तो कोई भत्ता मिलता है और न ही किसी किस्म के सेवा लाभ मिलते हैं।
उन्होंने कहा कि इस नीति से राज्य के युवा हतोत्साहित हो रहे हैं क्योंकि इस मामूली वेतन में उन्हें इज्जत की जिंदगी जीने में दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने यहां तक कहा कि एसआरओ-202 जैसी नीतियों के कारण ही युवा संभवत: आंतकवादी की तरफ रुख कर रहे हैं,क्योंकि उनके पास हाथ में कटोरा लेकर भीख मांगने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है।
वहीं एनएसयूआई के प्रदेश उपाध्यक्ष अमजद बट का कहना है कि इस मुद्दे पर राज्य के तीनों क्षेत्रों के युवा एकमत हैं। सरकार की इस नीति के खिलाफ एनएसयूआई ने जम्मू विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार के सामने सब्जी बेचने की दुकाने लगाकर विरोध किया।
हाल के दिनों में भी राज्य की शरद राजधानी में युवा अपनी डिग्रियों के साथ सब्जी बेचते और कटोरा लेकर भीख मांगकर विरोध करते रहे हैं।
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