जम्मू-कश्मीरः 49 सीट के साथ नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन को मिला बहुमत, BJP की 29 पर जीत, PDP 3 पर सिमटी
नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में लंबे समय के बाद लोकतंत्र की जीत हुई है। लोगों ने अपना फैसला सुना दिया है। वहीं कांग्रेस ने कहा कि सरकार गठन के बाद केंद्रशासित प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा वापस दिलाना हमारी प्राथमिकता होगी।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के परिणाम आ गए हैं। केंद्रशासित प्रदेश में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस और सीपीएम गठबंधन को 49 सीट पर जीत के साथ सरकार बनाने के लिए स्पष्ट बहुमत मिला है। बीजेपी 29 सीट पर जीत दर्ज कर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी है। वहीं महबूबा मुफ्ती की पीडीपी केवल 3 सीट पर सिमट गई है। जबकि अन्य को 8 सीट मिले हैं।
नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन को जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने के लिए स्पष्ट बहुमत मिला है। नेशनल कॉन्फ्रेंस को 42 सीट और कांग्रेस को 6 सीट पर जीत मिली है। गठबंधन में शामिल सीपीआई(एम) को एक सीट मिली है। बीजेपी ने 29 सीटों पर जीत हासिल कर प्रदेश में अपनी सबसे बड़ी कामयाबी हासिल की है। वहीं पीडीपी ने 3 सीट, जम्मू-कश्मीर पीपुल कॉन्फ्रेंस और आम आदमी पार्टी ने एक-एक सीट पर जीत हासिल की है। वहीं निर्दलीयों ने 7 सीट पर जीत दर्ज की है।
नेशनल कांंफ्रेंस के उपाध्यक्ष और पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला ने गांदरबल और बडगाम दोनों सीट से जीत दर्ज की है। नतीजों के बाद उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में लंबे समय के बाद लोकतंत्र की जीत हुई है। लोगों ने अपना फैसला सुना दिया है। एक बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि लोगों ने नेशनल कॉन्फ्रेंस को चुना है। कमियों को हमारे गठबंधन सहयोगियों ने पूरा किया है। मैं गांदरबल के हर मतदाता को धन्यवाद देता हूं। लोगों ने एक दिन मेहनत करके मुझे वोट दिया, अब मैं उनके कल्याण के लिए अगले पांच साल कड़ी मेहनत करूंगा। हमें विधायक दल की बैठक बुलानी है, विधायक दल का नेता चुनना है, गठबंधन के साथ बैठना है और गठबंधन का नेता चुनना है, जिसके बाद हमें सरकार के लिए अपना दावा पेश करना है। मैं कुछ दिनों में तय करूंगा कि मैं किस सीट का प्रतिनिधित्व करना जारी रखूंगा।
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जो नतीजे आए हैं, वे पूरी तरह से अप्रत्याशित हैं। हमने अपनी अपेक्षा से कहीं ज़्यादा सीटें जीती हैं, ख़ासकर संसदीय चुनावों के दौरान जो हुआ उसके बाद। मैं यह भी मानता हूं कि नेशनल कॉन्फ्रेंस ने उन लोगों से वोट हासिल किए हैं जिन्होंने कभी इसका समर्थन नहीं किया था, लेकिन बीजेपी और उसकी साजिशों से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस को मौक़ा देने का फ़ैसला किया। नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष द्वारा मुझ पर जताए गए इस विश्वास के लिए मैं जितना आभारी हूं, यह नेशनल कॉन्फ्रेंस और सहयोगी दलों के विधायक दल का फ़ैसला है... मैं जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद के लिए दावा नहीं कर रहा हूं।
कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस के साथ अपने गठबंधन को बहुमत मिलने के बाद मंगलवार को कहा कि सरकार गठित होने के बाद इस केंद्रशासित प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा वापस दिलाना प्राथमिकता होगी। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, ‘‘जम्मू-कश्मीर की जनता ने कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठबंधन को स्पष्ट बहुमत दिया है। यहां सरकार बनने के बाद हमारी पूरी प्राथमिकता होगी कि केंद्रशासित प्रदेश को राज्य का दर्जा दिया जाए।’’
पार्टी के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग इस तरह का स्पष्ट जनादेश देने के लिए बधाई के पात्र हैं। उन्होंने कहा, ‘‘जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद चुनाव हुआ। जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा छीना गया और केंद्र सरकार ने उप राज्यपाल के माध्यम से वहां जैसे शासन चलाया, ये सबने देखा। इस दौरान, वहां न आम आदमी सुरक्षित रहा और न पर्यटक सुरक्षित रहे। कश्मीरी पंडितों से किए गए वादे भी भुला दिए गए।’’ खेड़ा ने कहा, ‘‘जम्मू-कश्मीर के बाशिंदों ने एक स्पष्ट जनादेश दिया है, इसलिए वहां के लोगों को बहुत बधाई।’’
कश्मीर घाटी में विधानसभा चुनाव के नतीजों में अलगाववादी उम्मीदवारों की बड़ी हार हुई है, जिनमें इंजीनियर रशीद के नेतृत्व वाली अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) और जमात-ए-इस्लामी के उम्मीदवार भी शामिल हैं, जो चुनावों में कोई बड़ा प्रभाव डालने में विफल रहे। इन समूहों से जुड़े अधिकतर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई, जो मतदाताओं की स्पष्ट अस्वीकृति को दर्शाता है। अफजल गुरु के भाई ऐजाज अहमद गुरु को सोपोर विधानसभा सीट पर करारी हार का सामना करना पड़ा। इंजीनियर रशीद की एआईपी ने 44 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। एआईपी प्रवक्ता फिरदौस बाबा और कारोबारी शेख आशिक हुसैन सहित प्रमुख चेहरे चुनावी मुकाबले में नाकाम रहे और कई की जमानत भी जब्त हो गई।
जमात-ए-इस्लामी ने चार उम्मीदवार उतारे थे और चार अन्य का समर्थन किया था, लेकिन रेशी के अलावा, सभी न्यूनतम समर्थन भी हासिल करने में असफल रहे। कुलगाम से जमात-ए-इस्लामी के ‘प्रॉक्सी’ उम्मीदवार सयार अहमद रेशी को हार का सामना करना पड़ा।इसी तरह, पुलवामा से जमात के एक अन्य उम्मीदवार तलत मजीद की भी हार हुई। प्रमुख व्यवसायी और इंजीनियर रशीद के करीबी सहयोगी शेख आशिक हुसैन केवल 963 वोट प्राप्त करने में सफल रहे, जबकि नोटा को 1,713 वोट मिले।
एक अन्य उल्लेखनीय चेहरा, ‘आजादी चाचा’ के नाम से चर्चित सरजन अहमद वागय को भी नेशनल कॉन्फ्रेंस के उम्मीदवार के खिलाफ बड़ी हार का सामना करना पड़ा। वागय बीरवाह में अपनी जमानत बचाने में बमुश्किल कामयाब रहे। वागय वर्तमान में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत जेल में हैं। विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव परिणाम राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव और अलगाववादी राजनीति को खारिज किए जाने का संकेत है।
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