जामिया ने दिखाया जन-मन, सर्द रात में जन गण मन की गूंज से हुआ नए साल का स्वागत
जामिया के बाहर ठिठुरती सर्दी में जो छात्र मौजूद थे, वह क्रांतिकारी और राष्ट्रीय गीत गाकर सरकार से नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित एनआरसी से आजादी की मांग करते हुए नारेबाजी कर रहे थे। कड़ाके की ठंड के बावजूद आधी रात तक छात्र और स्थानीय लोग जोश के साथ डटे रहे।
नए साल के स्वागत के लिए दुनिया भर में तरह-तरह के जश्न, समारोह और कार्यक्रम हुए, लेकिन जिस अंदाज़ में दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों और जामिया इलाके में रहने वाले स्थानीय लोगों ने वर्ष 2020 का स्वागत किया, वह न सिर्फ अनूठा था बल्कि खुशी के साथ चिंता पैदा करने वाला भी। खुशी इसलिए कि जिन बच्चों को हम देश का भविष्य कहते हैं, वह नए साल के जश्न में बेसुध नहीं हुए हैं और पूरे होशोहवास में अपने भविष्य पर नजर रखते हुए हाल के दिनों में सरकार द्वारा लिए गए फैसलों को लेकर पूरी तरह जागरुक हैं। और चिंताजनक इसलिए कि देश के मौजूदा हुक्मरान को देश इन भविष्य़ की बात समझ नहीं आ रही है। हद तो यह है कि सरकार इनसे बात तक करने से परहेज कर रही है। जामिया के गेट नंबर 7 के बाहर 31 दिसंबर सर्द रात में भारी संख्या में छात्रों और स्थानीय लोगों ने नए साल का स्वागत राष्ट्रीय और इनकिलाबी गीतों को गाकर और इस रात को आजादी की रात का के तौर पर मनाकर नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया।
पूरे देश में, खास तौर से दिल्ली और देश के बड़े शहरों में आमतौर पर युवा नए साल के स्वागत में सड़कों पर निकल जश्न मनाते हैं, होटलों, रेस्त्रां, नाइट क्लबों में देसी और पश्चिमी गानों की धुन पर थिरकते हैं और दोस्तों के साथ मस्तियां करते हैं, लेकिन जामिया के बाहर ठिठुरती सर्दी में जो छात्र मौजूद थे, वह क्रांतिकारी और राष्ट्रीय गीत गाकर सरकार से नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित एनआरसी से आजादी की मांग करते हुए नारेबाजी कर रहे थे। आधी रात तक छात्र दूर-दराज़ से आते रहे। इस कड़ाके की सर्दी में जुलैना से तकरीबन आधा किलोमीटर पैदल चलकर वहां पहुंच रहे थे। इस आजादी के जश्न में बड़ी संख्या में लड़कियां अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ मौजूद थीं। उनके जुनून और जज्बे का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि हर नारे में वह शामिल थीं और उनके चेहरों पर ‘न्यू ईयर ईव’ की मस्ती नहीं, बल्कि क्रांति की एक चमक थी।
जामिया के छात्रों की पूरी कोशिश थी कि उनकी इस आंदोलनकारी रात से किसी को कोई परेशानी या दिक्कत न हो। इसके लिए उन्होंने ओखला की तरफ से आने वाली सड़क को एक रस्सी से दो हिस्सों में बांट दिया था और अपने कार्यक्रम को ओखला जाने वाली सड़क पर समेट लिया था। रस्सी के दोनों तरफ छात्र मौजूद थे और उनकी कोशिश थी कि किसी भी जगह ट्रैफिक जाम की स्थिति न हो। कुछ लोगों ने इस जश्ने आजादी में शामिल होने आए लोगों के लिए बिरयानी का भी इंतजाम किया था ताकि दूर से आने वाले लोगों को भूख लघने पर कहीं जाना न पड़े। छात्रों ने अपने नव वर्ष के संकल्प ‘New Year Resolution’ को एक बैनर पर लिख रखा था। छात्रों ने Resolution के S को V से बदल कर इसे Revolution यानी क्रांति का नाम दे दिया था। इसके नीचे लिखा था, The Azadi Night।
इस पूरे कार्यक्रम को बेहद ही संयोजित और संयमित तरीके से अंजाम दिया गया। इस दौरान लोगों ने बिना कोई अनुशासन तोड़े नारे लगाए और क्रांतिकारी गीतों से सीएए और एनआरसी के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया। जैसे ही रात के 12 बजे और देश ने नए साल में कदम रखा, तो वहां मौजूद लोगों ने राष्ट्रगान गाकर नए साल का स्वागत किया। यह अपने आप में एक अनोखा तरीका था जिसके जरिए छात्रों और वहां मौजूद तमाम लोगों ने राष्ट्रीय एकता की मिसाल पेश की।
इस कार्यक्रम में जहां तमाम लोग फैज की ‘हम देखेंगे...’ गाकर खुद को इस क्रांति का हिस्सा बना रहे थे, वहीं लगभग हरेक को इस आंदोलन के असली मुद्दे की गहरी जानकारी थी। नवजीवन के लिए कौमी आवाज ने कई लोगों से इस बारे में बात की, उन सभी का कहना था कि वे इस कार्यक्रम में किसी मस्ती के लिए नहीं आए हैं, बल्कि देश के संविधान की रक्षा और भारत के बुनियादी विचार को बचाने के लिए यहां मौजूद हैं। कुछ का कहना था कि अगर वह स वक्त नहीं खड़े होंगे तो आने वाली पीढ़ियां उन्हें माफ नहीं करेंगी।
कुछ ऐसा ही मंजर शाहीन बाग के बाहर देखने को मिला, जहां हजारों की संख्या में लोगों ने राष्ट्रगान गाकर नए साल का स्वागत किया। हकीकत यह है कि 31 दिसंबर 2019 की सर्द रात में जामिया के बाहर खड़े होकर यह विश्वास मजबूत हुआ कि जब तक युवा पीढ़ी जागरुक और सचेत है, तब तक इस देश के संविधान को और इसके बुनियादी आधार को हिलाने की कोई हिम्मत नहीं कर सकता।
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