‘मोदी सरकार का अंतरिम बजट संविधान के साथ धोखा’: सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी गई चुनौती
मोदी सरकार द्वारा पेश अंतरिम बजट पर उठ रहे सवालों के बाद अब इसे कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता एमएल शर्मा का कहना है कि केंद्र सरकार ने अंतरिम बजट में जिस तरह की घोषणाएं की हैं, वो सिर्फ पूर्ण बजट में ही की जा सकती हैं।
केंद्रीय मंत्री वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने शुक्रवार को मोदी सरकार के कार्यकाल के आखिरी बजट में जिस तरह से खुल कर बड़े-बड़े ऐलान किए, उससे ऐसा कहीं नहीं लगा कि वह अंतरिम बजट पेश कर रहे हैं। लोकलुभावन घोषणाओं वाले इस बजट ने न सिर्फ संसदीय परंपराओं को तोड़ा बल्कि संवैधानिक प्रावधानों का भी सम्मान नहीं किया। यही वजह है कि वकील एम एल शर्मा ने मोदी सरकार के अंतरिम बजट पर सवाल खड़े करते हुए इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है।
वकील एम एल शर्मा ने अपनी पीआईएल में दावा किया है कि सरकार ने जिस तरह की घोषणाएं अंतरिम बजट में की हैं वो सिर्फ पूर्ण बजट में ही किये जा सकते हैं। उनका कहना है कि चुनावी साल के दौरान सरकार को सिर्फ सिर्फ वोट ऑन अकाउंट पेश करने का ही अधिकार है, क्योंकि संविधान में ऐसा ही प्रावधान है। इस लेखानुदान यानि अंतरिम बजट के जरिये सरकार सिर्फ एक निश्चित समय तक के लिए खर्च की इजाजत हासिल कर सकती है।
अपनी याचिका में एमएल शर्मा ने स्पष्ट करते हुए कहा कि चुनावी साल में कुछ समय के लिए सरकारी खर्च को मंजूर देने की ही परंपरा रही है और बाद में चुनी हुई सरकार पूर्ण बजट पेश करती है। एम एल शर्मा ने अंतरिम बजट में मोदी सरकार द्वारा की गई घोषणाओं को संविधान के साथ धोखा करार दिया और कहा कि इस बजट पर भारत के राष्ट्रपति का हस्ताक्षर लिया जाना उनके साथ भी धोखा करना है।
याचिकाकर्ता का ये भी कहना है कि लोकसभा चुनाव को देखते हुए सिर्फ राजनीतिक फायदा हासिल करने के मकसद से केंद्र सरकार ने बजट में सारी हदों को पार कर बड़े-बड़े ऐलान किए हैं।
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