सीएम समेत 6 सांसदों का अपमान कर बीजेपी ने भोपाल स्टेशन का नाम वाजपेयी के बजाए रानी कमलापति के नाम पर कर दिया

मध्य प्रदेश में बीजेपी में अंतर्कलह जोर पकड़ रही है। मामला है भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का। इसका नाम पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखने की सिफारिश और घोषणा सीएम से लेकर सांसद और पूर्व बीजेपी अध्यक्ष तक कर चुके थे। लेकिन ऐन मौके पर ऊपर से इस स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम पर कर दिया गया।

फोटो : सोशल मीडिया
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पूजा

  • नाम बदलने की राजनीति में खुद फंसी बीजेपी, पार्टी नेताओं में दो फाड़

  • मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, एमपी पूर्व बीजेपी अध्यक्ष प्रभात झा समेत कई सांसद हबीबगंज स्टेशन का नाम अटल बिहारी वाजेपयी के नाम पर रखना चाहते थे

  • खुद मुख्यमंत्री और बीजेपी के कई नेताओं ने सार्वजनिक मंचों से घोषणा भी कर दी थी

  • ऐन वक्त पर दिल्ली दरबार से स्टेशन का नाम रानी कमलापति रख दिया गया

रेलवे स्टेशन हो या ऐतिहासिक शहर। इनका नाम बदलने की जो होड़ बीजेपी में मची है, उसमें इस बार बीजेपी खुद उलझ गई है और भाजपाई ही एक दूसरे से टकराने लगे हैं। यह उलझन और टकराहट हाल ही में मध्य प्रदेश के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलने को लेकर साफ तौर पर सामने आ चुकी है। इस स्टेशन का नाम बीते 4 साल से देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के नाम से किया जाना तय और घोषित था। यह बात कोई और करता तो बात आई-गई हो जाती, लेकिन खुद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कई मंचों से इसका ऐलान कर चुके थे।

मध्य प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके प्रभात झा तो तत्कालीन रेल मंत्री पीयूष गोयल और रेलवे बोर्ड को पत्र भी लिख चुके थे। हमेशा सुर्खियों में रहने वाली भोपाल की सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर भी पांच दिन पहले तक स्टेशन का नाम स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखने की पैरवी करती दिखाई दे रही थीं। वे पहले भी कई मंचों से नाम बदलने और बदलवाने की वकालत कर चुकी थी। इनके अलावा भी बीजेपी के कई प्रादेशिक और स्थानीय जनप्रतिनिधि स्टेशन का नाम अटल रेलवे स्टेशन रखने के पक्ष में थे,

लेकिन ऐन वक्त पर स्टेशन का नाम रानी कमलापति स्टेशन रख दिया गया। यह सब कुछ दिल्ली दरबार से हुआ और इसी के साथ अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर स्टेशन का नामकरण करवाने का ढिंढोरा पीटने वाले मुख्यमंत्री से लेकर तमाम नेता पीछे छूट गए। यहीं से बीजेपी में नाम बदलने की राजनीति पर अंतर कलह शुरू हो चुकी है। स्वभाविक है मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी पूर्व घोषणा के अनुरूप स्टेशन का नामकरण स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर कराना चाहते थे लेकिन दिल्ली दरबार के आगे उनकी एक नहीं चली। यह बात प्रदेश बीजेपी के उन नेताओं को नागवार गुजर रही है जो स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी के नाम से स्टेशन का नामकरण करने का दम भर चुके थे और वाहवाही लूट चुके थे। लेकिन इसका कोई तोड़ नहीं है क्योंकि फरमान दिल्ली दरबार का है।

बीजेपी ने सीएम सहित किया 6 सांसदों का अपमान

राज्यसभा सांसद रहते प्रभात झा ने सबसे पहले 24 सितंबर 20218 में स्टेशन का नाम बदलने का प्रस्ताव रेलवे की उच्च स्तरीय बैठक में रखा था। यह बैठक अशोका लेकव्यू में हुई थी। तब बैठक में भोपाल से बीजेपी सांसद आलोक संजर, सागर के सांसद लक्ष्मीनारायण यादव, होशंगाबाद सांसद उदय प्रताप सिंह, बैतूल—हरदा सांसद ज्योति धुर्वे और राजगढ़ सांसद रोडमल नागर मौजूद थे। सभी ने अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर स्टेशन का नाम रखने के प्रस्ताव पर सहमति दी थी।

इस बैठक का नेतृत्व पश्चिम मध्य रेलवे के जीएम अजय विजयवर्गीय और भोपाल डीआरएम रहे शोभन चौधुरी ने किया था। इनमें से अभी भी सांसद है और कुछ पूर्व सांसद हो गए हैं। लेकन अब इनके मुंह से कुछ नहीं निकल रहा है। यहां तक कि प्रभात झा की कोई भी सार्वजनिक प्रतिक्रिया सामने नही है।


अटल बिहारी वाजपेयी को चाहने वालों में सदमा

अटल बिहारी वाजपेयी एक बड़ी शख्यिसयत थे। जब उनका नाम सामने आया तो उन्हें चाहने वालों ने खुशी जाहिर की थी। किसी ने विरोध नहीं किया था। अभी भी कोई विरोध नहीं कर रहा है लेकिन अटल को चाहने वाले कुछ जनप्रतिनिधियों और उनके प्रशंसकों ने कहा कि यह अटल बिहारी वाजपेयी के मान—सम्मान के साथ खिलवाड़ है। यदि उनके नाम से स्टेशन का नाम नहीं रखना था तो फिर पूर्व में जिम्मेदारों द्वारा वाहवाही नहीं लूटी जानी थी और यदि भरोसा जगा दिया था तो उसे पूरा करना था।

कौन हैं रानी कमलापति और क्या है उनका भोपाल से रिश्ता!

रानी कमलापति गिन्नौरगढ़ क्षेत्र की अंतिम गोंड शासक थी। तब भोपाल भी गिन्नोरगढ़ में आता था। इनके पति का नाम निजाम शाह था। इतिहास के जानने वाले बताते हैं कि निजाम शाह ने 1700 के आसपास अपना शासन शुरू किया था। 1719-20 के आसपास इनकी कथित तौर पर षडयंत्र पूर्वक हत्या कर दी गई। हत्या के आरोप आलम शाह पर लगते रहे हैं जो कि उनके रिश्ते के भतीजे थे। तब क्षेत्र के शासन की जिम्मेदारी रानी कमलापति पर आ गई थी। उन्होंने अपने बेटे नवल शाह के साथ कामकाज संभाला।

इस बीच उन्होंने जगदीशपुर क्षेत्र के शासक दोस्त मोहम्मद खान से दोस्ती की और उनके पति के हत्यारे आलम शाह की हत्या कराई थी। ऐसा इतिहास में उल्लेख मिलता है। चूंकि दोस्त मोहम्मद खान औरंगजेब की सेना से भागकर आया भगोड़ा था और अपने शासन का विस्तार चाहता था। धोखा देना उसकी आदत में था इसलिए उसने रानी कमलापति से शर्त के मुताबिक रुपया-पैसा और क्षेत्र नहीं मिलने के कारण रानी कमलापति व उसके बेटे के राज्य पर चढ़ाई करने की योजना बनाई थी और गिन्नौरगढ़ को जीत लिया था।

इसके बाद रानी कमलापति व उसके बेटा भागकर भोपाल आ गए थे। यहां भी उनका महल था जहां वे ठहरे थे। दोस्त मोहम्मद खान भोपाल तक आ धमका था। तब युद्ध हुआ और उसने युद्ध में नवल शाह को मौत के घाट उतार दिया था। तब भी रानी ने आत्मसमर्पण नहीं किया और आत्मोसत्सर्ग कर लिया था। इतिहास के जानने वाले बताते हैं कि रानी ने भोपाल के छोटे तालाब में जल समाधि ले ली थी। कुछ का कहना है कि उन्हें दोस्त मोहम्मद ने उनके ही महल में घेरकर मरवा दिया था।

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