CAA के बाद मुसलमानों के लिए खतरनाक बना भारत, अल्पसंख्यकों की हालत पर अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में दावा
वार्षिक तौर पर जारी होने वाली साउथ एशिया स्टेट ऑफ माइनोरिटी रिपोर्ट-2020 में दक्षिण एशियाई देशों में अल्पसंख्यकों के अधिकारों का आकलन किया जाता है। ये रिपोर्ट अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका को शामिल करते हुए तैयार की गई है।
भारत में केंद्र की बीजेपी के नेतृत्व वाली मोदी सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन कानून को संसद से पारित कराए एक साल पूरे हो गए हैं। इस कानून के आने के बाद से देश में इसका विरोध जारी है। इस कानून को देश के अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के खिलाफ बताया जा रहा है। इस पर मुहर लगाते हुए अब एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जब से भारत की सरकार ने नागरिकता कानून में संशोधन किया है तब से देश “मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए खतरनाक और हिंसक स्थान बन चुका है।”
यह अहम दावा साउथ एशिया स्टेट ऑफ माइनोरिटी रिपोर्ट-2020 में किया गया है। वार्षिक तौर पर जारी की जाने वाली इस रिपोर्ट में दक्षिण एशियाई देशों में रह रहे अल्पसंख्यकों की अभिव्यक्ति और निजी स्वतंत्रता की स्थिति का आकलन किया जाता है। ये रिपोर्ट अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका को शामिल करते हुए तैयार की गई है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समय जहां पूरी दुनिया में नागरिक अधिकारों पर खतरा है, वहीं भारत में पिछले सालों में हुए बदलाव खतरे की घंटी बजाते हैं, जो असामान्य गति से हुए हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत मुसलमानों के लिए खतरनाक और हिंसक जगह हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2019 में जो सीएए कानून लाया गया है वो मुसलमानों को दायरे में शामिल नहीं करता है। बीजेपी सरकार ने कानून के साथ ही पूरे देश में एनआरसी लाने के संकेत दिए थे, जो कई मुसलमानों को देश से बाहर कर सकता है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 2014 से जब से बीजेपी सत्ता में आई है, तब से धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले बेतहाशा बढ़े हैं, जिससे मुसलमानों और अल्पसंख्यक संगठनों के अधिकारों और अभिव्यक्ति पर असर पड़ा है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि मई 2019 में बीजेपी के प्रचंड बहुमत के साथ फिर से सत्ता में लौटने के बाद से हालात और भी बदतर हो गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत में सरकार के खिलाफ बोलने वाले मुस्लिम अभिनेताओं, मानवाधिकार वकीलों, कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, पत्रकारों और प्रदर्शनकारियों पर तेजी से हमले बढ़े हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ता प्रतिबंध, हिंसा, मुकदमों, हिरासत और उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में पिछले साल जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के बाद राज्य में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन का मुद्दा भी उठाया गया है। रिपोर्ट में बेहद सख्त टिप्पणी करते हुए कहा गया है कि भारत में कश्मीर का मामला साफ बताता है कि लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर से ही नागरिकों के स्पेस को पूरी तरह से कैसे मिटाया जा सकता है।
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