2024 में किस ओर बढ़ेगी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, किसके हाथ में रहेगी एआई की ताकत?
कॉपीराइट की लड़ाई से लेकर डीपफेक के कारण चुनावों में गड़बड़ी की आशंका तक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में इस साल किन चीजों पर नजर रहेगी।
कॉपीराइट की लड़ाई से लेकर डीपफेक के कारण चुनावों में गड़बड़ी की आशंका तक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में इस साल किन चीजों पर नजर रहेगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल अब हर जगह हो रहा है। लंबे समय तक यह केवल विज्ञान की कहानियों और बिना मकसद के किए जाने वाले शोध का हिस्सा रहा। लेकिन अब चैटजीपीटी और बार्ड चैटबोट्स जैसी एआई तकनीकों को लाखों-करोड़ों लोग रोज इस्तेमाल कर रहे हैं। फिर भी विशेषज्ञों का कहना है कि ये तो आने वाले समय की बस एक झलक भर है।
एडा लर्निंग नाम के स्टार्टअप की चीफ इनोवेशन ऑफिसर और एआई पर आने वाली एक किताब की लेखिका लेआ स्टाइनाकर कहती हैं, ‘एआई अपने आईफोन मोमेंट तक पहुंच गया है।' उनका इशारा साल 2007 में आए एप्पल के स्मार्टफोन से था, जिसने फोन पर मोबाइल इंटरनेट को लोकप्रिय बनाया।
स्टाइनाकर ने डीडब्ल्यू से कहा, ‘चैटजीपीटी और इस तरह के और ऐप्लिकेशंस ने एआई टूल को आम लोगों तक पहुंचाया है और समग्र रूप से इसका असर समाज पर पड़ेगा।'
चुनावों को प्रभावित कर सकते हैं डीपफेक्स?
तथाकथित ‘जेनरेटिव' एआई प्रोग्राम के जरिए अब कोई भी व्यक्ति कुछ ही सेकंड में कामचलाऊ चीजों से ठोस प्रभावी टेक्स्ट और तस्वीरें बना सकता है। इससे ‘डीपफेक' सामग्री तैयार करना पहले से कहीं अधिक आसान और सस्ता हो गया है, जिसमें लोग ऐसी बातें कहते या करते दिखाई देते हैं, जो उन्होंने कभी न कहा, न किया।
जानकारों का कहना है कि 2024 में जैसे-जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति पद की दौड़ से लेकर यूरोपीयन संसद के चुनावों तक की तारीखें नजदीक आ रही हैं, जनता की राय को प्रभावित करने या वोट से पहले अशांति भड़काने की मंशा से डीपफेक में वृद्धि देखी जा सकती है।
यूरोपीय संघ की साइबर सुरक्षा एजेंसी ने अक्टूबर 2023 में खतरों के प्रति अंदेशा जताने वाली रिपोर्ट जारी की थी। उस वक्त एजेंसी के कार्यकारी निदेशक युहान लेपसार ने चेतावनी देते हुए कहा था, ‘यूरोपीय संघ की चुनावी प्रक्रिया में विश्वास इस बात पर निर्भर करेगा कि साइबर सुरक्षित बुनियादी ढांचे और सूचना की उपलब्धता व अखंडता पर हमें कितना भरोसा है।'
डीपफेक का कितना असर होगा, यह काफी हद तक सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा इनसे निपटने के प्रयासों पर भी निर्भर करेगा। गूगल के यूट्यूब और मेटा के फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे कई प्लेटफॉर्म्स ने एआई से बनने वाली सामग्री को चिह्नित करने के लिए नीतियां लागू की हैं और इस साल पता चलेगा कि ये कितनी कारगर हैं।
एआई से बनी चीजों का मालिक कौन है?
‘जेनरेटिव' एआई टूल विकसित करने के लिए कंपनियां अंतर्निहित मॉडलों को इंटरनेट से प्राप्त बड़ी मात्रा में टेक्स्ट और तस्वीरों के जरिए प्रशिक्षित करती हैं। अब तक उन्होंने मूल रचनाकारों - लेखकों, चित्रकारों या फोटोग्राफरों से बिना किसी तरह की स्पष्ट सहमति के ही इन संसाधनों का उपयोग किया है।
लेकिन जिनके पास इस सामग्री का अधिकार है, वो इसे कॉपीराइट का उल्लंघन मानते हैं और इसके खिलाफ लड़ रहे हैं।
हाल ही में 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने घोषणा की कि वो चैटजीपीटी की कंपनियों ओपनएआई और माइक्रोसॉफ्ट पर अखबार के लाखों लेखों का उपयोग करने का आरोप लगाते हुए मुकदमा करने जा रहा है। यही नहीं, सैन फ्रांसिस्को स्थित ओपनएआई पर जॉन ग्रिशम और जोनाथन फ्रेंजेन सहित कुछ प्रमुख अमेरिकी उपन्यासकारों का एक समूह भी उनकी सामग्री का दुरुपयोग करने के लिए मुकदमा दायर करने जा रहा है।
इसके अलावा कई अन्य मुकदमे भी लंबित हैं. उदाहरण के लिए, फोटो एजेंसी गेटी इमेजेस अपनी तस्वीरों का विश्लेषण करने के लिए एआई कंपनी स्टेबिलिटी एआई पर मुकदमा कर रही है। स्टेबल डिफ्यूजन इमेज क्रिएशन सिस्टम स्टेबिलिटी एआई कंपनी का ही है।
इन मामलों में पहला फैसला 2024 में आ सकता है और इससे ये भी पता चल सकता है कि किस तरह कॉपीराइट के मौजूदा नियम-कानूनों में एआई के मद्देनजर सुधार की जरूरत है।
एआई की ताकत किसके हाथ में है?
एआई तकनीक जैसे-जैसे ज्यादा परिष्कृत होती जा रही है, कंपनियों के लिए अंतर्निहित मॉडल विकसित करना और प्रशिक्षित करना उतना ही कठिन और अधिक महंगा होता जा रहा है।डिजिटल राइट्स ऐक्टिविस्ट्स ने चेतावनी दी है कि इसी वजह से अत्याधुनिक विशेषज्ञता वाली ये तकनीक महज कुछ शक्तिशाली कंपनियों के पास ही केंद्रित होती जा रही है।
ब्रसेल्स स्थित गैर-लाभकारी संगठन 'एक्सेस नाउ' में यूरोपियन पॉलिसी एंड एडवोकेसी की डायरेक्टर फैनी हिडवेगी कहती हैं, ‘कुछ तकनीकी कंपनियों के हाथों में बुनियादी ढांचे, कंप्यूटिंग पावर और डेटा के मामले में शक्ति का यह केंद्रीकरण तकनीकी क्षेत्र में लंबे समय से चली आ रही समस्या को दर्शाता है।'
उन्होंने चेतावनी दी कि जैसे-जैसे तकनीक लोगों के जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बनती जाएगी, कुछ निजी कंपनियां ये तय करेंगी कि एआई समाज को कैसे नया आकार दे।
एआई कानूनों को कैसे लागू किया जाए?
विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि जिस तरह कारों में सीटबेल्ट लगाने की जरूरत होती है, वैसे ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक को भी नियमों द्वारा नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
कई साल तक चली चर्चाओं के बाद दिसंबर 2023 में यूरोपीय संघ अपने एआई अधिनियम पर सहमत हुआ, जो एआई के लिए विशिष्ट कानूनों का दुनिया का पहला व्यापक रूप है।
अब सभी की निगाहें ब्रसेल्स में नियामकों पर होंगी कि क्या वो सही रास्ते पर चलते हैं और नए नियमों को लागू करते हैं। नियमों में क्या और कैसे बदलाव किया जाए, इस बात पर तगड़ी बहस होने की उम्मीद है।
लेआ स्टाइनाकर मानती हैं कि ये बहुत जटिल मसला है, जिसमें आगे चलकर दिक्कत आ सकती है। वह कहती हैं, ‘अमेरिका की तरह यूरोपीय संघ में हम इन नए कानूनों की व्यावहारिकताओं पर लंबी बहस की उम्मीद कर सकते हैं।'
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