2023 में नोटबंदी, CAA समेत कई अहम याचिकाओं पर फैसला देगा सुप्रीम कोर्ट, इन मामलों में केंद्र से टकराव!
सुप्रीम कोर्ट 2023 में 2 जनवरी को 1,000 रुपये और 500 रुपये मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों के विमुद्रीकरण के केंद्र के 2016 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगा।
साल 2022 के आखिरी चरण में हाईकोर्टों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में देरी को लेकर केंद्र और न्यायपालिका के बीच टकराव के कई बिंदु सामने आए। चल रहे विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने शीर्ष अदालत में पदोन्नति के लिए पांच हाईकोर्टों के न्यायाधीशों के नाम की स्वीकृति दी है, जो केंद्र से मंजूरी के लिए लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट 2023 में 1,000 और 500 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने के केंद्र के 2016 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगा और कई मुद्दों की जांच भी करेगा, विशेष रूप से दिल्ली सरकार-केंद्र के बीच विवाद, शिवसेना के उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुटों के बीच कानूनी लड़ाई, पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाएं और नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) आदि के खिलाफ 200 से अधिक याचिकाओं पर फैसले आने हैं।
शीर्ष अदालत ने 2022 में भारत के तीन प्रधान न्यायाधीशों (सीजेआई) को देखा। एन.वी. रमना - जो अप्रैल 2021 में 48वें सीजेआई बने और अगस्त 2022 में रिटायर हुए। उन्होंने केंद्र और न्यायपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखा और उच्च न्यायपालिका में कई नियुक्तियां कीं।
सीजेआई यू.यू. ललित के छोटे कार्यकाल का बड़ा हिस्सा कॉलेजियम सिस्टम या जजों की नियुक्ति में देरी के मुद्दों पर बहस में बीता। मगर कोई हलचल नजर नहीं आई। हालांकि, उनके कार्यकाल के अंत में और मौजूदा सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ के कार्यकाल की शुरुआत से पहले कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना की थी।
रिजिजू ने मीडिया के एक कार्यक्रम में कहा था कि जज केवल उन ही लोगों की नियुक्ति करते हैं, जिन्हें वे जानते हैं और उनके पसंदीदा व्यक्ति हमेशा सबसे योग्य नहीं होते। बाद में कानून मंत्री ने जमानत याचिकाओं और तुच्छ जनहित याचिकाओं को लंबे समय बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किए जाने और लंबी न्यायिक कार्यवाही की भी आलोचना की।
मंत्री के बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा में अपने पहले अभिभाषण में कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) संसद द्वारा प्रस्ताव पारित किया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे पूर्ववत रखा।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाईकोर्टो के पांच जजों के नाम शीर्ष अदालत में नियुक्ति के लिए भेजे थे : जस्टिस पंकज मितल, मुख्य न्यायाधीश, राजस्थान हाईकोर्ट (मूल उच्च न्यायालय (पीएचसी) : इलाहाबाद), जस्टिस संजय करोल, मुख्य न्यायाधीश, पुणे हाईकोर्ट (पीएचसी : हिमाचल प्रदेश), जस्टिस पी.वी. संजय कुमार, मुख्य न्यायाधीश, मणिपुर हाईकोर्ट (पीएचसी : तेलंगाना), जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह, जज, पटना हाईकोर्ट और अशोक मिश्रा, जज, इलाहाबाद हाईकोर्ट। चूंकि केंद्र ने कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना तेज कर दी है, उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रभावित हुई है।
केंद्र के नो-होल्ड्स-बैरड हमलों पर न्यायपालिका से तीखी प्रतिक्रिया आई और उच्च न्यायालय ने उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति में विलंब पर केंद्र को फटकार लगाने का आदेश दिया।
इस महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान की योजना के लिए यह आवश्यक है कि कानून सम्मत निर्णय हो और संसद को कानून बनाने का अधिकार हो, लेकिन शीर्ष अदालत केंद्र के खिलाफ अवमानना याचिका की सुनवाई के क्रम में इसकी जांच कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट 2023 में 2 जनवरी को 1,000 रुपये और 500 रुपये मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों के विमुद्रीकरण के केंद्र के 2016 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगा और बाद में यह चुनाव आयोग और मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वालों की याचिकाओं पर भी फैसला देगा।
शीर्ष अदालत दिल्ली-केंद्र विवाद, महाराष्ट्र राजनीतिक संकट, पूजा के स्थान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं, सीएए के खिलाफ 200 से अधिक याचिकाओं की सुनवाई भी करेगा।
शीर्ष अदालत ने 2022 में कई महत्वपूर्ण मामलों में फैसला दिया - पांच न्यायाधीशों की पीठों ने 3:2 बहुमत से सरकारी नौकरी में आर्थिक रूप से कमजोर (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को कायम रखा, धन शोधन रोकथाम अधिनियम के तहत संपत्ति जब्त करने, तलाशी लेने और गिरफ्तार करने की प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियों को कायम रखा और इसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे और 63 अन्य लोगों को 2002 के गोधरा कांड के पीछे बड़ी साजिश में एसआईटी की दी हुई क्लीन चिट को कायम रखा।
अक्टूबर 2022 में शीर्ष अदालत ने डीयू के पूर्व प्रोफेसर जी.एन. साईंबाबा के नक्सलियों से संबंध मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को निलंबित कर दिया।
हालांकि, अगस्त 2022 में इसने भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी 82 वर्षीय कवि और कार्यकर्ता पी. वरवरा राव को चिकित्सा आधार पर जमानत दे दी और नवंबर 2022 में शीर्ष अदालत ने सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा और एक अन्य आरोपी को जमानत दे दी।
सर्वोच्च न्यायालय ने 11 मई को राजद्रोह के औपनिवेशिक युग के दंडात्मक प्रावधान को रोक दिया।
शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों से यह भी कहा कि केंद्र द्वारा कानून की समीक्षा पूरी होने तक भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत देशद्रोह के प्रावधान के तहत कोई भी प्राथमिकी दर्ज करने से परहेज करें।
31 अक्टूबर को भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमनी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केंद्र भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आपराधिक कानूनों की समीक्षा करने की प्रक्रिया में है, जो देशद्रोह को अपराध मानता है। एजी ने कहा था कि संसद के शीतकालीन सत्र में कुछ हो सकता है और केंद्र को अतिरिक्त समय देने का अनुरोध का किया था, ताकि उचित कदम उठाए जा सकें।
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia