'हम अडानी के हैं कौन' सीरीज की 11वीं किस्त: मोदी जी के पीएम बनते ही क्यों बंद हो गईं अडानी से जुड़ी कंपनियों की जांच

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने हम अडानी के हैं कौन सीरीज की ग्यारहवीं किस्त में फिर तीन सवाल पूछे हैं। इन सवालों में उन्होंने मुद्दा उठाया है कि आखिर मोदी जी के पीएम बनने के बाद से अडानी से जुड़ी कंपनियों की जांच क्यों बंद कर दी गई। पढ़िए तीनों सवाल-

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नवजीवन डेस्क

 प्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी,

हम सभी ने "आर्थिक अपराधियों के लिए सुरक्षित पनाहगाहों को खत्म करने" और "भ्रष्टाचारियों और उनके कार्यों को छिपाने वाले जटिल अंतरराष्ट्रीय विनियमों और बैंकिंग गोपनीयता के मायाजाल को तोड़ने" के आपके आह्वान को सुना है। फिर भी विदेशी टैक्स हेवन में स्थित शेल कंपनियों ने आपके मित्र गौतम अडानी के व्यवसाय संचालन में बिना किसी गंभीर परिणाम के केंद्रीय भूमिका निभाई है। उनके भाई विनोद अडानी पर आरोप है कि उन्होंने मॉरीशस में कम से कम 38 शेल इकाइयां स्थापित कीं, जिनमें से कई ने बिना किसी ज्ञात आय के स्रोत और व्‍यापारिक गतिविधि के अडानी समूह के साथ बड़ा कारोबार किया है।

जैसा कि वादा किया गया था, आज आपके लिए तीन सवालों का अगला सेट प्रस्‍तुत है, एचएएचके (हम अडानी के हैं कौन) श्रृंखला में ग्यारहवां, जो विदेशी शेल कंपनियों के साथ अडानी समूह के संबंधों पर केंद्रित है-

सवाल नंबर - 1

राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई), भारत की प्रमुख तस्करी-रोधी एजेंसी, ने 2014 में पाया कि अडानी समूह की तीन कंपनियों - महाराष्ट्र ईस्टर्न ग्रिड पावर ट्रांसमिशन, अडानी पावर महाराष्ट्र, और अडानी पावर राजस्थान - ने चीन और दक्षिण कोरिया से 3,580 करोड़ रुपए की लागत पर आयातित बिजली उपकरणों के लिए दुबई स्थित इलेक्ट्रोजेन इंफ्रा एफजेडई को 9,048 करोड़ रुपए का भुगतान किया था और इसमें से शेष राशि देश से बाहर चली गई। यह पता चला कि इलेक्ट्रोजेन को गौतम अडानी के भाई विनोद द्वारा मॉरीशस स्थित एक इकाई, इलेक्ट्रोजेन इंफ्रा होल्डिंग के माध्यम से नियंत्रित किया जा रहा था। आपके पीएम बनने के बाद, किसी तरह डीआरआई के निर्णायक अधिकारी ने आरोपों को खारिज कर दिया, हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि "मुझे लगता है कि ईआईएफ और एपीआरएल श्री विनोद शांतिलाल अडानी के माध्यम से संबंधित संस्थाएं हैं"। 

2014 में डीआरआई द्वारा इस मामले को केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा अधिग्रहण के बाद अपील की गई, लेकिन मामला कहीं भी पहुंच नहीं पाया। क्या आप अपने करीबी दोस्तों को बचा रहे हैं, जिन पर अकेले इस मामले में 5,468 करोड़ रुपए की राशि को अन्यत्र  हस्‍तांतरित करने का आरोप है? क्या आपको इस बात की चिंता नहीं है कि संदेहास्‍पद प्रमोटरों द्वारा पूंजीगत लागत को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाए जाने पर अंतत: उपभोक्ता और करदाता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है?

सवाल नंबर - 2

डीआरआई ने 2004-06 के हीरा घोटाले की भी जांच की जिसमें गौतम अडानी के छोटे भाई राजेश अडानी और उनके बहनोई समीर वोरा पर हीरे के समक्रमिक (सर्कुलर) व्यापार और ओवर-इनवॉइसिंग का आरोप लगाया गया था ताकि धोखाधड़ी से निर्यात सब्सिडी पर दावा किया जा सके। ये लेन-देन कथित तौर पर दुबई और सिंगापुर जैसे विदेशी टैक्स हेवन के माध्यम से भी किए गए थे। 2013 में, सीमा शुल्क आयुक्त ने राजेश अडानी, समीर वोरा, अडानी एंटरप्राइजेज और अडानी समूह से जुड़ी पांच हीरा व्यापारिक कंपनियों पर जुर्माना लगाया था। हालांकि 2015 में, आपके पीएम बनने के बाद, सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण ने आयुक्त के आदेश को रद्द कर दिया और वर्षों से चली आ रही जांच के निष्कर्षों को खारिज कर दिया। यह एक परेशान करने वाले पैटर्न का हिस्सा है जिसमें अडानी समूह द्वारा किए गए गलत कार्यों की विस्तृत जांच आपके पीएम के रूप में कार्यभार संभालने के बाद निरस्‍त हो जाती है।


सवाल नंबर - 3

विनोद अडानी द्वारा कथित रूप से नियंत्रित शेल कंपनियों ने भी अडानी समूह की कंपनियों में भारी धनराशि निवेश की है। रिकॉर्ड बताते हैं कि यूएई स्थित इमर्जिंग मार्केट इन्वेस्टमेंट डीएमसीसी ने 2021-22 में अडानी पावर की सहायक कंपनी महान एनर्जेन को 7,919 करोड़ रुपए का कर्ज दिया था। उसी वर्ष अडानी इन्फ्रास्ट्रक्चर को मॉरीशस स्थित गार्डेनिया ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट से 5,145 करोड़ रुपए मिले। दोनों संस्थाओं को विनोद अडानी से जुड़ी बताई जाती हैं। दोनों ने अडानी समूह को बिना किसी स्पष्ट ज्ञात व्यावसायिक गतिविधि‍ के बड़ी मात्रा में धन उधार दिया। क्या यह सभी गतिविधियां आपकी जांच एजेंसियों की पलटन के द्वारा जांच के लायक नहीं है?

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