आईएल एंड एफएस डूबी तो ठप हो गया कीरतपुर-नेरचौक राजमार्ग पर काम
कीरतपुर-नेरचौक मार्ग को फोर लेन करने का काम मार्च 2012 को आईएल एंड एफएस की सहयोगी कंपनी आईटीएनएल को दिया गया था। कंपनी ने छोटे-छोटे 50 ठेकेदारों को काम दे दिया और धीरे-धीरे इन छोटी कंपनियों का बकाया जब 50 करोड़ से अधिक हो गया, तो इन्होंने काम रोक दिया।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हिमाचल प्रदेश को अपना दूसरा घर मानते थे और पूरे राज्य को बेहतरीन सड़कों से जोड़ने का सपना देखते थे। लेकिन केंद्र और प्रदेश में बीजेपी सरकारों के के बाद भी इस पर ग्रहण सा लग गया है। सरकार की लापरवाही के कारण कीरतपुर-नेरचौक को फोर लेन करने का काम पिछले तीन माह से रुका पड़ा है, जिसके चलते व्यस्त चंडीगढ़-मनाली राजमार्ग की हालत खराब है।
कीरतपुर-नेरचौक मार्ग को फोर लेन करने का काम मार्च 2012 को आईएल एंड एफएस की सहयोगी कंपनी आईटीएनएल को दिया गया था। कंपनी को यह ठेका बीओटी (बिल्ड एंड ऑपरेट) आधार पर 28 साल के लिए दिया गया था। 91,000 करोड़ की देनदारी में घिरे समूह से जुड़ी आईटीएनएल ने छोटे-छोटे 50 ठेकेदारों को काम दे दिया और धीरे-धीरे इन छोटी कंपनियों का बकाया जब 50 करोड़ से अधिक हो गया, तो इन्होंने काम रोक दिया।
फिलहाल 22 जून के बाद से इसका काम एकदम रुका पड़ा है। इसके लिए बीजेपी सरकार सवालों के घेरे में है क्योंकि ऐसा तो है नहीं कि अचानक बकाया 50 करोड़ हो गया? इतनी सारी कंपनियों को ठेके पर देकर काम किया जा रहा था और सरकारी लोग भी कामकाज का निरीक्षण बराबर करते रहे। तो क्या उन्हें पता नहीं चला कि वहां भुगतान न होने के कारण स्थितियां खराब होती जा रही हैं? और फिर जब पता चला तो उन्होंने क्या किया?
कीरतपुर-नेरचौक एक्सप्रेस हाईवेज लि. के प्रोजेक्ट मैनेजर निशांत श्रीवास्तव कहते हैं, “हमने प्रोजेक्ट सरेंडर कर दी है। इसका लगभग 70 फीसदी काम पूरा हो चुका है और विवाद के निपटारे कि लिए हमने पंचाट में आवेदन डाला है।” हालांकि मिली जानकारी के मुताबिक कंपनी ने 1818.47 करोड़ की कुल परियोजना लागत में से 1300 करोड़ पहले ही ले रखे हैं। इस बीच परियोजना की लागत बढ़कर 3500 करोड़ हो चुकी है।
कीरतपुर-नेरचौक फोर लेन कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष जतिंदर चंदेल कहते हैं, “हमें मजबूरन एसोसिएशन बनाना पड़ा। कंपनी ने भुगतान नहीं किया था। हम प्रधानमंत्री मोदी से लेकर ट्रांसपोर्ट और हाईवेज मंत्री नितिन गडकरी तक अपनी शिकायत पहुंचा चुके हैं।”
आज स्थिति यह है कि सरकारी लापरवाही के कारण न केवल परियोजना में देर हो रही है बल्कि इसकी लागत भी बढ़ गई है और इसके कारण व्यापार, पर्यटन सब पर बुरा असर पड़ा है। मनाली होटलियर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अनूप ठाकुर कहते हैं, “परियोजना के पूरा न होने के कारण अकेले कुल्लू जिले में छोटे-बड़े ढाई से तीन हजार होटलों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।”
सुरंगों के लिए भी खतरा
राजमार्ग पर कई सुरंगों पर काम चल रहा है और इनसे पानी निकालने का काम रुक सा गया है, जिसके कारण इसमें पानी जमा हो गया है। पानी के कारण सुरंग में मिट्टी और पत्थर गिर रहे हैं और खतरा इस बात का पैदा हो गया है कि कहीं सुरंग भराभराकर गिर न जाएं।
स्वारघाट के पास 900 मीटर लंबी सुरंग (नंबर 1) इसी तरह के खतरे में पड़ गई है। रोजाना इसमें करीब हजार गैलन पानी भरता जा रहा है और इसे निकालने में एनएचएआई के अधिकारियों के पसीने छूट रहे हैं। यही वह सुरंग है जिसमें 2015 के सितंबर में तिहरा गांव के पास एक बड़ा हिस्सा गिर गया था जिससे तीन मजदूर फंस गए थे। एनडीआरएफ की टीम बड़ी मशक्कत के बाद इनमें से दो की ही जान बचा पाई थी।
इस परियोजना में पांच सामान्य सुरंगें, एक आपात सुरंग और 18 पुल हैं और इस मार्ग के खुल जाने से कीरतपुर से नेरचौक की दूरी करीब 36 किलोमीटर कम हो जाएगी। मंडी में तैनात एनएचएआई के प्रोजेक्ट डायरेक्टर लेफ्टिनेंट कर्नल योगेश चंद्र ने नवजीवन से बातचीत में स्वीकार किया कि पैसे की कमी के कारण परियोजना रुक गई है। हालांकि उन्होंने यह भी दावा किया कि मामले को सुलझाने की कोशिशें की जा रही हैं ताकि निर्माण कार्य दोबारा शुरू किया जा सके।
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