बादल परिवार के हाथ से एसजीपीसी गई तो खतरे में आ जाएगा अकाली दल
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव कराने का प्रस्ताव पंजाब विधानसभा से सर्वसम्मति से पास होने के बाद शिरोमणि अकाली दल सकते में है। क्योंकिअगर स्वतंत्र तरीके से चुनाव हुए तो बादल परिवार की पार्टी शिरोमणि अकाली दल का पूरा वजूद ही हिल सकता है।
पंजाब विधानसभा में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के चुनाव करवाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हो गया है। अब शिरोमणि अकाली दल सकते में है। उसे अपने सियासी खात्मे का अंदेशा सताने लगा है। एसजीपीसी के जरिये ही अकाली दल अब तक सत्ता की सीढ़ियां चढ़ता रहा है। अब तक कमेटी के अध्यक्ष का नाम पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के लिफाफे से ही निकलने की परंपरा रही है।
बेशक अब तक एसजीपीसी के चुनाव कहने के लिए तो लोकतांत्रिक तरीके से कराकर कागजी खानापूर्ति होती रही है। पिछले तीन साल से कमेटी के चुनाव नहीं हुए हैं। अगर स्वतंत्र तरीके से चुनाव हुए तो माना जा रहा है कि अकाली दल का पूरा वजूद हिल सकता है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को सिखों की मिनी संसद का दर्जा हासिल है।
अकाली दल की सियासत और एसजीपीसी के रिश्ते को इस तरह समझ सकते हैं कि अमृतसर स्थित इसका मुख्यालय ही अकाली दल का हेडक्वार्टर माना जाता रहा है। एसजीपीसी पंजाब, हिमाचल, हरियाणा और चंडीगढ़ स्थित गुरुद्वारों का प्रबंधन करती है। हालांकि, हरियाणा के लिए अब अलग से गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का गठन हो गया है, लेकिन यहां अब भी कई संस्थाओं का संचालन एसजीपीसी कर रही है।
एसजीपीसी का बजट 11 अरब से भी ज्यादा का होता है। तमाम शैक्षिक और धमार्थ संस्थाओं का संचालन करने वाली एसजीपीसी का विशाल नेटवर्क ही जमीनी तौर पर अकाली दल का आधार माना जाता है। सिखों में इसकी व्यापक पैठ ही अकाली दल को पंजाब में सियासी जमीन देती रही है। सात दशक का सियासी अनुभव रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल तकरीबन दो दशक से एसजीपीसी की दशा-दिशा तय करते रहे हैं। एसजीपीसी के चुनाव में हर बार बादल की चिट्ठी का इंतजार रहता था। चुनाव की औपचारिकताएं भी होती रहीं, लेकिन वह कागजी ही रहीं।
14 फरवरी को पंजाब विधानसभा में जब एसजीपीसी के चुनाव कराने का प्रस्ताव पेश हुआ तो अकाली खेमे में पसरा सन्नाटा इसकी गंभीरता को बयां कर रहा था। शून्यकाल में आप विधायक एचएस फूलका ने इसकी मांग उठाई थी। फूलका ने एसजीपीसी के चुनाव कराने के साथ ही गुरुद्वारा आयोग गठित करने का प्रस्ताव पेश करने की भी मांग की।
इस पर संसदीय कार्य मंत्री ब्रह्म मोहिंद्रा के पेश प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास कर दिया गया। साथ ही सीएम कैप्टनअमरिंदर सिंह को इस मसले पर केंद्र से बातचीत के लिए अधिकृत भी कर दिया गया। स्पीकर ने अकाली नेताओं से भी अपनी बात रखने के लिए कहा, लेकिन कोई भी बोलने को खड़ा नहीं हुआ।
बहरहाल, विधानसभा में प्रस्ताव पास होने के बाद बादल परिवार के सामने नई सियासी चुनौती है। गुरुद्वारों की सियासत के जरिये पंजाब में सत्ता हासिल करता रहा अकाली दल पहले ही कोटकपूरा और बहबलकलां कांड के बाद पंथक मसलों पर बुरी तरह घिरा हुआ है। सभी स्थानीय चुनावों में बुरी शिकस्त के बाद अब अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। अब अगर स्वतंत्रऔर निष्पक्ष तौर पर एसजीपीसी के चुनाव हो जाते हैं तो बादल परिवार का एक तरह से खेल ही खत्म हो जाएगा।
मुख्यमंत्री कैप्टनअमरिंदर सिंह का इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से बातचीत करने के लिए अधिकृत होना ही बड़ी बात है। पंजाब की पार्टियां इस मसले पर कांग्रेस के साथ हैं। विधान सभा में यह मांग उठाने वाले एचएस फूलका तो बार-बार कह रहे हैं कि एसजीपीसी से बादलों का कब्जा हटवाना ही उनका लक्ष्य है। पंजाब सरकार में कैबिनेट मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा का कहना है कि राज्य सरकार केंद्र से शीघ्र एसजीपीसी के चुनाव को लेकर बात करेगी। यह पूरे पंजाब की मांग है कि एसजीपीसी के चुनाव समय पर होने चाहिए।
एसजीपीसी के प्रवक्ता दिलजीत सिंह बेदी ने इस पर बड़ी सतर्क प्रतिक्रिया दी। उनका कहना है कि एसजीपीसी में चुनाव को लेकर विधानसभा में प्रस्ताव पास होने पर उन्हें कोई ऐतराज नहीं है। चुनाव होने चाहिए, लेकिन कानून सम्मत तरीके से ही होने चाहिए।
गुरुनानक देव विश्वविद्यालय के सिख अध्ययन विभाग में प्रोफेसर डॉ. अमरजीत सिंह का कहना है कि एसजीपीसी का जिस मकसद से गठन किया गया था, वह उसी से भटक गई है। उन्होंने कहा, “1920-25 तक चले गुरुद्वारा सुधार आंदोलन के बाद एसजीपीसी का गठन किया गया था। तब ऐसे हालात थे कि गुरुद्वारों में गलत काम हो रहे थे। आज फिर एसजीपीसी भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है।”
उन्होंने बताया कि एसजीपीसी का दायरा पुराने पंजाब के तहत आने वाले क्षेत्र तक था। आरंभ से ही अकाली दल का इसपर नियंत्रण था। लेकिन 2004 में अकाली नेता गुरचरण सिंह तोहड़ा के निधन के बाद पिछले 15 साल से इस पर बादल परिवार का कब्जा है। पार्टी की जगह एक परिवार का कब्जा होने के बाद अब उनकी मनमर्जी ही वहां चलती है। आज हालात ऐसे हैं कि एसजीपीसी में बादल परिवार के खिलाफ बोलने की किसी में हिम्मत नहीं। अगर कोई कर्मचारी आवाज उठाता है तो उसका तबादला कर दिया जाता है। इस कारण एसजीपीसी पर से सिखों का भरोसा उठ गया है।
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