नोटबंदी पर SC में पेश केंद्र के हलफनामे में कितना है दम? पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन के बयानों को याद करने की है जरूरत!
रघुराम राजन ने कहा था कि उन्होंने कभी भी नोटबंदी का समर्थन नहीं किया बल्कि नरेंद्र मोदी सरकार को नोटबंदी के खतरों के बारे में चेतावनी दी थी। सरकार को चेताया था कि नोटबंदी के फैसले से अल्पकाल में होने वाला नुकसान लंबी अवधि तक भारी पड़ेंगे।
नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा समय पर दायर नहीं करने को लेकर बीती 9 नवंबर को हुई किरकिरी के बाद आखिरकार केंद्र की मोदी सरकार ने बुधवार को अदालत में हलफनामा पेश कर दिया। हलफनामे में मोदी सरकार ने अपना बचाव करते हुए नोटबंदी के फायदे गिनाए। सरकार ने कोर्ट को बताया कि नोटबंदी लागू करने से 8 महीने पहले ही आरबीआई से परामर्श लिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में सरकार ने कहा, “आरबीआई के साथ नोटबंदी को लेकर अच्छी तरह से विचार-विमर्श किया गया था। तत्कालीन वित्त मंत्री ने संसद में बताया था कि इसपर आरबीआई के साथ परामर्श फरवरी 2016 में ही शुरू हुआ था। परामर्श और फैसले को गोपनीय रखा गया था।”
सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि नोटबंदी का फैसला 500 और 1,000 रुपये के नोटों को वापस लेने के लिए आरबीआई की सिफारिश और प्रस्तावित योजना पर आधारित था। नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट में दायर केंद्र सरकार के हलफनामे की तीन बातें गौर करने वाली हैं।
पहला: नोटबंदी लागू करने से 8 महीने पहले ही आरबीआई से परामर्श लिया गया था।
दूसरा: आरबीआई के साथ नोटबंदी को लेकर अच्छी तरह से विचार-विमर्श किया गया था।
तीसरा: नोटबंदी का फैसला 500 और 1,000 रुपये के नोटों को वापस लेने के लिए आरबीआई की सिफारिश और प्रस्तावित योजना पर आधारित था।
नोटबंदी पर मोदी सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेश हलफनामे में जो दावे किए गए हैं, उनमें कितना दम है? यह समझने के लिए हमें अतीत में झांकने की जरूरत है। 4 सितंबर 2013 से 4 सितंबर 2016 तक रघुराम राजन आरबीआई के गवर्नर रहे। 8 नवंबर 2016 को देश में नोटबंदी लागू हुई थी। यानी नोटबंदी लागू होने से दो महीने पहले रघुराम राजन ने आरबीआई के गवर्नर पद को छोड़ा था या कहें कि उनका कार्यकाल खत्म हो गया था। केंद्र सरकार के मुताबिक, नोटबंदी पर आरबीआई के साथ परामर्श फरवरी 2016 में ही शुरू हुआ था। कोर्ट में सरकार द्वारा पेश आंकड़ों के मुताबिक, नोटबंदी लागू करने से पहले आरबीआई से जो भी परामर्श लिए गए उस पूरी प्रक्रिया के दौरान रघुराम राजन ही आरबीआई के गवर्नर थे।
ऐसे में नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा पेश हलफनामे को दिमाग में रखते हुए आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के उन बयानों को स्मरण करने की जरूर है, जिसे उन्होंने आरबीआई के गवर्नर पद को छोड़ने के बाद दिया था। उनके बयानों को स्मरण करने से सरकार के दावों में कितना दम है, काफी हद तक उसे समझने में मदद मिलेगी।
RBI गवर्नर पद छोड़ने के बाद रघुराम राजन ने क्या कहा था?
आरबीआई गवर्नर पद छोड़ने के एक साल बाद यानी 2017 में रघुराम राजन की नोटबंदी पर प्रतिक्रिया आई थी। रघुराम राजन ने कहा था कि उन्होंने कभी भी नोटबंदी का समर्थन नहीं किया बल्कि नरेंद्र मोदी सरकार को नोटबंदी के खतरों के बारे में चेतावनी दी थी। सरकार को चेताया था कि नोटबंदी के फैसले से अल्पकाल में होने वाला नुकसान लंबी अवधि तक भारी पड़ेंगे। बावजूद इसके केंद्र सरकार ने नोटबंदी का रास्ता चुना।
रघुराम राजन ने यह सारी बातें अपनी किताब ‘I Do What I Do: On Reforms Rhetoric and Resolve में कही हैं। किताब के मुताबिक, केंद्र सरकार द्वारा उनकी असहमति के बावजूद उनसे इस मुद्दे पर नोट तैयार करने को कहा गया। आरबीआई ने नोट तैयार कर सरकार को सौंप दिए। इसके बाद इस पर फैसला लेने के लिए सरकार ने एक समिति बनाई।
आरबीआई के पूर्व गवर्नर राजन ने यह भी खुलासा किया कि समिति में आरबीआई की ओर से सिर्फ करेंसी से जुड़े डिप्टी गवर्नर को शामिल किया गया, इस बात से यह भी जाहिर होता है कि राजन ने खुद इन बैठकों में हिस्सा नहीं लिया था। ऐसे में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा पेश किया है, उसमें कितना दम है, उसका अंदाजा रघुराम राजन की बातों से लगाया जा सकता है।
नोटबंदी अपने मकसद में बुरी तरह हुई थी फेल
केंद्र सरकार ने नोटबंदी लागू करने के पीछे जाली नोटों और टेरर फंडिंग से लड़ने का भी हवाला दिया था। नोटबंदी के बाद रिजर्व बैंक ने आंकड़े पेश किए थे और बताया था कि नोटबंदी के बाद 500 और 1000 के पुराने 99 प्रतिशत नोट वापस आ गए थे। इसके साथ ही आयकर विभाग ने भी कोई उल्लेखनीय काला धन नहीं पकड़ा था। इन आकंड़ों ने नोटबंदी को पूरी तरह से फेल साबित किया था।
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