ED द्वारा PMLA के प्रावधानों का इस्तेमाल कितना जायज? आज फैसला सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट, बीते 3 साल में दर्ज हुए हैं बेतहाशा केस
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि जांच एजेंसियां प्रभावी रूप से पुलिसिया शक्तियों का प्रयोग करती हैं, इसलिए उन्हें जांच करते समय सीआरपीसी का पालन करने के लिए बाध्य होना चाहिए।
प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए)यानी धन शोधन निवारण अधिनियम के कई प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुना सकता है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला अहम इसलिए माना जाएगा क्योंकि इसमें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा की जाने वाली जांच के अधिकारों या शक्तियों, गवाहों को सम्मन देने, मामले में गिरफ्तारी करने और जब्ती करने के साथ ही पीएमएलए कानून के तहत जमानत प्रक्रिया से जुड़े कई मामलों में दिशा निर्देश हो सकते हैं।
पीएमएलए के विभिन्न पहलुओं को चुनौती देने वाली सौ से अधिक याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ समूहीकृत किया था। इन सभी पर फैसला न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा सुनाया जाएगा। खानविलकर 29 जुलाई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। इस पीठ में न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार और दिनेश माहेश्वरी भी शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के व्यापक राजनीतिक अर्थ भी होंगे क्योंकि इससे कई संवेदनशील मामलों पर भारी असर पड़ेगा। कई मामलों में नेताओं, व्यापारियों और अन्य लोगों को पीएमएलए के प्रावधानों के तहत गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा है। इस फैसले से यह भी तय होगा कि ईडी और अन्य जांच एजेंसियों को किसी भी वर्तमान और भविष्य में कैसे कार्य करना होगा।
गौरतलब है कि फिलहाल बेहद सख्त पीएमएलए कानून के तहत गिरफ्तारी, जमानत देने, संपत्ति जब्त करने का अधिकार दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के दायरे से बाहर है।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि जांच एजेंसियां प्रभावी रूप से पुलिसिया शक्तियों का प्रयोग करती हैं, इसलिए उन्हें जांच करते समय सीआरपीसी का पालन करने के लिए बाध्य होना चाहिए। लेकिन चूंकि ईडी एक पुलिस एजेंसी नहीं है, इसलिए जांच के दौरान आरोपी द्वारा ईडी को दिए गए बयानों का इस्तेमाल आरोपी के खिलाफ न्यायिक कार्यवाही में किया जा सकता है, जो आरोपी के कानूनी अधिकारों के खिलाफ है।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी दलील है कि जांच शुरू करने, गवाहों या आरोपी व्यक्तियों को पूछताछ के लिए बुलाने, उनके बयान दर्ज करने, संपत्ति की कुर्की की प्रक्रिया आदि व्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है।
वैसे तो पीएमएलए के तहत अधिकतम सजा सात वर्ष है लेकिन इस मामले में जमानत हासिल करना काफी कठिन होता है।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया है कि ईडी अधिकारियों को पीएमएलए की धारा 50 के तहत किसी को भी बुलाने और अपना बयान दर्ज करने और अपने बयान पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करने की शक्ति सौंपी गई है, जो कि प्रतिवादी को किसी किस्म की कानूनी सुरक्षा से वंचित करने वाला है और यह संविधान का घोर उल्लंघन है।
इन याचिकाओं पर सरकार ने इस कानून का बचाव किया है। सरकार का कहना है कि यह एक विशेष कानून है और इसकी अपनी प्रक्रिया आदि हैं। केंद्र सरकार का तर्क है कि मनी लॉन्ड्रिंग देश की आर्थिक ताकत के लिए एक गंभीर खतरा है और इससे निपटने के लिए एक सख्त व्यवस्था की जरूरत है।
इस कानून के प्रावधानों के खिलाफ दायर याचिकाओं में इसे धन विधेयक के रूप में पेश किए गए वित्त अधिनियम के माध्यम से किए गए संशोधनों को भी चुनौती दी है और आरोप लगाया है कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि इस पर राज्यसभा में कोई स्क्रूटनी न हो सके।
यहां बता दें कि सोमवार को लोकसभा में दिए गए एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि यह कानून बनने के बाद बीते 17 साल के दौरान इस कानून के तहत कुल 5,422 मामले दर्ज हुए हैं जिनमें सिर्फ 23 लोगों को ही दोषी पाकर सजा दी गई है।
लेकिन यहां बताना जरूरी है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा पीएमएलए और फेमा के तहत दर्ज मामलों में मौजूदा केंद्र सरकार यानी मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले तीन साल में जबरदस्त उछाल आया है। ईडी ने 2014-15 से 2016-17 तक जितने मामले दर्ज किए थे, उसके मुकाबले 2019-20 और 2021-22 में कहीं अधिक बढ़ोत्तरी हुई है।
सोमवार को लोकसभा में वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने जो आंकड़े एक सवाल के जवाब में पेश किए, उसके मुताबिक ईडी ने 2019-20 और 2021-22 में फेमा और पीएमएल के तहत 14,143 मामले दर्ज किए हैं। जबकि 2014-15 और 2016-17 के बीच कुल 4,913 केस दर्ज हुए थे। इस तरह इन मामलों में 187 फीसदी का इजाफा हुआ है।
आंकड़ों को गौर से देखने पर 11,420 फेमा मामलों में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले तीन वर्षों में जांच की शुरुआत की गई। जबकि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के पहले तीन वर्षों में 4,424 मामलों में जांच हुई थी। इस तरह इन मामलों में 158 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।
इसी तरह पीएमएलए के तहत दर्ज मामलों में इस अवधि में पांच गुना से अधिक की वृद्धि हुई। 2014-15 से 2016-17 के बीच 489 मामले थे जोकि 2019-20 में 2,723 से 2021-22 तक - 456 प्रतिशत से अधिक बढ़ गए।
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